मध्य प्रदेश में अब से होशंगाबाद होगा नर्मदापुरम और बाबई होगा माखन नगर

MP अजब है, सबसे गजब है!

नर्मदापुरम और माखन नगर
मुख्य बिंदु

भारतीय इतिहास में किसी भी स्थान का नाम उस जगह पर घटी घटनाओं से प्रेरित होकर रखे जाते रहे हैं परन्तु कई नाम राजनीतिक अभिलाषा के लिए एक विशेष वर्ग को खुश रखने हेतु रखे जाते हैं। नामों में परिवर्तन की श्रृंखला कोई नई बात नहीं है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्थान से जुड़े पुराने एवं ऐतिहासिक नाम के अदाहर पर इलाहाबाद और फैजाबाद का नाम क्रमशः प्रयागराज और अयोध्या कर दिया था। वहीं, मध्यप्रदेश में हबीबगंज स्टेशन का नाम परवर्तित करके रानी कमलापति स्टेशन कर दिया गया है। वहीं, हाल ही में नाम में परिवर्तन को लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते गुरुवार को ट्वीट करते हुए जानकारी दी कि मध्य प्रदेश के होशंगाबाद और बाबई को अब नर्मदापुरम और माखन नगर के नाम से जाना जाएगा। मध्य प्रदेश के दो शहरों के नाम परिवर्तन नर्मदा जयंती के अवसर पर प्रभावी होंगे।

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मध्यप्रदेश में बदला इन दो जगहों का नाम

पूर्व में नाम बदलने की इस प्रक्रिया पर वामपंथी दलों और बुद्धिजीवियों ने कई बार अपना आपा खो दिया है। वे भूल गए हैं कि ये नाम होशंगाबाद और बाबई कभी भारतीय नहीं थे, वे वास्तव में मुगल आक्रमणकारियों और उनकी सेना द्वारा हमारे शहरों और गांवों पर थोपे गए थे। ऐसा कोई नहीं है, जो इस तथ्य का विरोध कर सके कि ये नाम विदेशी हैं और प्रकृति या मूल में भारतीय नहीं हैं। मुगल शासकों के बारे में भी यही कहा जा सकता है। फिर ऐसा क्यों है कि जब नाम परिवर्तन हो रहा है, तो वामपंथी कबीले संकट में हैं? क्या यह उनकी तुष्टीकरण की रणनीति का कारण मात्र है?

दरअसल, मध्यप्रदेश में होशंगाबाद और बाबई को अब नर्मदापुरम और माखन नगर के नाम से जाना जाएगा। मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य सरकार ने केंद्र को दो शहरों के नाम बदलने का प्रस्ताव भेजा था, जिसे स्वीकार कर लिया गया है। ज्ञात हो कि बाबई दादा माखनलाल चतुर्वेदी का जन्मस्थान है। शिवराज सिंह चौहान ने राज्य के अनुरोध को स्वीकार करने के लिए केंद्र और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त किया। शिवराज ने आगे कहा कि, प्रख्यात छायाकार और भारतीय कविता के महान व्यक्तित्व दादा माखनलाल को नमन।

बाबई को अब माखन नगर के नाम से जाना जाएगा। शिवराज सिंह ने कहा कि “यह उनके व्यक्तित्व और रचनात्मकता को सम्मानित करने का एक विनम्र प्रयास है। इसके साथ ही होशंगाबाद जिले का नाम ‘नर्मदापुरम’ करने के अनुरोध को भी केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि यह बदलाव नर्मदा जयंती के शुभ अवसर से लागू किया जाएगा।”

नामों के लेकर इतिहास में मुगलों ने की थी छेड़खानी

ज्ञात हो कि माखनलाल चतुर्वेदी भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे, जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। उनका जन्म होशंगाबाद ज़िले के बाबई नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम नन्दलाल चतुर्वेदी था, जो गाँव के प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे। प्राइमरी शिक्षा के बाद घर पर ही दादा माखनलाल ने संस्कृत, बांग्ला , अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओँ का ज्ञान प्राप्त किया। ऐसे, प्रेरणापुंज के नाम पर उनके जन्मस्थली का नाम रखना एक स्वागतयोग्य कदम है।

वहीं, होशंगाबाद जिसे अब नर्मदापुरम के नाम से जाना जाएगा उसका इतिहास कुछ इस प्रकार है कि होशंग शाह मांडू का पहला सुल्तान था। उसने 1404-1435 तक यहां राज किया। होशंग शाह मालवा क्षेत्र का औपचारिक रूप से नियुक्त प्रथम इस्लामिक शासक था। मालवा का राजा घोषित होने से पहले होशंगशाह को अल्प खां नाम से जाना जाता था। जब होशंग शाह मालवा का राजा बना तो 1405 ईस्वी में उसने अपने नाम पर नर्मदापुरम का नाम होशंगाबाद रखा।

ऐसे में, अब नर्मदापुरम को अपनी खोई हुई विरासत अर्थात अपना असली नाम पुनः वापस मिल रहा है। नर्मदापुरम को धार्मिक नगरी भी कहा जाता है क्योंकि पूरे जिले में हजारों मंदिर हैं। यह सेठानीघाट सहित देवालयों के नाम से भी जाना जाता है। वहीं,  शोधकर्ताओं की मानें तो यहां हर 20 कदम की दूरी पर मंदिर है।

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ऐसे में, उत्तरप्रदेश की तरह अब देश के विभिन्न राज्यों ने यह कदम उठाना शुरू कर दिया है। बस एक-एक करके हर क्षेत्र को उसकी मूल विरासत से अवगत कराया जाए इस उद्देश्य से नाम बदलने का निर्णय सरकारें ले रही हैं। इसको धार्मिक और एक वर्ग विशेष के प्रति दर्ज़ कराई जा रही कुंठा के तौर पर बताना उचित नहीं होगा!

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