“कनाडा हमेशा शांतिपूर्ण विरोध और मानवाधिकारों के अधिकार के लिए खड़ा रहेगा।“ “कनाडा हमेशा दुनिया भर में कहीं भी शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार के लिए खड़ा रहा है। हम किसान आंदोलन से उपजे तनाव को कम करने और बातचीत की दिशा में बढ़ते कदमों को देखकर खुश हैं।” ये वाक्य आपने किसान आंदोलन के समय जरूर सुने होंगे। ये शब्द हैं कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के। पर, कनाडा के प्रधानमंत्री शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार के संवाहक तो बन नहीं पाये, उल्टे कथनी और करनी में अंतर के मानद उदाहरण बन गए हैं। दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाले ट्रूडो के देश में जब ट्रक चालकों ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन प्रारम्भ किया, तब ट्रूडो बिलबिलाने लगे और अपने पारिवारिक परंपरा का पालन करते हुए आपातकाल लगा दिया और अब वो लोक व्यवस्था की दुहाई दे रहे हैं।
जानें क्या है पूरा मामला?
दरअसल, कनाडा इस समय ट्रक ड्राइवरों के विरोध का सामना कर रहा है, जिन्हें ‘Freedom convoy’ कहा जा रहा है। COVID-19 से जुड़े सामाजिक प्रतिबंधों और वैक्सीन जनादेश के विरोध में ये ट्रक चालक शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहें है। ट्रक चालकों ने ओटावा में लगभग 400 ट्रकों की मदद से नाकाबंदी कर रखी है, तो वही अल्बर्टा और मैनिटोबा प्रोविन्स के सीमा क्षेत्रों को भी बंद कर दिया है।
इस विरोध ने सीमा पार व्यापार में बाधा डाली है और जस्टिन ट्रूडो सरकार की प्रशासनिक अक्षमता को सतह पर ला दिया है। इसलिए लोक व्यवस्था की दुहाई देते हुए कनाडा के पीएम ने आपातकाल की घोषणा कर दी है। पर, यही लोक व्यवस्था का मामला उन्हें भारत के संदर्भ में समझ में नहीं आया, जब दिल्ली को कब्जे में ले लिया गया था।
ज़रा सोचिए, भारत में मोदी सरकार ने ऐसा निर्णय लिया होता, तो अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने अब तक हाहाकार मचा दिया होता। ऊपर से ट्रूडो सरकार की तो आदत रही है दूसरे देश के आंतरिक मामलों में दखल देने की। पर कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों ने वर्तमान प्रधानमंत्री के फैसले की प्रशंसा की है। ट्रूडो के कैबिनेट मंत्रियों के अनुसार इस कदम से सरकार को प्रदर्शनकारियों के बैंक खातों को फ्रीज करने सहित कई कदम उठाने की अनुमति मिलेगी।
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ट्रूडो के पिता ने भी लगाया था आपातकाल
ट्रूडो ने यह आपातकाल आपात स्थिति अधिनियम, 1988 के तहत लगाया है, जो कनाडा की संघीय सरकार को अस्थायी पर निरंकुश शक्ति प्रदान करता है। इतना ही नहीं, यह अधिकारियों को लोक व्यवस्था बहाल करने के लिए कानून और अधिकारों को ताक पर रखने की अनुमति भी देता है, जिसमें सार्वजनिक सभा पर प्रतिबंध लगाना और विशिष्ट क्षेत्रों से यात्रा को प्रतिबंधित करना भी शामिल है। हालांकि, ट्रूडो और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों ने आश्वासन दिया है कि इस अधिनियम का इस्तेमाल “मौलिक अधिकारों” को निलंबित करने के लिए नहीं किया जाएगा।
ध्यान देने वाली बात है कि इससे पहले ट्रूडो के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री पियरे इलियट ट्रूडो ने भी कनाडा में आपातकाल लगाया था, पर यह क्यूबेक में फैले आतंकवाद संकट के कारण लगाया गया था न कि किसी विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए। उस समय क्यूबेक अलगाववादियों के एक समूह ने मॉन्ट्रियल में बमबारी अभियान चलाया था। उन्होंने क्यूबा के उप प्रधानमंत्री और एक ब्रिटिश राजनयिक का अपहरण कर लिया था। बाद में डिप्टी प्रीमियर पियरे लापोर्टे की हत्या भी कर दी गई। फिर भी जब ट्रूडो के पिता ने लगभग 52 साल पहले आपातकाल की घोषणा की, तो उन्होंने अपने बेटे द्वारा इस्तेमाल किए गए कानून पर नहीं, बल्कि एक पूर्ववर्ती युद्ध उपाय अधिनियम पर भरोसा किया और उनकी चुनौती नागरिक अशांति नहीं बल्कि आतंकवाद थी।
इंदिरा गांधी से की जा रही है ट्रूडो की तुलना?
