मौसमी सिंह कभी बरखा दत्त और अंजना नहीं बन सकती, लेकिन ये हैं कि मानती ही नहीं!

चाटुकारिता और मौसमी सिंह एक दूसरे के पर्याय हैं!

मौसमी सिंह

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पत्रकारिता क्या है? आप कहेंगे लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ तथा समाज और शासन को दर्पण दिखाने का एक माध्यम। पर, यह सब एक आदर्शवादी वाक्य है। यथार्थ में पत्रकारिता एक पेशा भी है। इस पेशे में संयम, समाज, सत्य और सदाचार की आवश्यकता होती है, पर शीघ्रताशीघ्र सफलता प्राप्त करने के लिए कुछ लोग इसे चाटुकारिता, हठधर्मिता और निर्लज्जता के पेशे में परिवर्तित कर देते है। उन्हीं में से एक हैं, इंडिया टुडे ग्रुप के नेशनल ब्यूरो में डिप्टी एडिटर मौसमी सिंह! वह मणिपाल संचार संस्थान, मणिपाल 2004 बैच की पूर्व छात्रा हैं और नेटवर्क 18 ब्रांड IBN7 के साथ वरिष्ठ संवाददाता के रूप में कार्य कर चुकी हैं। मौजूदा समय में मौसमी सिंह इंडिया टुडे ग्रुप के नेशनल ब्यूरो में डिप्टी एडिटर हैं।

वैसे तो मौसमी सिंह स्वयं को एक राजनीतिक पत्रकार बताती हैं, पर असल में वो कांग्रेस कार्यकर्ता और हिन्दू-विरोधी वक्ता हैं, जिन्होंने पत्रकारिता का चोगा ओढ़ लिया है! ये हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि समय-समय पर हिंदू विरोध को लेकर गलती से उन्होंने कई सबूत छोड़े हैं, जिसके कारण वो सोशल मीडिया पर हंसी का पात्र भी बनती रही हैं। पर वो सुधरती नहीं हैं और इसके भी अपने कारण हैं! अगर आप सोशल मीडिया पर हंसी के पात्र भी बनते हैं और तुच्छ कारणों के लिए चर्चे बटोरते हैं, तो भी धन की वर्षा और राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा तो होगी ही।

जब कांग्रेस कार्यकर्ता बनी मौसमी सिंह!

अब जैसे उनकी चाटुकारिता का एक उदाहरण देखिये, वर्ष 2019 के आम चुनावों के दौरान प्रियंका गांधी को पार्टी का प्रभारी नियुक्त करने के कांग्रेस पार्टी के फैसले की घोषणा के तुरंत बाद प्रयागराज में प्रियंका गांधी की रैली होने वाली थी। इंडिया टुडे समूह के तरफ से मौसमी सिंह प्रियंका गांधी के स्वागत और जश्न के कार्यक्रमों को रिकॉर्ड करने के लिए आनंद भवन में मौजूद थी। पर, 2019 में मोदी लहर के आगे मृत पड़ी कांग्रेस में कोई उत्साह नहीं था। अतः मौसमी सिंह ने पत्रकारिता छोड़, तुरंत चाटुकारिता का काम संभाल लिया! वो कैमरे पर ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रियंका गांधी वाड्रा के बारे में उत्साहित दिखने और नारे लगाने के ‘निर्देश’ देने लगी।

उनके इस कृत्य से अजीब स्थिति उत्पन्न हो गयी। जब कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं बचा, तो पत्रकार महोदया ने पत्रकारिता के सिद्धांत को साइड में रखकर खुद ही कार्यकर्ता बन गई। सोशल मीडिया पर जब उनकी वीडियो वायरल हुई, तो उन्होंने माफी मांगने के बजाए बड़ी बेशर्मी से खुद का बचाव किया। खैर, फुटेज तो मिल ही गई जैसे भी मिले। क्या पता उन्हें टिकट भी मिल जाये?

