#KhalistanGate: केजरीवाल का पंजाब जीतने का सपना अब कभी हकीकत नहीं हो पाएगा!

औंधे मुंह गिरे केजरीवाल!

Kejriwal

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हम तो डूबेंगे सनम, साथ जनता को भी ले डूबेंगे। लीक से हटकर काम करना हिम्मत की बात होती है, पर ऐसा भी क्या हटकर करने की तमन्ना, जो देश को ही विभाजित करने का षड्यंत्र रच दे। जी हाँ, यहां बात हो रही है उस राजनेता की, जिसके मन में स्वयं को पंजाब का सीएम या विभाजित राष्ट्र खालिस्तान का पहला पीएम बनने की सनक चढ़ी हुई है, नाम है अरविंद केजरीवाल! यूं तो अपनी झूठी प्रचार मशीनरी के माध्यम से केजरीवाल इस बार पंजाब में सरकार बनाने की स्थित में लगभग आ चुके थे, पर उनके खालिस्तान प्रेम ने उनकी और उनकी पार्टी का बंटाधार सुनिश्चित कर दिया। पंजाब में सरकार बनाने की रेस में सबसे पहले आ चुकी आम आदमी पार्टी के लिए अब सरकार बनाना तो दूर, प्रमुख विपक्षी पार्टी बनना भी मुश्किल जान पड़ता है!

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औंधे मुंह गिरे केजरीवाल!

दरअसल, पंजाब विधानसभा चुनाव में इस बार आम आदमी पार्टी ने पूरा ज़ोर लगते हुए साम-दाम-दंड-भेद की नीति चलनी चाही, पर बेचारे औंधे मुंह गिर पड़े। यूं तो इस बार अरविंद केजरीवाल ने राजधानी दिल्ली में हुए काम पर वोट लेने की योजना बनाई थी, भले ही काम हुआ या नहीं, वो अलग बात है! परंतु जिस प्रकार देशभर में अरविंद केजरीवाल ने “आप मॉडल” को प्रचारित करने के लिए दिल्ली का राजस्व अन्य चुनावी राज्यों में उड़ाया, उसे देखकर लोगों के मन में यही व्याप्त हो गया कि अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली को संवार दिया है।

इस ढर्रे पर पंजाब की जनता को ले जाने की योजनागत तरीके से केजरीवाल और उनके नेताओं ने प्लानिंग की थी! वो इसमें शत-प्रतिषत सफल भी होते दिख रहे थे, पर जैसे ही पंजाब को विभाजित करने और खालिस्तानी राष्ट्र का प्रथम पीएम बनने की माननीय केजरीवाल की पुरानी आरज़ू जनता के समक्ष आई, पंजाब क्या देशभर में इनकी थू-थू हो रही है।

यदि पंजाब की बात करें, तो वह एक ऐसा राज्य है जहां भाजपा उतनी मजबूत नहीं है, जितना वर्चस्व कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) का है। कम से कम, वर्ष 2017 तक तो ऐसा ही था। वर्ष 2017 के बाद से पांच वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। सत्तारूढ़ कांग्रेस ने चार महीने पहले अपने विजयी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को बर्खास्त कर दिया था और अब पहली बार सरकार किसी दलित के नेतृत्व में है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भ्रष्टाचार के आरोपों और कुप्रबंधन के बोझ का सामना कर रहे गुट-विरोधी दल का नेतृत्व करते हैं। फिर भी कांग्रेस दावेदार बनी हुई है।

किसान आंदोलन के दौरान भाजपा से अलग हुए अकालियों ने अपनी अपील बढ़ाने के लिए दलित वोट हासिल करने की उम्मीद में बसपा को अपने खेमे में शामिल कर लिया। किसान आंदोलन से पस्त भाजपा अमरिंदर सिंह और उनकी नई पार्टी को सहयोगी के रूप में लेकर है और पहली बार सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है। हर जगह की तरह, भाजपा का मुद्दा डबल इंजन वाला विकास और धार्मिक संबंध है। लेकिन पंजाब में अब तक बड़ी कहानी “आप” की थी, पर अब वो भी अधर में लटकी मालूम पड़ रही है।

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केजरीवाल का खालिस्तानी गठजोड़

