मोदी सरकार को अब धर्मनिरपेक्ष होना होगा, लेकिन रुकिए हम अलग धर्मनिरपेक्षता की बात कर रहे हैं

भारत को भी अन्य विकसित देशों की भांति धर्मनिरपेक्ष होने की आवश्यकता है!

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तथाकथित सभी और विकसित धर्मनिरपेक्ष पश्चिम में ऐसे कई देश हैं, जहाँ एक धर्म के लोगों का प्रभुत्व है। ऐसे सभी देश अपने नागरिकों पर धर्म को थोपने का काम सेकुलरिज्म की आड़ में पूरा करते हैं। चौंकने की आवश्यकता नहीं है! हम आगे बतायेंगे कि कैसे यह कम किया जाता है। उससे बड़ा सवाल यह है कि यदि ऐसा ही कुछ सेकुलरिज्म भारत में होता है तो क्या प्रतिक्रियाएं होंगी उन सभी देशों की जो यह पहले से करती आ रही हैं?

निस्संदेह, आज धर्मनिरपेक्षता की आड़ में कई देश कट्टरपंथ को शह दे रहे हैं। उनका ध्येय मात्र एक विचार को पोषित कर उसका प्रभुत्व कायम करना है।  भारत इसके इतर आगे बढ़ने और कुरीतियों को कैसे धराशाई करे, उसपर एक योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ता है तो उसका वो हाल या भद्द नहीं पिटेगी जो इन सभी यूरोपीय देशों के साथ हो रहा है।

यदि भारत जैसा देश, इस्लामवाद के विरूद्ध उसके निदान के लिए प्रस्ताव रख दे तो इसपर प्रतिक्रिया की कल्पना की जा सकती है। एक छोटा सा बदलाव, दिल्ली में बैठी मोदी सरकार को कट्टरपंथियों पर लगाम लगाने और इस्लाम पर प्रतिबन्ध लगाने जैसे बड़े और तथाकथित आरोप जड़ दिए जाते लेकिन सभी यूरोपीय देश धर्मनिरपेक्ष हैं परंतु उनमें से कई के पास इस्लाम को विनियमित करने के लिए कानून हैं।

ऐसे में Secularism किताबी बातों में छूट गया है। असल में यह सभी देश अपने ही धर्म और संस्कृति को बढ़ाने के उपाय ढूंढ उन्हें अमल में लाने की नीति स्थापित कर चुके हैं, जिनका अनुपालन आराम से बिना किसी को भनक लगे डंके की चोट पर ऐसे किया जा रहा है जैसे उनके जैसा तटस्थ और निष्पक्ष शासन और कोई कर ही नहीं सकता है।

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यूरोप में धर्मनिरपेक्षता का मतलब समझिये-

उदहारण के लिए 2015 में ऑस्ट्रिया ने धार्मिक संस्थानों के विदेशी फंडिंग पर प्रतिबंध लगा दिया। जर्मनी ने 2019 में इमामों को प्रशिक्षित करने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया। इसने एक विशेष विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम बनाया। क्या हम भारत में ऐसी कल्पना कर सकते हैं? यदि हिन्दू धर्म के लिए ऐसा कुछ करने का सरकार सोचेगी भी न तो बवाल उठ जायेगा, अनुपालन करना तो दूर की बात है।

अत्यधिक विकसित देश डेनमार्क में कानून सटीक और तथ्यात्मक हैं। इसमें “Ghetto Neighbourhood” में रहने वाले बच्चों के लिए एक कानून है। यहूदी बस्ती आज की तारीख में मुस्लिम नागरिकों की एक बड़ी आबादी वाले एन्क्लेव हैं। इन मोहल्लों के बच्चों को हर हफ्ते अपने माता-पिता के अलावा कम से कम 25 घंटे बिताने चाहिए। इन 25 घंटों में इन बच्चों को ‘डेनिश मूल्यों’ की शिक्षा दी जाती है। उन्हें क्रिसमस और ईस्टर परंपराओं के बारे में सिखाया जाता है। डेनमार्क कहने को तो एक धर्मनिरपेक्ष देश है लेकिन सरकार मुस्लिम बच्चों को क्रिसमस और ईस्टर के बारे में जानने के लिए बाध्य करती है। वे डेनिश भाषा की कक्षाएं भी लेते हैं।

