देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले ।
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की यह कविता उन लोगों की कहानी बताती है, जो विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी संघर्षरत रहे, जिन्होंने हार स्वीकार नहीं की और निरंतर परिश्रम से परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाया। ऐसी ही एक कहानी पटना की 19 वर्ष की लड़की ज्योति की है, जिन्होंने रेलवे स्टेशन पर भीख मांगने से अपने जीवन की शुरुआत की और आज वह पटना में एक कैफे की मालकिन हैं। ज्योति के लिए कचरा से कैफेटेरिया तक का सफर आसान नहीं था। फिर भी वह अपनी मेहनत से इस मुकाम तक पहुंची।
19 वर्षीय अनाथ की कैफेटेरिया के मालिक बनने की कहानी
ज्योति एक अनाथ लड़की हैं। अपने जीवन का आरंभ पटना रेलवे स्टेशन पर भीख मांगने से करने वाली ज्योति को यह भी नहीं पता कि उनके माता-पिता कौन हैं? संभवत पुत्री होने या किसी अन्य कारण से उनके वास्तविक माता-पिता ने उन्हें रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया था। उन्होंने बचपन में अपना पेट भरने के लिए कभी भीख मांगी तो कभी रेलवे स्टेशन पर कूड़ा बटोर कर उससे कुछ पैसे कमाए किंतु ज्योति के मस्तिष्क में शिक्षित होने का सपना सदैव था।
ज्योति का बचपन तो भीख मांगने वाले लोगों के साथ ही बीता किंतु पटना जिला प्रशासन की सहायता से उन्हें पटना में कार्यरत रेनबो फाउंडेशन नाम के NGO की सहायता मिल गई। रेनबो फाउंडेशन ने ज्योति की शिक्षा की व्यवस्था की और रैंबो फाउंडेशन के माध्यम से उन्होंने 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की। रेनबो फाउंडेशन ने मीडिया से बातचीत में बताया कि पटना जिले में उनके द्वारा पांच ऐसे संस्थान संचालित किए जा रहे हैं, जहां अनाथ बच्चों को शिक्षा दी जाती है।
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ज्योति ने मेहनत से हासिल की कामयाबी
ज्योति ने 12वीं की शिक्षा पास करने के बाद उपेंद्र महारथी इंस्टिट्यूट नामक संस्था से मधुबनी चित्रकला की पढ़ाई शुरू की। साथ ही उन्होंने एक कैफे में नौकरी शुरू कर दी। आज ज्योति एक कैफेटेरिया चलाती हैं और खाली समय में अपनी पढ़ाई करती हैं। स्टेशन पर बिना छत के जीवन शुरू करने वाली ज्योति आज अपनी कमाई से पटना में एक किराए के घर में रहती हैं। ज्योति की कहानी हजारों युवाओं और युवतियों के लिए प्रेरणा है।
समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो अपनी गरीबी के कारण आपराधिक गतिविधियों में सम्मिलित हो जाते हैं। बहुत से लोग जीवन की कठिनाइयों से हार मानकर आत्महत्या जैसा निर्णय ले लेते हैं। वहीं, कुछ ज्योति जैसे भी हैं, जो यह समझते हैं कि जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है और जब तक साँस चल रही है, हार स्वीकार नहीं करनी चाहिए। वहीं, ज्योति की रूचि पढ़ाई के साथ-साथ कला के क्षेत्र में भी है। आज ज्योति की मेहनत को देखकर एक कंपनी ने उन्हें कैफेटेरिया चलाने का काम दे दिया। ज्योति दिनभर कैफे चलाती हैं और रात को पढ़ाई करती हैं। अब ज्योति अपने पैरों पर खड़ी हैं और अपना खर्च खुद उठाती है। ऐसे में, ज्योति की कहानी उनके लिए एक प्रत्युत्तर भी है, जो लड़कियों की क्षमता पर संदेह करते हैं।