यूं तो वर्ष 2019 के आम चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में पुनः बेहद खराब प्रदर्शन के बाद पंजाब में वापसी की थी। उसके बाद अब पंजाब चुनाव में इस पार्टी ने अपने एकमात्र सांसद, पूर्व कॉमेडियन भगवंत मान को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है। पर बात वहीं की वहीँ है कि अरविन्द केजरीवाल का खालिस्तान प्रेम उन्हें जीता-जिताया चुनाव हराने की ओर ले चला है। इसका पहला कारण केजरीवाल के पूर्व सहयोगियों- कुमार विश्वास और कांग्रेस पार्टी की नेता अलका लांबा हैं।

दरअसल, कुमार विश्वास ने ही सबसे पहले केजरीवाल का खालिस्तानी गुट के लोगों के साथ मेल-जोल और पिछले चुनाव में सहयोग तक लेना का खुलासा कर दिया। उसके बाद अलका लांबा ने दिल्ली के दावों पर केजरीवाल सरकार की पोल खोलते हुए पंजाब के लोगों को आगाह किया कि केजरीवाल का सपना दिल्ली से ही पंजाब की सरकार चलाने का है। रही बची कसर, सिख फॉर जस्टिस नामक खालिस्तानी संगठन के पत्र ने पूरी कर दी, जिसमें केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को आगामी पंजाब विधानसभा चुनावों में वोट करने की अपील की गई थी।

खालिस्तानी आतंकवादी संगठन सिख फॉर जस्टिस से होने का दावा करने वाला एक पत्र सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल रहा है, जिसमें संगठन ने आम आदमी पार्टी के लिए मुख्यमंत्री पद का चेहरा भगवंत मान के लिए अपना समर्थन दिया है। पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले संस्थापक और नामित आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने पत्र में लोगों से विधानसभा चुनाव में आप को वोट देने का आग्रह किया, ताकि वे एक बार फिर “अपना लक्ष्य (खालिस्तान बनाने के लिए) पूरा करने की उम्मीद कर सकें।” उन्होंने यह भी दावा किया कि एसएफजे ने पिछले विधानसभा चुनावों में आप का समर्थन किया था। इस पत्र को लेकर खलबली मचते ही पन्नू की ओर से बयान आया कि वायरल हो रहा पत्र फेक है।

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और कितना झूठ बोलोगे केजरीवाल!

ध्यान देने वाली बात है कि जिस तरह आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का बीते कुछ दिनों से खालिस्तानी प्रेम जगज़ाहिर हुआ है, उससे न केवल आम आदमी पार्टी को वोट देने का मन बना चुकी पंजाब की जनता इस सत्यता को जानकर आहत है, निस्संदेह केजरीवाल के विरोध में देश और मिटटी से प्रेम करने वाली पंजाबी कौम देश और मातृभूमि के साथ खड़ी होती दिख रही है। वो स्वयं खालिस्तान की मांग करने वालों की इस चुनाव में ईंट से ईंट बजाने का मन बना चुकी है, जिसका पूरा फायदा निश्चित रूप से एनडीए गठबंधन उठाने वाली है, जिसमें भाजपा, अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस और सुखदेव सिंह ढींढसा-नीत शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) शामिल है।

भले ही केजरीवाल इन आरोपों को लेकर जो भी सफाई दे दें, लेकिन जिस व्यक्ति के मुंह से आजतक खालिस्तान के विरोध में दो शब्द न निकले हों, जनता कैसे मान ले कि यह सब झूठ है? इतने विरोध के बाद भी अरविन्द केजरीवाल ने अब तक एक शब्द खालिस्तानी मानसिकता रखने वालों के विरुद्ध नहीं बोला है, क्योंकि देश और पंजाब जाए चूल्हे में उनका फाइनल एजेंडा तो खालिस्तानी प्रेम ही है! दिल्ली को शराब युक्त और पंजाब को शराब मुक्त करने वाले अरविंद केजरीवाल के ढकोसले और दो मुंही बातों का अब बैंड बजने वाला है और इनकी खालिस्तानी फैक्ट्री पर आने वाले सभी चुनावों में हार के माध्यम से ताला लगने वाला है। निस्संदेह, पंजाब अब सुरक्षित हाथों में जाना चाहता है, पंजाब को समझ आ गया है कि केजरीवाल के साथ जाना, मतलब पंजाब को खालिस्तान के हवाले करने जैसा है!

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