पश्चिम बंगाल यूँ तो आबादी के परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश से काफी कम है पर चुनावी हिंसा में हज़ार गुना ज़्यादा खून से लत-पत है। राजनीतिक इतिहास की बात करें तो फिर चाहे वो सीपीआई की सरकारें रही हों या टीएमसी की, इन दोनों ही दलों के शासन में बंगाल रक्तपात की राजधानी बन गई। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि यहाँ अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को वैचारिक रूप से हारने में अक्षम सत्ताधारी दल अपने पार्टी के तथाकथित गुंडों के माध्यम से विपक्षी कार्यकार्ताओं को मौत के घाट उतारा बेहद आसान और सरल समझते हैं। यही कारण है कि “दीदी ओ दीदी” के राज में चाहे वो छोटा से छोटा निकाय चुनाव हो या लोकसभा का चुनाव हो, बिना खून बहाए टीएमसी की राजनीति संभव ही नहीं है। यह तब है जब उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव से लेकर अभी चार चरण पूरे कर चुके विधानसभा चुनाव में कोई भी दंगा या मारकाट नहीं हुई है, जितनी एक दिन के भीतर बंगाल में चुनावों के दौरान हो जाती है।
दरअसल, आजादी से पहले और बाद के सांप्रदायिक रक्तपात से बंगाल के उभरने के बाद, हिंसा के गहरे बीज 1960 के दशक में इसके राजनीतिक लोकाचार के अंदर बोए गए थे। पश्चिम बंगाल में 1967 में संयुक्त मोर्चा सरकार के गठन के माध्यम से बंगाल के मार्क्सवादियों ने पहली बार सत्ता का स्वाद चखा। चूंकि कांग्रेस खासकर ग्रामीण इलाकों में जमीन खो रही थी, राज्य की दो प्राथमिक संरचनाओं-कांग्रेस और कम्युनिस्टों के बीच युद्ध खूनी और व्यापक था। 1950 के दशक के उत्तरार्ध से हिंसा पश्चिम बंगाल की राजनीति का एक अभिन्न अंग रही है, जो शांति की अवधियों से घिरी हुई है। हिंसा की संस्कृति का पोषण पिछले दशकों में आर्थिक मंदी थी, कुछ लोगों को पलायन करना पड़ा और बाकी लोग मामूली नौकरियों के साथ काम कर रहे थे, यहां तक कि इस भूमि पर रहने वाले, जो आमतौर पर लंबे समय तक रहकर अपना जीवन यापन कर रहे थे,उनका रहना भी दुर्लभ हो चुका था।
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विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि बेरोजगारी, गरीबी, राजनीतिक दलों पर अत्यधिक निर्भरता और रोजी-रोटी कमाने के लिए आज की सरकार, जमीनी स्तर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बीच कटुता और वर्षों तक एक ही दल का दबदबा हिंसा का आधार हो सकता है। पिछले तीन-चार दशकों में बेरोजगारी में वृद्धि के कारण, ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में लोग ज्यादातर जीवित रहने के लिए सरकार पर निर्भर हो गए हैं और सत्ताधारी दलों ने इस निर्भरता का अपने लाभ के लिए उपयोग किया है।
सामाजिक कार्यकर्ता और अर्थशास्त्र की प्रोफेसर सरस्वती घोष ने बताया कि, उपरोक्त लिखे कारणों के अलावा, अवैध हथियारों का प्रचलन एक और प्रमुख कारण है।” अन्य समाजशास्त्रियों ने कहा कि स्वतंत्रता पूर्व युग के बाद से पोषित हुए कई तत्वों ने बंगाल की राजनीति की हिंसक प्रकृति को जन्म दिया है। “स्वतंत्रता पूर्व अवधि के दौरान बंगाल क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था। फिर विभाजन के दौरान हुई हिंसा, उसके बाद तेभागा आंदोलन और साठ के दशक में नक्सली आंदोलन ने स्थिति को बिगाड़ने का काम किया। अब, हालांकि, हिंसा ज्यादातर राजनीतिक कारणों से होती है, एक ही पार्टी का बहुत लंबे समय तक प्रभुत्व इसके मूल कारणों में से एक रहा है।
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उत्तर प्रदेश में उलट है स्थिति-
जहाँ एक ओर उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने शासन में आते ही अपराध और अपराधियों के विरुद्ध Zero Tolerance Policy को अमल में लाया तो दंगाई, माफियायों और दहशतगर्दों को घर में से निकालकर उनके गंतव्य, उनकी सरकारी ससुराल तक पहुँचाने का कार्य किया तो वहीं लहू से बंगाल को नहलाने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में विरोधी दलों को अपने हित के आगे बलि चढाने से एक बार भी नहीं सोचा कि मासूम, निहत्थे और निर्दोष लोगों को मरवाने से पीछे उनका परिवार रोता-बिलखता छूट जाता है। इसके अलावा ममता अपराधियों को तो धन-धान्य से संरक्षित कर उन्हें बढ़िया जीवन यापन करने की छूट देती हैं।
अंतोत्गत्वा सत्ता प्राप्ति के मद में चूर ममता ने निःसदेह बंगाल को उसकी विरासत बंगाल जिसको आधुनिक समकालीन कला का अग्रदूत माना जाता है, जिसमें अबनिंद्रनाथ टैगोर, गगनेंद्रनाथ टैगोर, जैमिनी रॉय, रवींद्रनाथ टैगोर जैसे प्रसिद्ध कलाकार देश में कला के आधुनिकीकरण को बढ़ावा देने में सबसे आगे हैं। ऐसी सांस्कृतिक विरासत से धनी पश्चिम बंगाल की जमीन अब खुनी तंत्र का दंश झेल रही है।
सत्य तो यही है कि योगी आदित्यनाथ को कट्टरपंथी स्पष्टवादिता का जनक बताने वाले कुछ तुच्छ भेड़ियों को ममता के खुनी खेल का मंज़र इसलिए नहीं दीखता क्योंकि रोज़ी-रोटी और भीख वहीं से आती है। लेकिन जनता अंधी, गूंगी और बेहरी नहीं रही, ये पब्लिक है ये सब जानती है। ऐसे में ममता और खासकर टीएमसी शासित राज्य पश्चिम बंगाल को चुनाव कैसे निष्पक्ष और बिना खुनी संघर्ष के संपन्न कराए जाते हैं, वो उसे उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से सीखना चाहिए।
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