दुर्भाग्य है हमारा कि अब हमें लता मंगेशकर का मधुर स्वर फिर कभी सुनने को नहीं मिलेगा. जिनके मिश्री सी मधुर ध्वनि से पूरा देश आह्लादित हो उठता था, जिस गायिका के एक गीत के लिए अनेकों श्रोता अधीर हो जाते थे, अब वह फिर कभी सुनाई नहीं देगी. आज हमारे बीच से लता मंगेशकर की आत्मा परलोक के लिए प्रस्थान कर चुकी है. वह 92 वर्ष की थी और पूर्व में कोरोना से संक्रमित भी हुई थी. उनके परलोक गमन से पूरा देश शोकाकुल है. दूसरी ओर भारत सरकार ने दो दिनों का राष्ट्रीय शोक मनाए जाने की घोषणा की है.
इस देश को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में कुछ लोगों ने स्पष्ट रूप से प्रतीक चिन्हों की भूमिका निभाई है और ‘लता मंगेशकर भी उन्हीं में से एक हैं!‘ इनका जन्म 28 सितम्बर, 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था. इनकी माता का नाम शेवन्ती देवी और पिता का नाम पंडित दीनानाथ मंगेशकर था. दीनानाथ की मां येसूबाई देवदासी थी, जो गोवा के ‘मंगेशी’ गांव में रहती थी और मंदिरों में भजन-कीर्तन कर जीवनयापन करती थी. यहीं से दीनानाथ को ‘मंगेशकर’ नाम का टाइटल मिला. सामाजिक कुरीतियों को आधार बनाकर अपनी मूल संस्कृति से घृणा न करके मंगेशकर परिवार ने उसी संस्कृति का पुनरुद्धार करने का बीड़ा प्रारंभ से उठाया. दीनानाथ मंगेशकर गायक के साथ थिएटर कलाकार भी थे, जिन्होंने मराठी भाषा में कई संगीतमय नाटकों का निर्माण किया था.
लता मंगेशकर, अपने पिता की पांच संतानों में सबसे बड़ी थी. परंतु क्या आपको ज्ञात है कि उनका मूल नाम लता नहीं था? एक समय दीनानाथ मंगेशकर ने ‘भावबंधन’ नाटक में काम किया, जिसमें एक महिला किरदार का नाम ‘लतिका’ था. दीनानाथ मंगेशकर को यह नाम इतना पसंद आया कि उन्होंने जल्दी से अपनी पुत्री ‘हेमा’ का नाम बदलकर ‘लता’ रख दिया.
और पढ़ें: कैसे अखिल भारतीय फिल्में बॉलीवुड के वर्चस्व को ध्वस्त करने चली हैं
1948 में ‘हिट’ हुआ पहला गाना
लता मंगेशकर का बालपन संगीतमय था. पिता दीनानाथ मंगेशकर नाट्यमंच से संबंधित थे और बाकी परिवार भी धीरे-धीरे संगीत के क्षेत्र में अपनी धाक जमाने में जुटा हुआ था. हालांकि, इस परिवार पर वज्रपात तब हुआ, जब वर्ष 1942 में हृदयाघात से पंडित दीनानाथ मंगेशकर की असामयिक मृत्यु हो गई. अब परिवार को संभालने का भार किशोरी लता और उनकी विधवा मां के कंधों पर था.
परंतु, दोनों ने हार नहीं मानी. उनका साथ दिया मास्टर विनायक ने, जिन्होंने लता का फिल्म उद्योग से परिचय कराया. मात्र 13 वर्ष की आयु में मराठी फिल्म उद्योग के माध्यम से लता मंगेशकर ने भारतीय फिल्म उद्योग में कदम रखा. छोटे-मोटे फिल्मों में गाते-गाते आखिरकार लता मंगेशकर को सफलता प्राप्त हुई वर्ष 1948 में, जब ‘मजबूर’ फिल्म का हिट गीत ‘दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का नहीं छोड़ा’ उन्हें गाने को मिला, जिससे उन्हें हिन्दुस्तानी फिल्म उद्योग यानी बॉलीवुड में पहचान मिली. लेकिन अगले ही वर्ष प्रदर्शित ‘महल’ के सुप्रसिद्ध ‘आएगा आनेवाला आएगा’ ने उन्हें पूरे देश में प्रख्यात कर दिया और जल्द ही वह ‘सुर साम्राज्ञी’ से लेकर ‘Nightingale of India’ तक के नाम से प्रख्यात हो गईं थी.
