मुख्य बिंदु
- रूस और युक्रेन में चल रहे विवाद के बीच द हिन्दू ने रूस को लेकर की झूठी पत्रकारिता
- तथ्यों की जांच के बिना क्रीमिया के विलय पर ‘द हिन्दू’ ने त्व्वेत कर पूछा प्रश्न
- भारत में रुसी दूतावास ने ‘द हिन्दू’ को लगाई लताड़, ‘द हिन्दू’ ने डिलीट किया अपना ट्वीट
पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। यह कथन सत्य है पर अपूर्ण भी है। पत्रकारिता ना सिर्फ राष्ट्र के शासन पद्धति को परिलक्षित करती है अपितु यह एक राष्ट्र के सामाजिक अवस्था और उसके अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रतिबिम्बित करनेवाला एक दर्पण भी है। हालांकि, कुछ लोगों और मीडिया संस्थानों ने इसे अपने निकृष्ट नियत की पूर्ति का माध्यम बना लिया है। वे अपने व्यापक पाठक आधार का दुरुपयोग कर ना सिर्फ अपने राष्ट्र विरोधी और भ्रामक विचार प्रसारित करते हैं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को अपमानित और लज्जित भी करते हैं। भारत में वामपंथी विचारधारा से प्रभावित एक मीडिया संस्थान ने कुछ ऐसा ही किया। इस मीडिया हाउस का नाम है- ‘द हिन्दू’
और पढ़ें: ‘पूरा असमिया समुदाय घृणित और कट्टर है,’ द हिन्दू पर घृणित लेख लिखने के लिए मामला हुआ दर्ज
क्रीमिया का विलय और ‘द हिन्दू’ का धूर्त प्रश्न
दरअसल, रूस और युक्रेन में इन दिनों विवाद चल रहा है। यह एक अंतरराष्ट्रीय मामला है, जिसमें सीमा विवाद का भी एक कोण है। यूक्रेन सीमा पर जो स्थितियां उपजी हैं, उनके सबंधों में चर्चा के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की पहली बैठक हुई। भारत ने प्रक्रियात्मक मतदान हेतु हुई इस बैठक में भाग नहीं लिया। भारत का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय शांति हेतु आवश्यक है कि तनाव कम हो।
भारत ने इस विषय में रूस के प्रति अपने मित्र कर्तव्य का निर्वहन करते हुए इस विषय से दूरी बना ली है। परन्तु, इस विषय में भारत की किरकिरी कराते हुए ‘द हिन्दू’ ने ट्वीट कर एक वैकल्पिक प्रश्न पूछा, “युक्रेन के किस हिस्से को वर्ष 2014 में रूस द्वारा हमला कर अधिग्रहित किया जा चुका है?” इसके बाद द हिन्दू का यह ट्वीट सोशल मीडिया पर धल्लेड़े से शेयर होने लगा। वहीं, कई लोगों ने इस प्रश्न का जवाब देते हुए द हिन्दू को अपने तथ्यों की जांच करने के लिए कहा।
रुसी दूतावास ने द हिन्दू को लगाई लताड़
गौरतलब है कि 1950 के दशक में क्रुशेव ने गलती से क्रीमिया को यूक्रेन को दे दिया था। 1991 में सोवियट विघटन पश्चात दुर्भाग्य से क्रीमिया रूस से अलग हो गया। अंत में, जातीय रूसी बहुमत ने जनमत संग्रह के माध्यम से पुनः रूस में विलय होने का निर्णय किया। रूस ने कुछ भी कब्जाया नहीं। चीन कहीं न कहीं भारत और रूस की दोस्ती से असहज है, इसलिए भारत में चीन का माउथपीस कहे जाने वाले ‘द हिन्दू’ ने यह जानबूझ कर किया है। वहीं, ‘द हिन्दू’ ने अपने प्रश्नों के विकल्प में जानबूझकर क्रीमिया को रखा था ताकि इस विषय पर सार्वजनिक रूप से प्रश्न पूछकर ‘द हिन्दू’ सार्वजनिक उत्तर के आधार पर भारत को रूस का शत्रु सिद्ध करना चाहता था।
ट्वीट के माध्यम से ‘द हिन्दू’ द्वारा भारत-रूस संबंधों में विष घोलने की कवायद पर छूती लेते हुए भारत में रूसी दूतावास ने उसी ट्वीट को रीट्वीट कर प्रश्न किया कि “डियर द हिन्दू, हमें हमारे पूर्व के आक्रमणों के बारे में बताइए, हमने अभी तक ऐसा नहीं सुना था?” देखते ही देखते यह ट्वीट वायरल हो गया और नेट पर लोगों ने द हिन्दू की प्रतिबद्धता को लेकर प्रश्न उठाने आरम्भ कर दिए। हालांकि, इतने विरोध के बाद वह ट्वीट डिलीट कर दिया गया परन्तु लोगों ने तब तक स्क्रीन शॉट ले लिए थे।
Dear @the_hindu, tell us more about “previous invasion”. We haven’t heard of that 😮 https://t.co/67IxHLjjfL
— Russia in India 🇷🇺 (@RusEmbIndia) February 1, 2022
‘द हिन्दू’ की राष्ट्र विरोधी पत्रकारिता
‘द हिन्दू’ की राष्ट्र विरोधी पत्रकारिता का अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि जब हमारे CDS जनरल विपिन रावत का स्वर्गवसान हुआ तब इस समाचार पत्र ने उन्हें मात्र रावत नाम से संबोधित करते हुए समाचार छापा जबकि यही समाचार पत्र पाकिस्तानी आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा को पूरे सम्मान के साथ संबोधित करता है। वर्ष 2020 में लीगल राइट्स ऑब्जर्वेटरी ने गृह मंत्रालय का इस संदर्भ में ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा था कि जब लद्दाख युद्ध का संवेदनशील समय चल रहा हो, उस समय ‘द हिन्दू’ चीन के राष्ट्र दिवस पर चीन की सरकार की उपलब्धियों को कैसे प्रदर्शित कर सकता है?
और पढ़ें: द प्रिंट, द हिन्दू और Deccan Herald पर “Indian Variant” शब्द के प्रयोग के लिए कार्रवाई होनी चाहिए
इतना ही नहीं, जब 13 ईसाई संस्थानों का FCRA लाइसेंस निरस्त हुआ था, तो इसी समाचारपत्र ने भारत सरकार पर यह आरोप लगाया था कि यह सरकार उन्हेंं जानते बूझते निशाना बना रही है। ऐसे में, ‘द हिन्दू’ पूर्ण रूप से एक राष्ट्रविरोधी समाचार पत्र है, जो चीन की साम्यवादी सरकार द्वारा वित्तपोषित और कट्टरपंथी ईसाई तत्वो द्वारा संचालित किया जाता है। हालिया मामले में भारत रूस की दोस्ती खराब कर चीन के हितों को साधना भारत के लिए खतरा उत्पन्न करता है। लिहाजा, इस तरह के वामपंथी मीडिया संगठनों की झूठी पत्रकारिता के संदर्भ में आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए।