अब समय आ गया है कि कोहली संन्यास लें या कोई चमत्कार करें

कोहली के लिए हुई 'करो या मरो' की स्थिति!

Virat Kohli

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विराट कोहली क्रिकेट का बहुत बड़ा नाम है। जितना विराट इसका उद्भव है, उतना ही विराट इसका पतन। कोहली काफी लंबे समय से भारत के मध्यक्रम बल्लेबाज़ी के रीढ़ रहें है। चेज़ मास्टर से लेकर रन मास्टर और रन मास्टर से लेकर किंग कोहली जैसे पता नहीं किन-किन नामों से उन्हें अलंकृत किया गया है। अपने खेल, प्रभावशाली व्यक्तित्व, फुर्तीले क्षेत्ररक्षण और बल्लेबाज़ी तकनीक की विविधता के कारण वो बल्लेबाज़ से एक ब्रांड के रूप में कब स्थापित हो गए, पता ही नहीं चला।

उन्होंने न सिर्फ स्वयं को एक उत्कृष्ट बल्लेबाज़ के रूप में स्थापित किया, बल्कि भारतीय क्रिकेट को भी नयी ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनका कद इतना बड़ा हो गया कि बल्लेबाज़ी में उन्हें सचिन तेंदुलकर और विदेशी धरती पर भारत को मैच जीतने के मामले में उन्हें धोनी से भी ऊंचा मापा जाने लगा। क्रिकेट का यह नगीना बल्लेबाज़ी का मानद उदाहरण बन गया। इस आर्टिकल में हम विस्तार से विराट कोहली के विराट पतन की गाथा के बारे में समझेंगे और यह भी समझेंगे कि कैसे अब वो टीम में बने रहने और उससे निकलने से महज एक शतक दूर हैं।

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कोहली का अहंकार!

कुछ सालों पहले क्रिकेट समाज में यह प्रचलित वाक्य बन गई थी कि आने वाली पीढ़ी जब भी एक उत्कृष्ट बल्लेबाज़ी की परिभाषा ढूंढेगी, तो उसे विराट कोहली की ओर देखना पड़ेगा। पर फिर, अचानक से कुछ ऐसा हुआ, जिससे वो द्रुत गति से पतन की ओर जाने लगे। इस विराट पतन का कारण है उनका अहंकार। वो स्वयं को खेल से भी बड़ा मानने लगे! उनको मिले पद और प्रतिष्ठा के कारण उन्होंने क्रिकेट को सिर्फ कमाई का जरिया बना लिया। क्रिकेट से मिली सफलता का उपयोग उन्होंने अपने खेल को और निखारने के लिए नहीं, बल्कि आर्थिक कांट्रैक्ट प्राप्त करने के लिए किया। शायद, वो मान चुके थे कि अब वो इतने निपुण हो चुके है कि उनके खेल में कोई सुधार की आवश्यकता ही नहीं है।

फिर एम एस धोनी के जाने के बाद उन्हें टीम की कप्तानी सौंपी गयी। इस पदवी ने उनमें उत्तरदायित्व का भाव जगाने के बदले उनके अहंकार में और भी बढ़ोत्तरी की। जिसके बाद वो खुद को खेल, टीम और देश से भी ऊपर समझने लगे। उनके इन्हीं अहंकारी स्वभाव के कारण टीम के सदस्यों और हितों के साथ उनका टकराव प्रारम्भ हो गया। खेल पर ध्यान देने के बजाय वो टीम को secularism और दिवाली मनाने के तौर-तरीको पर ज्ञान देने लगे। जिसके कारण हम चैंपियंस ट्रॉफी हारे, टेस्ट चैंपियनशिप हारे, वर्ल्ड कप हारे, टी20 वर्ल्ड कप हारे और हारते चले गए।

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करियर के सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं कोहली

आर अश्विन जैसे विश्वस्तरीय गेंदबाज को विराट कोहली ने संन्यास के स्तर पर पहुंचा दिया! रोहित शर्मा जैसे विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ और बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली से भी वो भिड़ गए। टीम का चयन और संयोजन, योग्यता और परिस्थिति के आधार पर नहीं, बल्कि कोहली के साथ खिलाड़ियों के संबंधों के आधार पर होने लगी। ऐसा लगा जैसे यह भारत की टीम नहीं, बल्कि कोहली का निजी दल हो। लोगों को लगा कि कोहली का ऐसा स्वभाव कप्तानी के दबाव के कारण है। अतः टीम और कोहली जैसे नगीने को बचाने के लिए उन्हें कप्तानी से हटाकर रोहित शर्मा को कप्तानी सौंपनी पड़ी। पर, कोहली फिर भी नहीं सुधरें।

अहंकार जनित उनकी हठधर्मिता जारी रही। खबरें उड़ती रही कि कोहली, रोहित की कप्तानी और रोहित, कोहली की कप्तानी में नहीं खेलना चाहते। इस कारण उनसे खेल के हर प्रारूप की कप्तानी छीन ली गयी। पर उनकी बल्लेबाज़ी अभी भी जस की तस है। अपनी स्थिरता और निरंतरता के लिए प्रख्यात कोहली अपने क्रिकेट करियर में सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। विराट के लिए उनका करियर पिछले दो सालों से चुनौती पूर्ण रहा है। जनवरी 2020 से उनका टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाजी औसत 26 है। नवंबर 2019 में बांग्लादेश के खिलाफ अपना आखिरी शतक बनाने के बाद से वो अब तक 13 टेस्ट मैच खेल चुके हैं, पर उनका बल्ला बहुत दिनों से खामोश है।

इस खामोशी से उनपर दबाव बढ़ रहा है और यह दबाव उनके क्रिकेट करियर में नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। कोहली की उम्मीदें क्षीण हो रही हैं। उनकी ढलती उम्र के साथ फॉर्म और बल्लेबाजी भी ढलान पर है। दरअसल, विराट कोहली का टेस्ट क्रिकेट में प्रदर्शन इतना खराब रहा है कि ऑस्ट्रेलियाई चैनल ‘7Cricket ‘ ने हाल ही में एक ट्वीट साझा करते हुए उनके टेस्ट बल्लेबाजी औसत की तुलना ऑस्ट्रेलियाई तेज़ गेंदबाज मिशेल स्टार्क से की थी। मिशेल स्टार्क का टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाजी औसत (38.63) कोहली की तुलना में बेहतर है।

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वेस्टइंडीज दौरे पर भी फ्लॉप रहें कोहली

हालांकि, ये बात एक स्थापित सत्य है कि कोहली भारतीय क्रिकेट टीम के महानतम बल्लेबाजों में से एक हैं और यह तुलना अपमानजनक थी, जिसके लिए वसीम जाफ़र ने आस्ट्रेलियाई मीडिया को खूब खरी-खोटी भी सुनाई थी। पर सबसे विराट प्रश्न जो अभी तक अनुत्तरित है कि आखिर कोहली के 72वें शतक अभिवादन को स्वीकार करने के लिए देश को और कितना प्रतीक्षा करना पड़ेगा। हाल के वेस्टइंडीज दौरे पर भी कोहली पूरी तरह फ्लॉप रहें। तीन मैच को श्रृंखला में उन्होने 18, 8 और 0 रन बनाए। वेस्टइंडीज के साथ हुए टी20 मैच में भी वो कोई खास प्रदर्शन नहीं कर सकें और मात्र 17 रन बनाकर पॉवेल की एक साधारण गेंद पर लॉन्ग ऑफ पर कैच थमा बैठे। उनकी इस पारी में मात्र एक चौका ही शामिल था और वो अपनी इस छोटी सी पारी में भी सतत संघर्षरत दिखें।

एक समय भारतीय मध्यक्रम बल्लेबाज़ी की रीढ़ समझे जाने वाले कोहली की वजह से से आज भारतीय मध्यक्रम काफी लाचार हो गया है। भारत को अपने इस शानदार क्रिकेट रत्न को इतना लाचार देखने की आदत नहीं है। कोहली को वापस से विराट कोहली बनना ही होगा, वरना विश्व के एक बेहतरीन बल्लेबाज़ का दुखदायी अंत हो जाएगा। भारत के फैंस इन्हें अपने गर्व गाथा में शामिल करने का स्वप्न देखते हैं न कि अफसोस की कहानी में और कोहली इससे महज एक शतक दूर हैं।

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