मंगेशकर के लिए आसान नहीं रहा बॉलीवुड का सफर
परंतु लता मंगेशकर के लिए यह राह कतई सरल नहीं थी. उन्हें अपने परिवेश, अपने आचरण और अपनी संस्कृति पर अडिग रहने के लिए उस उद्योग से उलाहने सुनने पड़ते थे, जिसकी नींव ही दोगलेपन पर टिकी है! उदहारण के लिए एक समय किसी जीएम दुर्रानी नामक संगीतकार की ख्याति उद्योग में थी. लेकिन वह बेहद ही अशिष्ट और अझेल थे. अगर कोई नया म्यूजिक डायरेक्टर उनके पास पहुंचता, तो दुर्रानी उसको अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे. एक समय संगीतकार नौशाद, लता मंगेशकर और दुर्रानी के गाने की रिकॉर्डिंग कर रहे थे. उस वक्त दुर्रानी का व्यवहार शर्मीली और विनम्र लता के प्रति बेहद रूखा था, उनके व्यवहार में अहंकार झलकता था. नौशाद खुद उस घटना के साक्षी थे.
उनके अनुसार, “उस समय सिर्फ दो माइक होते थे. एक संगीतकारों के लिए, दूसरा गायकों के लिए. इस तरह वे दोनों (दुर्रानी और लता) आमने-सामने खड़े थे. जैसे ही दुर्रानी की लाइन पूरी होती, वे उनके साथ काफी बुरा और अजीब व्यवहार करने लगते थे.” यही नहीं, दुर्रानी ने लता के सादे पहनावे का मजाक उड़ाते हुए लखनवी उर्दू में कहा था कि “लता, तुम रंगीन कपड़े क्यों नहीं पहनती? तुम कैसे इस तरह सफेद चादर लपेटकर चली आती हो.” परन्तु लता ने स्पष्ट कहा, “मैं सोचती थी कि ये आदमी मेरे पहनावे की जगह मेरे गायन पर ज्यादा ध्यान देगा. उसी पल मैंने फैसला किया कि मैं उस कलाकार के साथ फिर नहीं गाऊंगी.” बिना ढिंढोरा पीटे ऐसा सशक्त नारीवाद क्या आज की कोई कलाकार दिखा पायेगी?
और पढ़ें : लता मंगेशकर घृणा से भरे फिल्म उद्योग में आगे भी बढीं और वीर सावरकर का गुणगान भी किया
कभी भी नहीं किया मूल्यों से समझौता
लेकिन ये तो कुछ भी नहीं है. यह वो लता मंगेशकर हैं, जिन्होंने अपना करियर वर्ष 1942 में प्रारंभ किया और वो विश्व में 36 भाषाओं में 50,000 से भी अधिक गीतों को अपना मधुर स्वर प्रदान कर चुकी हैं. इनके स्वर में इतनी शक्ति थी कि वो पूरे देश को आज भी अश्रुपूर्ण कर सकती हैं, जैसे उन्होंने अपने देशभक्ति से परिपूर्ण गीतों ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’, ‘वंदे मातरम’ इत्यादि से किया था. ‘रंग दे बसंती’ के वैचारिक दृष्टिकोण पर हम एक गहन चर्चा कर सकते हैं, परन्तु इस बात से बिलकुल पीछे नहीं हट सकते कि लता जी के ‘लुका छुप्पी’ ने जिस प्रकार से हमें भावुक किया था, उसके लिए हमारे पास शायद ही कोई शब्द होंगे.
