हिजाब विवाद की आड़ में गुम हुआ लावण्या, किशन भरवाड़ और रुपेश पांडेय का मामला

हिजाब के शोर में अन्य घटनाएं हुई मौन!

लावण्या
लावण्या? कौन है यह?
किशन भरवाड़? अरे इसका तो नाम ही नहीं सुना !
रुपेश पाण्डेय? क्या फर्क पड़ता है?

क्या फर्क पड़ता है? हिजाब सर्वशक्तिशाली है, यहां कथित तौर पर अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकार सर्वोपरि हैं। हिन्दुओं के अधिकारों का क्या है, उन्हें तो कभी भी मसला जा सकता है। देश में प्रचलित हिजाब की आड़ में हिन्दुओं के अधिकारों को सफाई से दबा दिया गया है। कई दशकों तक जिन्होंने हिजाब को हाथ नहीं लगाया था, वही लड़कियां हिजाब के लिए ऐसा प्रेम दिखाने लगी मानो इसके बिना उनका गुज़ारा नहीं हो सकता। कर्नाटका के उडुपी जिले में लगभग कई वर्षों पूर्व तक हिजाब नदारद थी परन्तु अब इसी के कारण पूरे देश में घमासान मचा हुआ है। जिस प्रतीक के कारण एक महिला को हीन, उसी को कुछ सशक्तिकरण का प्रतीक मानते हैं।

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हिन्दुओं के साथ हुई अन्य घटनाओं को दबाने की कोशिश

अब ये तर्क तो हास्यास्पद है पर उडुपी की वर्तमान मुस्लिम लड़कियां कुछ ऐसा ही सोचती हैं। याद कीजिए लावण्या की आकस्मिक मृत्यु जब एक ईसाई स्कूल की वार्डन ने हिन्दू बालिका लावण्या को धर्मांतरण के लिए दबाव डाला और उसे प्रताड़ित किया तब परेशान होकर छात्रा ने आत्महत्या कर ली थी। धर्मांतरण का मामला सामने आने के बाद से तमिलनाडु में बवाल मचा हुआ है।

छात्रा और उसके परिवार एवं विपक्षी पार्टी भाजपा ने आरोप लगाया कि छात्रावास के वार्डन द्वारा लावण्या के धर्म बदलने और ईसाई धर्म अपनाने के दबाव में आकर पीड़िता ने खुद की जान ले ली थी। वहीं, इस छात्रा की मृत्यु के बाद सोशल मीडिया पर नेटिज़न्स ने #JusticeForLavanya नाम से पोस्ट शुरू कर दिया। लेकिन अब हिजाब विवाद के सामने आने के बाद यह मुद्दा धूमिल होता जा रहा है। वहीं, गुजरात के अहमदाबाद में किशन भरवाड जिसे सिर्फ इसलिए मारा गया क्योंकि उसने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में श्री कृष्ण को सभी देवताओं से श्रेष्ठ बताया था।

रुढ़िवादी विचारधारा का बढ़ता प्रकोप

इसी क्रम में झारखण्ड के हज़ारीबाग जिले के बरही थाना क्षेत्र के करियादपुर गांव में सरस्वती पूजा के बाद विसर्जन जुलूस के दौरान बीते रविवार शाम 17 वर्षीय रूपेश कुमार पांडेय की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी। हजारीबाग के नई तांड गांव के लखना दुलमहा इमामबाड़ा नामक इलाके से गुजरते हुए मुसलमान भीड़ ने हिंदू भक्तों के साथ हंगामा किया था, जिसके बाद भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। इस घटना को लेकर कहीं कोई हल्ला नहीं मचा? कहीं प्रदर्शन नहीं हुए? अब ठीक इसी स्थान पर कोई रुपेश पाण्डेय न होकर रूहेल इमाद के साथ ये सब हुआ होता, तब स्थिति कुछ और ही होती।

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असल में कुछ लोगों को विचारधारा के साथ खेलने का गुण प्राप्त है। इसी कारण से वे अपनी विचारधारा को कुछ मामलों में स्पष्ट सिद्ध कर पाते हैं, चाहे उनके पास प्रमाण या तर्क हो या नहीं। यही कारण है धर्म विशेष में रुढ़िवादी विचारधारा का प्रभाव इतना हावी हो गया है कि राष्ट्रीय पटल पर उसे नियमों का उल्लंघन कर उचित ठाहराया जा रहा है। ऐसे में, एम लावण्या, किशन भरवाड या फिर रुपेश पाण्डेय की घटना हो उडुपी के हिजाब की उठती लौ ने इन घटनाओं को दबाने में कोई कसर नही छोड़ी है और यही हमारे देश की सबसे बड़ी विडंबना है।

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