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कश्मीर की रिपोर्टिंग को लेकर मचा था बवाल

अब हठधर्मिता का एक अन्य उदाहरण देखिये। जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटी, सरकार ने वहां की संवेदनशील स्थिति को देखते हुए कुछ समय के लिए मीडिया और राजनीतिक दलों के जाने पर पाबंदी लगा दी। पर, इंडिया टुडे की ओर से रिपोर्टिंग करने के लिए मौसमी सिंह को भेजा गया। चूंकि श्रीनगर एक रक्षा हवाई अड्डा है, इसलिए वहां तस्वीरें लेना और वीडियो शूट करना सख्त वर्जित है। आमतौर पर ऐसी घोषणा पायलट द्वारा भी की जाती है, जब विमान लैंड करने वाला होता है।

इसीलिए एक पुलिसकर्मी ने ये सारी बातें बताते हुए मौसमी सिंह को वीडियो बनाने से मना कर दिया। पर, मौसमी सिंह तो मौसमी सिंह हैं, राष्ट्रहित जाये भाड़ में, उन्हें तो बस फुटेज से मतलब है। अतः सिंह ने अधिकारी के खिलाफ हंगामा खड़ा कर दिया और आरोप लगाया कि महिला पुलिसकर्मियों द्वारा उसके साथ मारपीट की गई, जिसके परिणामस्वरूप उसके हाथों पर कुछ मामूली खरोंच और मामूली चोट के निशान थे।

पर, जब वीडियो जारी हुआ तो ऐसा कुछ भी नहीं था और जबरदस्ती के आरोप स्पष्ट रूप से नदारद थे। ऐसे में पुलिसवाले के सम्मान, राष्ट्रहित और पत्रकारिता के सिद्धांत तीनों की हत्या हो गयी, पर उससे मौसमी सिंह को फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि फुटेज आखिरकार यहां भी मिल गयी कि इंडिया टुडे की एक पत्रकार कश्मीर के हालत की रिपोर्टिंग करने के लिए शासन से भिड़ गयी।

मौसमी सिंह का हिंदू विरोध

इतना ही नहीं एक बार तो मौसमी सिंह कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर को बचाने के लिए इस हद तक चली गई कि उन्होंने मणिशंकर द्वारा एक पत्रकार के साथ किए गए दुर्व्यवहार को न सिर्फ एजेंडा बता दिया, बल्कि उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी रिपब्लिक टीवी के एक रिपोर्टर को भी कर्तव्य निभाने से रोका। वायरल वीडियो में मौसमी सिंह को मणिशंकर अय्यर का पक्ष लेते हुए और साथी पत्रकार से अपने एजेंडे को आगे नहीं बढ़ाने के लिए कहते हुए देखा गया।

हाल ही में दो अन्य अवसरों पर कांग्रेस चाटुकारिता के अलावा मौसमी सिंह का हिन्दू विरोध देखने को मिला। जब उन्होंने काशी कॉरिडोर के निर्माण को मुसलमानों के दुख के साथ जोड़ दिया। काशी कॉरिडोर के भव्य निर्माण पर रिपोर्टिंग करने बनारस पहुंची मौसमी सिंह अचानक से एक बंगाली मुसलमान के रुदन को प्रसारित किया और इस रुदन के पीछे का कारण ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में भव्य कॉरिडोर का निर्माण बताया था।

वहीं, दूसरी ओर अभी हाल ही में यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान मुजफ्फरनगर आदि इलाकों में रिपोर्टिंग करने पहुंची मौसमी ने मतदाताओं द्वारा RLD उम्मीदवार को मत दिये जाने वाले कथन को खुलेआम प्रसारित किया, पर उसी समय गलती से बीजेपी का नाम लेनेवाले एक युवा मतदाता को बोलने से रोक दिया था।

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कांग्रेस का टिकट पाने के लिए कर रही हैं पत्रकारिता !

ऐसे में यह कहा जा सकता है कि मौसमी सिंह की पत्रकारिता उनकी मानसिक विकृति और द्विचित प्रवृति को दर्शाती है। वो पत्रकार नहीं बल्कि कांग्रेस की एक कार्यकर्ता हैं, जो पत्रकारिता शायद इसलिए कर रही हैं कि आनेवाले समय में क्या पता कांग्रेस इस चाटुकारिता के लिए उन्हें टिकट दे दे? कट्टर हिन्दू विरोधी और कांग्रेस चाटुकार होने के बावजूद भी वो बरखा दत्त नहीं बन सकती, क्योंकि उनका बौद्धिक पक्ष भी काफी कम रहा है, जो उनके रिपोर्टिंग और विश्लेषण की नादानी में दिखता है! ऐसे में या तो उन्हें कांग्रेस के कार्यालय में या पत्रकारिता के किसी अच्छे क्लास में दाखिला ले लेना चाहिए, अन्यथा पत्रकारिता में हास्य और नाटक करने के लिए उन्हे सर्वदा याद रखा जाएगा!

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