जिस JNU में चलता था राष्ट्रविरोधी एजेंडा, उसे सुधारने में लग गई हैं नई VC शांतिश्री धूलिपुडी

अब मिला है JNU को असली थानेदार!

जेएनयू

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देश के शिक्षण संस्थान राष्ट्र निर्माण की नींव होते है। पर, कुछ शिक्षण संस्थानों की महत्ता इतनी अधिक होती है कि वो न सिर्फ राष्ट्र को वैचारिक स्तर पर प्रभावित करते हैं, बल्कि इसकी धुरी भी बनते हैं। ऐसे ही कुछ शिक्षण संस्थान में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय भी सम्मिलित है। यह देश का एक अग्रणी शिक्षण संस्थान है जहां से राष्ट्र का संचालन करने वाले नायक निकलते हैं। प्रभाकर परकला, उनकी पत्नी निर्मला सीतारमण, डीएमके नेता सेल्वगणपति, मेनका गांधी, नीति आयोग के अध्यक्ष अमिताभ कांत, विदेश मंत्री एस जयशंकर जैसे बड़े नाम इसी शिक्षण संस्थान द्वारा पल्लवित किए गए हैं। पर विगत 10 वर्षों में इस विश्वविद्याल के गौरवशाली परंपरा को हाइजैक कर लिया गया। जिसे अब संस्थान की नई VC डॉ शांतिश्री धूलिपुडी पंडित सुधारने में लगी हुई हैं।

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जेएनयू और राष्ट्रविरोधी एजेंडा

गौरतलब है कि जेएनयू में काफी लंबे समय से राष्ट्र निर्माण या राष्ट्र के वैचारिक सिद्धांतों की नींव रखने के लिए सेमिनार, संगोष्ठी या चर्चा नहीं होती, बल्कि राजनीतिक रणनीति बनती है। दीपिका, स्वरा और अरुंधति जैसे लोगों को भाषण देने के लिए बुलाया जाता है, जो इस संस्थान के माध्यम से बड़े पैमाने पर अपना राष्ट्रविरोधी एजेंडा चलाते हैं! पहले जेएनयू से शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी देश की राजनीति की दिशा देते थे। ये देश और सरकार की सबसे मूल्यवान संपत्ति हुआ करते थे, पर अब ये संस्थान के परिसर में ही राजनीतिक दलों के झंडे बुलंद कर देश को तोड़ने की बात करने लगे। ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ और ‘हिन्दू तेरी कब्र खुदेगी’ जैसे नारे आम हो गए।

बड़ी संख्या में गर्भनिरोधक गोलियां, कंडोम, सेक्स टॉय, दारू की बोतल आदि आपत्तिजनक चीजों से परिसर पटा रहता था। कभी कभी तो ऐसा लगता था मानों आप किसी शिक्षण संस्थान नहीं बल्कि किसी खुले मैदान में आयोजित रेव पार्टी में आये हों। फिर, इस संस्थान से शेहला रशीद, उमर खालिद और कन्हैया कुमार जैसे विद्यार्थी निकले, जो एक तरह से सरकार के टुकड़ों पर पलते रहें! शिक्षा के नाम पर उन्होंने जेएनयू को अपनी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का अड्डा बना दिया। सालों से देश और करदाताओं के पैसों पर फ्री के छात्रावास, वाईफाई, खाना और अन्य सुविधाओं का लाभ लिया। ऊपर से देश के भले के लिए कुछ नहीं करते, बल्कि इसे तोड़ने का दुस्वप्न अलग देखते हैं।

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भाजपा के आने के बाद बदली स्थिति

जब से केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रवादी सरकार सत्ता में आई है, तब से इन मार्क्सवादियों, समाजवादियों, कम्युनिस्टों, इस्लामिस्टों और राष्ट्र-विरोधी तत्वों में उभार आया है। इन असामाजिक तत्वों ने लंबे समय तक यथास्थिति बनाए रखी और छात्रों को भ्रमित कर देश विरोधी गतिविधियों से जोड़ने के लिए छिपकर काम किया। पर, नरेंद्र मोदी की सरकार आते ही और प्रमुख रूप से CAA के बाद इनपर नज़र रखा जाने लगा। अतः वे अपने सब्सिडी वाले छात्रावास कमरे और स्टाफ रूम से बाहर निकल गए। उन्हें लगा कि भाजपा सरकार उनकी पारिस्थितिकी तंत्र को तोड़ सकती है।

ध्यान देने वाली बात है कि कांग्रेस सरकार में छात्र निकायों का बड़े पैमाने पर राजनीतिकरण हुआ था और अब यह बीमारी हमारे शैक्षणिक संस्थानों को प्रभावित कर रही है तथा यही हमारे शैक्षणिक वातावरण में जहर भी घोल रही है। इस शिक्षण संस्थान का हर स्थान चाहे वह कक्षा हो, छात्रावास हो या फिर वो गोदावरी जैसे चाय पीने की जगह, सभी आजकल राजनीतिक संगोष्ठी के अड्डे बन गए है जहां निरंकुश स्वतन्त्रता के नाम पर भारत को तोड़ने की चर्चा आम वार्तालाप का हिस्सा बन चुकी हैं।