बता दें कि 25 जून, 1975 को भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरे देश में राष्ट्रीय आपातकाल लागू किया था। जिससे असहमति का गला घोंटने, व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर सरकारी कार्रवाई और राज्य सत्ता के असीमित प्रयोग को रोकना था। मौजूदा समय में ट्रूडो भी ऐसा ही कर रहें है। खबर है कि ट्रूडो ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण सीमा पर भी लगभग सप्ताह भर की नाकाबंदी की है, जिसकी व्यापक रूप से आलोचना की गई है।
कनाडा के न्यायमंत्री डेविड लैमेटी ने सरकार के विशेष शक्तियों की एक विस्तृत श्रृंखला की रूपरेखा तैयार की है। जिसके अनुसार पुलिस अब नाकाबंदी में इस्तेमाल होने वाले ट्रकों और अन्य वाहनों को भी जब्त कर सकेगी। यह उपाय औपचारिक रूप से लोकतांत्रिक प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगाएगा। सरकार शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए जमा होने पर भी प्रतिबंध लगाएगी। ऐसे में ट्रक संचालक अब कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ काम करने के लिए मजबूर होंगे। राष्ट्रीय बल रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस के सदस्यों को अब प्रांतीय कानूनों और आपात स्थिति अधिनियम के तहत किए गए किसी भी संघीय आदेश को पूरा करने की अनुमति होगी।
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जब अपने पर पड़ी तो बिलबिलाने लगे ट्रूडो
कनाडा की उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने भी कई उपायों की रूपरेखा तैयार की है, जिसमें ऑनलाइन क्राउड फंडिंग प्लेटफार्मों को नियंत्रित करने के लिए एंटी-मनी-लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद-विरोधी शक्तियों का विस्तार शामिल है, जिसने विरोध प्रदर्शनों को वित्तपोषित करने में मदद की है। क्रेडिट कार्ड संसाधकों और धन उगाहने वाली सेवाओं को कनाडा की धन-शोधन-विरोधी एजेंसी को किसी भी नाकाबंदी-संबंधित अभियानों की रिपोर्ट करनी होगी। बैंकों के साथ पुलिस सूचनाओं का आदान-प्रदान करेगी, जिससे प्रदर्शनकारियों के व्यक्तिगत और व्यावसायिक खातों को फ्रीज किया जा सकता है। बीमा कंपनियों को नाकेबंदी में इस्तेमाल होने वाले किसी भी वाहन का बीमा रद्द करना होगा।
यह ट्रूडो का मानसिक दोगलापन नहीं तो क्या है? जब दिल्ली को घेरा गया और इसके सीमाई क्षेत्र पर उत्पात मचाया गया, तब यही ट्रूडो शांतिपूर्ण प्रदर्शन और अधिकार की बात सीखा रहे थे। आज जब ऐसी ही स्थिति कनाडा में उत्पन्न हुई, तो ट्रूडो अपनी औकात पर आ गए। उन्होंने कहा कि नाकाबंदी हमारी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रही है और सार्वजनिक सुरक्षा को खतरे में डाल रही है। उन्होंने यह भी कहा कि हम अवैध और खतरनाक गतिविधियों को जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकते हैं और न ही देंगे। ऐसे में ट्रूडो और कनाडा को भारत से सीखना चाहिए कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार और नागरिकों के आलोचना को कैसे झेलना चाहिए। आपातकाल इसका उपाय नहीं है!