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इसपर सरकार के तर्क इस प्रकार हैं कि वह इन बच्चों का पश्चिमीकरण कर रहा है, उन्हें मॉडर्न और सभी का बातों की जानकारी देना चाह रही है और उन्हें देश की धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के बारे में परिचित करा रही है। यह संवैधानिक रूप से अनिवार्य हस्तक्षेप है। सरकार का कहना है कि यह धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं है। यह कुछ ऐसा है जो उन्हें इस्लामवाद के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए करना चाहिए। यह एक वैश्विक पैटर्न का हिस्सा है।

भारत कैसे बदल सकता है तस्वीर-

वहीं, भारत ऐसे कुरीतियों को यदि सीधा निष्काषित करता है तो उसका प्रभाव वज्रपात की भांति देश पर पड़ेगा। इसलिए सरकार को योजनाबद्ध चरणों में फैसलों पर मुहर लगानी चाहिए। जिसमें पहले कट्टरपंथ फैला रहे मदरसों को चरणबद्ध करते हुए हर दिन कुछ संख्याओं में नित्त-प्रतिदिन बंद किया क्योंकि वहां पढ़ रहे बच्चों की नींव उनके भीतर कट्टरपंथ डालकर बर्बाद की जा रही है जिसको रोकना बेहद ज़रूरी है। यहाँ अपने ही देश में रह रहे लोगों जो उनके धर्म से विपरीत होते हैं, उनके विरुद्ध धीरे-धीरे जहर बोया जाता है जिससे वो एक दूसरे के प्रति हीन भावना पैदा कर लेते हैं।

दूसरा, मस्जिदों से तकरीरे और फतवे जारी करने वाले इमामों पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है, जिसे पुनः नित्त-प्रतिदिन प्रतिबंधित किया जाए ताकि विषैली बातों से सिर काट लाने वाले को इतना इनाम मिलेगा, ये कर लोगे तो 72 हूरें और जन्नत नसीब होगी। ऐसी बेतुकी बातों से सामाजिक स्तर पर एक दुसरे के प्रति वैमन्सयता का भाव उष्मित होता है जिसे ऐसे इमामों को प्रतिबंधित करने के बाद ही बंद किया जा सकता है।

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तीसरा और सबसे अहम हिस्सा जिसको चरणबद्ध तरीके से भारत के इतिहास से हटाने की आवश्यकता है वो है मुग़ल कालीन इतिहास। ऐसा नहीं है कि मुग़लों को पढाई से ही हटा दिया जाए, मूल बात यह है कि, भारत को केवल एक ही तरह की लिखित संस्कृति के बारे में अब तक पढ़ाया जाता रहा है और पढ़ाया जा रहा है। वो है मुगलों का भारत पर शासन, उन्हें हटा देना निश्चित रूप से सुलभ नहीं होगा क्योंकि मुगलों का बड़ा हस्तक्षेप भारतीय इतिहास में रहा है परन्तु उनके नकारात्मक पहलुओं को धीरे-धीरे इतिहास के पन्नों में शामिल करना बेहद आवश्यक है और हिन्दू नायकों के बारे में किताबों में भारतीय कुशल शासन का परिदृश्य पढ़ाने की एक नई रीत शुरू करने की आवश्यकता है ताकि आगामी भविष्य सकारात्मक भूतकाल को पढ़े न की नकारात्मक सोच से ग्रसित हो जाए।

इन सभी बिंदुओं पर यदि सरकार काम कर लेती है तो निश्चित रूप से प्रधामनंत्री मोदी उस सेक्युलर भारत का निर्माण कर जायेंगे जिसकी ज़रुरत वर्तमान में बेहद अहम है। ऐसा नहीं है कि भारत एक विचार को थोपने की ओर बढे, बात इतनी सी है कि अब तक पश्चिमी चश्मे से भारत को प्रदर्शित किया जाता रहा है, अब समय आया है भारत को भारत के चश्मे से देखने का। इसलिए भारत को भारतीय सेक्युलर राष्ट्र बनने की ओर आगे कदम बढ़ाने चाहिए और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार से बेहतर इसपर कोई और सरकार काम नहीं कर सकती है।

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