शांतिश्री ने संभाला कमान

लेकिन खबरों की मानें तो अब जमीनी स्तर पर JNU परिसर में प्रवेश को नियंत्रित कर दिया गया है। पहले कोई भी न्यूनतम जांच के बिना विश्वविद्यालय में घुस सकता था और अराजकता फैलाकर चला जाता था। पर, अब इस विश्वविद्यालय के नए कुलपति डॉ शांतिश्री धूलिपुडी पंडित ने इसे एक पिकनिक स्पॉट या राजनीतिक अड्डे के बजाए, इसे एक विश्वविद्यालय परिसर का स्वरूप देने में जी जान से जुट गई हैं। यह भी कहा जा रहा है कि डॉ पंडित विश्वविद्यालय की “ढाबा संस्कृति” पर कार्रवाई कर सकती हैं, जो JNU के विषाक्त और अत्यधिक अस्थिर विचारों का प्रजनन स्थल रहा है।

हालांकि, नए प्रशासन द्वारा लाया गया सबसे बड़ा बदलाव प्रवेश परीक्षा की शुरूआत है। दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रवेश प्रणाली में बदलाव के बाद, जेएनयू में प्रवेश भी सामान्य विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (सीयूसीईटी) के माध्यम से ही किया जाएगा। विश्वविद्यालय ने खुद इस बड़े फैसले की घोषणा की है और कहा है कि प्रवेश परीक्षा राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) की योजना के अनुसार आयोजित की जाएगी। यह एक कदम पूरी तरह से पुराने पारिस्थितिकी तंत्र को खत्म कर देगा, जिसने जेएनयू को वामपंथी विचारधारा का केंद्र बना दिया था। इसके अलावा, छात्रों को सक्षम बनाने के लिए पाठ्यक्रम में भी बदलाव किया जा रहा है। जैसा कि टीएफआई द्वारा रिपोर्ट किया गया है, अकादमिक परिषद के अनुमोदन पर, विश्वविद्यालय ने पिछले साल दोहरी डिग्री कार्यक्रम का पीछा करने वाले इंजीनियरिंग छात्रों के लिए एक वैकल्पिक पाठ्यक्रम शुरू किया था।

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पाठ्यक्रम में कहा गया है कि “जिहादी आतंकवाद” “कट्टरपंथी-धार्मिक आतंकवाद” का एकमात्र रूप है, और उन्हें ऐतिहासिक रूप से चीन और सोवियत संघ जैसे कम्युनिस्ट पृष्ठभूमि वाले देशों द्वारा समर्थित किया गया है। भाकपा और टीएमसी जैसे दलों के विरोध के बावजूद, विश्वविद्यालय वैकल्पिक पाठ्यक्रम शुरू करने में दृढ़ रहा। इस महीने की शुरुआत में, शिक्षा मंत्रालय ने डॉ शांतिश्री धूलिपुडी पंडित को एम जगदीश कुमार की जगह विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया। डॉक्टर पंडित की नियुक्ति सार्वजनिक होने के बाद वामपंथियों ने उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया। इस घटना के बाद उनके ट्विटर हैंडल को डिलीट कर दिया गया था। डॉ पंडित को साम्यवादियों के जिस प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा हैं, वह अपमानजनक है।

कई मामलों में मुखर रही हैं शांतिश्री

ध्यान देने वाली बात है कि डॉ पंडित इस बात की मुखर आलोचक रही हैं कि भारत के इतिहास को कैसे चित्रित किया गया है। श्री वेंकटेश्वर कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित एक वेबिनार में पंडित ने दशकों से भारतीयों को पढ़ाए जा रहे भारतीय इतिहास के गलत आख्यान की आलोचना की। उन्होंने दावा किया था कि NCERT की पाठ्यपुस्तकें न केवल ‘मुगलों’ बल्कि ‘नेहरू गांधी वंश’ की भी चित्रित छवि सिखा रही है। उन्होंने भारत पर ‘इस्लामी आक्रमणों’ के इतिहास का महिमामंडन करने की खुले तौर पर आलोचना की थी। वो इस बारे में बात करने से भी पीछे नहीं हटी कि भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा किए गए बलिदानों को एक कथा के निर्माण के लिए कैसे मिटा दिया गया और यह बताया गया कि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन एक शांतिपूर्ण अहिंसक आंदोलन था।

बताते चलें कि पिछला दशक JNU की छवि पर धब्बा रहा है। इसने केवल अलगाववाद और आतंकवाद के मुद्दों की अगुवाई के लिए सुर्खियां बटोरी। विश्वविद्यालय ने केवल वैचारिक सैनिकों का निर्माण किया, जिन्होंने सोचा था कि अफ्रीकी अध्ययन में पीएचडी पूरा करना ही समाज में योगदान करने का एकमात्र तरीका है। हालांकि, अब यह सब बदल रहा है और उम्मीद है कि जल्द ही JNU अपनी पुरानी स्थिति में वापस लौट जाएगा!

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