पिछले कुछ वर्षों में भारत को दुनिया भर में सैन्य उपकरणों के सबसे बड़े आयातकों में से एक के रूप में जाना जाने लगा है। पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार देश के रक्षा विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करने वाली अपनी नीतियों से इसे ठीक करती रही है। देसी कंपनियों को बढ़ावा देने और घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने के उद्देश्य से सरकार की ओर से कई तरह के कदम उठाए गए हैं, जिसका परिणाम अब दिखने लगा है। मौजूदा समय में भारत 70 से ज्यादा देशों को सैन्य उपकरणों का निर्यात कर रहा है। साथ ही भारत रक्षा उपकरणों के मामले में भारत अब आत्मनिर्भर बनने की ओर कदम बढ़ा चुका है। इसी बीच पीएम मोदी ने हथियारों के स्वदेशीकरण और रक्षा उपकरणों में आयात को लेकर कुछ ऐसी बातें कही है, जो आपको जाननी चाहिए।
आयातक से निर्यातक बन गया देश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रक्षा निर्माण में स्वदेशी अनुसंधान और विकास पर जोर देते हुए कहा है कि अभिनव और अद्वितीय उत्पाद जो विरोधी को परास्त करने की क्षमता रखते हैं, वो केवल घरेलू प्रयासों के माध्यम से विकसित किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रयासों के लिए बजट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा आरक्षित किया गया है और यह आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का एक सकारात्मक खाका है। बीते दिन शुक्रवार को एक वर्चुअल सेमिनार में उद्योग जगत के नेताओं और अधिकारियों से बातचीत करते हुए पीएम ने कहा कि भारत अतीत में एक बड़ा हथियार आयातक रहा है और इसके परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार के आरोप और अधिग्रहण में देरी हुई है, जिससे सुरक्षा बलों को नुकसान हुआ है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पहले के समय में, विदेशी कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण आयातित रक्षा उपकरणों के साथ रिश्वतखोरी के आरोपों को जोड़ा जाता था, विवाद होता था। यह अक्सर इस कारण होता था, क्योंकि रक्षा उपकरण बनाने वाली विदेशी कंपनियों अपने प्रतिस्पर्धियों के उत्पादों को बदनाम करने के लिए उन्हें निशाना बनाकर अभियान चलाती थी।
उन्होंने कहा, “इससे भ्रम एवं संदेह पैदा हुआ और यहां तक कि भ्रष्टाचार करने के लिए दरवाजे भी खुल गए। इस पर बहुत भ्रम पैदा किया जाता था कि कौन सा हथियार अच्छा है, कौन सा नहीं है. कौन सा उपयोगी है और कौन सा नहीं। रक्षा उपकरणों के उत्पादन के क्षेत्र में आत्मानिभर्ता इस समस्या का भी समाधान है।” प्रधानमंत्री मोदी ने निजी उद्योग के मुद्दे पर कहा कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास बजट का 25 प्रतिशत उद्योग और शिक्षा के लिए था। उन्होंने कहा, “हम निजी उद्योग को भागीदार के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, हमने 54,000 करोड़ रुपये के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं, जबकि 4.5 लाख करोड़ रुपये के अनुबंध पाइपलाइन में हैं। जब हम आयात करते हैं, तो खरीद प्रक्रिया इतनी लंबी होती है कि जब तक इसे हासिल किया जाता है, तब तक यह पुरानी हो जाती है। पीएम मोदी के अनुसार, भारत जल्द ही उन हथियारों और प्रणालियों की एक नई सूची को अधिसूचित करेगा, जिन्हें आयात नहीं किया जा सकता है। भारत के रक्षा उद्योग के स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह तीसरी ऐसी सूची होगी।
भारत 209 हथियारों के आयात पर लगा चुका है बैन
भारत इससे पहले 2 बार ऐसी सूची अधिसूचित कर चुका है, जिनमें 209 हथियार और प्रणालियां के आयात पर बैन लगाने की बात कही गई थी। इस सूची में आर्टिलरी गन, मिसाइल डिस्ट्रॉयर, शिप-बोर्न क्रूज़ मिसाइल, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट, लाइट ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, लॉन्ग-रेंज लैंड-अटैक क्रूज़ मिसाइल, बेसिक ट्रेनर एयरक्राफ्ट, मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर, असॉल्ट राइफल, स्नाइपर राइफल आदि शामिल हैं। मिनी-यूएवी, निर्दिष्ट प्रकार के हेलीकॉप्टर, अगली पीढ़ी के कोरवेट, एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (AEW&C) सिस्टम, टैंक इंजन और मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल सिस्टम को भारत द्वारा अपने स्वदेशीकरण प्रयासों के लिए पहले ही सूचीबद्ध किया जा चुका है। भारत रक्षा क्षेत्र में अपनी ‘मेक इन इंडिया‘ पहल को बढ़ावा देना चाहता है। पहल के एक हिस्से के रूप में, यह प्रमुख हथियारों और हथियार प्रणालियों के उत्पादन को स्थानीय बनाने की कोशिश कर रहा है। पीएम मोदी ने आगे कहा कि स्वदेशीकरण न केवल रक्षा उद्योग को मजबूत करने वाला है, बल्कि रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार से निपटने में भारत की मदद भी करने वाला है।
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सरकार के बजट से भी मिले हैं संकेत
बताते चलें कि इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट में घोषणा की थी कि वर्ष 2022-23 में रक्षा क्षेत्र के लिए पूंजीगत खरीद बजट का 68 प्रतिशत स्थानीय उद्योग के लिए रखा जाएगा। जबिक पिछले वित्त वर्ष में यह 58 फीसदी ही था। सरकार के इस निर्णय का उद्देश्य रक्षा उपकरणों के आयात पर देश की निर्भरता को कम करना और आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत अधिक ‘आत्मनिर्भर’ रक्षा क्षेत्र बनाना है। ध्यान देने वाली बात है कि भारत अब सैन्य संसाधनों और उपकरणों का ग्राहक होने के बजाय, अब इसके सबसे बड़े व्यापारी बनने की ओर कदम बढ़ा रहा है। भारत के पास सबसे बड़ा बाजार है। भारत के पास आधारभूत संरचना और अभियंताओं का एक बड़ा वर्ग भी है, जो देश के सैन्य बाजार को नैसर्गिक रूप से स्वदेशी और स्वावलंबी करने में सक्षम हैं। अतः भारत अब इसी बराबरी के मानदंडों पर अन्य निर्यातक देश के साथ गंठजोड़ करते हुए अपने सैन्य बाजार को वृहद और विस्तृत बनाना चाहता है। इससे न सिर्फ रोजगार पैदा होंगे, बल्कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगा एवं साथ ही भारत का विदेशी मुद्रा भंडार और अर्थ शक्ति भी बढ़ेगी। इसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु मोदी सरकार का प्रयास जारी है!