भारत अंडर-19 विश्व कप जीत गया। वर्ष 2000 में मोहम्मद कैफ, वर्ष 2008 में विराट कोहली, वर्ष 2012 में उन्मुक्त चंद, वर्ष 2018 में पृथ्वी शॉ के बाद अब वर्ष 2022 में 5वीं बार अंडर-19 विश्व कप जीतने का कीर्तिमान यश धुल के नेतृत्व में हुआ है। भारतीय टीम ने खेल के हर विभाग में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए इंग्लैंड को 4 विकेट से मात दे दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर BCCI अध्यक्ष सौरव गांगुली और भूतपूर्व कप्तान कोहली ने भी इन नौजवान खिलाड़ियों की भूरी-भूरी प्रशंसा की। सभी ने संतोष जताया की भारतीय टीम का भविष्य सुरक्षित हाथों में है। परंतु, आखिर हमारी व्यवस्था में ऐसी क्या कमी है कि अंडर-19 के विश्व विजेता खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम में पदार्पण करने के बाद अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाते। इस आर्टिकल में हम विस्तार से भारतीय क्रिकेट टीम में व्याप्त इस अदृश्य समस्या के बारे में जानेंगे, जिसका प्रभाव अत्यंत ही विनाशकारी है?
क्या आपने कभी सोचा है कि 5 बार की विश्व विजेता और 8 बार फ़ाइनल में पहुंचने वाली इस टीम के युवा खिलाड़ियों को राष्ट्रीय टीम में जाते ही क्या हो जाता है? इतनी अच्छी नींव से सजी भारतीय टीम आखिरकार उतनी सफलता प्राप्त क्यों नहीं कर पाती, जितनी अंडर-19 टीम कर लेती है, जबकि यही खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम में जगह बनाते हैं। यही खिलाड़ी जब राष्ट्रीय टीम की ओर से खेलते हैं, तो आखिर इनके प्रदर्शन और गुणवत्ता को क्या हो जाता है? आइये समझते हैं।
क्यों ‘खो’ जाते हैं अंडर-19 के खिलाड़ी?
आईसीसी अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप ICC द्वारा आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट है, जो हर देश के अंडर-19 टीमों के बीच खेला जाता है। वर्ष 1988 में पहली बार यह यूथ वर्ल्ड कप के रूप में खेला गया, उसके बाद 1998 तक इसका आयोजन नहीं किया गया। वर्ष 1998 से अब तक भारत की ओर से 350 खिलाड़ी इसमें भाग ले चुके हैं। विराट कोहली, युवराज सिंह, वीरेंद्र सहवाग, भज्जी, कैफ, ऋषभ पंत, रोहित शर्मा, केएल राहुल, रवींद्र जडेजा और शिखर धवन जैसे कुछ गिने-चुने खिलाड़ी न सिर्फ भारतीय टीम के स्तंभ, बल्कि विश्व क्रिकेट के नायक भी बनें, इसमें कोई दो राय नहीं है।
पर, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे अधिकांश खिलाड़ी कहीं न कहीं खो जाते हैं। एक दर्शक होने के नाते स्वयं अपनी अंतरात्मा से प्रश्न पूछिये कि इस साल के विश्व विजेता भारतीय टीम के कितने खिलाड़ी आपको याद हैं और आनेवाले भविष्य में आपको कितने याद रहेंगे? राष्ट्रीय टीम में मुश्किल से धुल और बावा जैसा कोई इक्का-दुक्का खिलाड़ी ही देखने को मिलेंगे और वो भी कितने समय तक ये कहा नहीं जा सकता।
इस समस्या के कई कारण हैं
इस अदृश्य समस्या के पीछे कुछ मूलभूत कारण हैं। अंडर-19 विश्वकप विजेता टीम के कप्तान यश धुल का विजयी वक्तव्य सुनकर आपको प्रथम कारण का पता चल जाएगा। उन्होने कहा, “यह भारत के लिए गर्व का क्षण है। हम विश्व कप हासिल करने में कामयाब रहे। शुरुआत में संयोजन को सही करना मुश्किल था। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया हम एक परिवार बन गए और टीम का माहौल अच्छा था। सहायक कर्मियों ने इस तरह खेलने में हमारी मदद की।” इस युवा खिलाड़ी ने ड्रेसिंग रूम में जैसा अनुभव किया है, अब वो शायद ही करे।
ध्यान देने वाली बात है कि जब सीनियर टीम वैश्विक स्तर पर खेलने जाती है, तो वह नौकरशाही से उतनी मुक्त नहीं रहती है, जितनी जूनियर टीम रहती है। बहुत कम ही ऐसा होता है कि कोच, कप्तान और बोर्ड एक साथ, एक ही जगह, देश और टीम के लिए एकमत हों और जब-जब ऐसा हुआ है, तब-तब भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है, जैसा कि सौरव गांगुली और महेंद्र सिंह धोनी के नेतृत्व में हुआ था।
दुर्भाग्यवश भारत की सीनियर बेंच स्ट्रेंथ लाइन-अप में सभी के बारे यह नहीं कहा जा सकता है। सूर्यकुमार यादव और श्रेयस अय्यर के चयन के पीछे उनका असाधारण प्रथम श्रेणी रिकॉर्ड है, परंतु यजुवेंद्र चहल और प्रसिद्ध कृष्णा जैसे अन्य खिलाड़ियों का घरेलू क्रिकेट में या तो खराब रिकॉर्ड है या वे अनुभवहीन हैं! इसीलिए अनेक अवसर मिलने के बाद भी ICC विश्व कप से लेकर विश्व टी-20 चैम्पियनशिप या ज्यादा प्रेशर वाले मैचों में इन्हें मुंह की खानी पड़ती है।
रणजी से इतर IPL के आधार पर होता है चयन!
आज के युग में भारतीय टीम का चयन रणजी ट्रॉफी से ज्यादा IPL के प्रदर्शन के आधार पर किया जाता है। अगर किसी खिलाड़ी ने IPL में खेलने वाले दिग्गजों के सामने अच्छा प्रदर्शन किया है, तो उसे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से तालमेल बिठाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट इतना आसान नहीं है। यह कौशल और दक्षता की सबसे कठिन कसौटी है। जब आप घरेलू क्रिकेट खेलते हैं, तो आपको अलग-अलग परिस्थितियों में खेलने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
वहीं, चार दिवसीय क्रिकेट खिलाड़ियों के अंदर असीम कौशल विकसित करता है। जब एक घरेलू रूप से सिद्ध और अनुभवी खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में खेलने जाता है, तो वह जल्दी ही इसके अनुकूल हो जाता हैं और लंबे समय में एक बेहतर खिलाड़ी बनकर उभरता है। माइकल हसी ऐसे ही एक उदाहरण हैं।
ऐसे में यह समझना होगा कि जब नींव ही सशक्त नहीं होगी, तो खिलाड़ी कितना भी शक्ति प्रदर्शन क्यों न कर लें, अंत में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए सफल सिद्ध नहीं हो पाएंगे। निस्संदेह हम भारत की अंडर-19 विश्व कप विजय से गौरवान्वित हैं, परन्तु अगर हमने इन युवा प्रतिभाओं को सही दिशा नहीं दिखाई, तो ये वैसे निरर्थक सिद्ध होंगे, जैसे एक समय में उन्मुक्त चन्द और अब विराट कोहली सिद्ध हो रहे हैं!