परंतु, जिस उद्योग में एक संस्कृति और एक धर्म के विरुद्ध असीमित, अनंत घृणा रही, वहां धारा के विरुद्ध बहकर भी लता मंगेशकर ने अपने करियर को यथावत रखा और अपनी संस्कृति की रक्षा भी की. जिस उद्योग में भारत के पक्ष मात्र में बोलने के लिए ही बड़े से बड़े एक्टर्स एवं गायकों को वामपंथी गैंग ‘कैंसल’ कर देता हो, वहां लता मंगेशकर ने विनायक दामोदर सावरकर जैसे प्रख्यात एवं ओजस्वी क्रांतिकारी को आयुपर्यंत अपना समर्थन दिया.
जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा. जिनके नाम मात्र से आज भी देश के वामपंथी कंपायमान हो जाएं, जिसके लिए आज भी इस बात का भरपूर प्रयास किया जाए कि कैसे भी करके वीर सावरकर और देश के प्रति उनके योगदानों को इतिहास से मिटा दिया जाए, उन वीर सावरकर की सेवा लता मंगेशकर भी करती थी और उनके योगदानों को नमन भी करती थी. परंतु किसी भी दिन उन्होंने अपने इस मूल स्वभाव से न समझौता किया और न कभी आजकल के वामपंथी गुंडों के गुंडई के समक्ष घुटने टेके.
वीर सावरकर को ‘तात्या’ के नाम से संबोधित करती थी लता
वर्ष 2021 में ही वीर सावरकर की जयंती के शुभ अवसर पर लता मंगेशकर ने ट्वीट किया था, “नमस्ते, आज वीर सावरकर जी का जन्मदिवस है, जो भारत मां के एक सच्चे सुपुत्र थे, एक देशभक्त थे एवं मेरे लिए पिता समान थे. मैं उन्हें नमन करती हूं.” बता दें कि जीवन भर लता मंगेशकर उन्हें ‘तात्या’ के उपनाम से संबोधित करती थी, जो मराठी में पिता या पिता समान संबंध के लिए उपयोग में लाया जाता है.
नमस्कार.भारतमाता के सच्चे सपूत, स्वतंत्रता सेनानी,मेरे पिता समान वीर सावरकर जी की आज जयंती है. मैं उनको कोटी कोटी प्रणाम करती हूँ. pic.twitter.com/mtuznsykHl
— Lata Mangeshkar (@mangeshkarlata) May 28, 2021
यही नहीं, वीर सावरकर के मंगेशकर, विशेषकर लता मंगेशकर और उनके पिता एवं नाट्य कलाकार दीनानाथ मंगेशकर के साथ घनिष्ठ संबंध थे. ऐसे में वीर सावरकर की जयंती पर उन्होंने वीर सावरकर द्वारा रचित गीत शत जन्म शोधितन को शेयर किया, जो उन्होंने दीनानाथ के नाटक सन्यास्त खड़ग के लिए लिखा था. लता मंगेशकर ने ट्वीट किया कि “वीर सावरकर जी और हमारे परिवार के बहुत घनिष्ठ संबंध थे, इसीलिए उन्होंने मेरे पिता की नाटक कंपनी के लिए नाटक ‘सन्यास्त खड़ग’ लिखा था. इस नाटक का पहला प्रयोग 18 सितंबर 1931 को हुआ था, इस नाटक में से एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ” –
Veer Savarkar ji aur hamare pariwar ke bahut ghanisht sambandh the,isiliye unhone mere pita ji ki natak company ke liye natak “ Sanyasta Khadag “ likha tha. Is natak ka pehla prayog 18th Sep 1931 ko hua tha,is natak mein se ek geet bahut lokpriya hua. https://t.co/RMzBUc69SB
— Lata Mangeshkar (@mangeshkarlata) September 19, 2019
गौरतलब है कि जिस देश में केवल अपनी ‘मन की बात’ रखने पर आप पर तरह-तरह के लांछन लगाए जाए और उलाहने दिए जाए, जिस बॉलीवुड में पाश्चात्य संस्कृति का अंधाधुंध नक़ल करने को लोग अपनी नीति मानें, वैसे उद्योग में रहकर लता मंगेशकर जैसी ‘सुर साम्राज्ञी’ ने देश के कोने-कोने में अपनी मधुर वाणी से सबको मोहित किया और दशकों तक देश के हृदय में अपना स्थान अक्षुण्ण रखा. ये देश उनकी कमी को शायद ही पूर्ण कर पायेगा.