उत्तर प्रदेश चुनाव की शुरुआत से पूर्व ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे मायावती बेमन से लड़ रही हैं। परंतु अब उनके उम्मीदवारों की हरकतों को देखकर ऐसा प्रतीत होने लगा है जैसे वो मान चुके हैं कि वैचारिक रूप से बसपा का विलय भाजपा में हो चुका है। इसी उहापोह में वह अधकचरे और राजनैतिक बुद्धि हीनता वाले बयान देते रहते हैं जिसका लाभ अंततः भाजपा को मिलता हुआ दिख रहा है।
उत्तर प्रदेश में प्रथम चरण का चुनाव 10 फरवरी को संपन्न हुआ। परंतु, चुनाव से एक दिन पहले ही दादरी से बसपा के उम्मीदवार मनवीर सिंह ने ऐसा बयान दिया जिससे भाजपा को बढ़त हासिल हो गई और आगामी तीन चरणों में भी यह बयान भाजपा के लिए गेम चेंजर के रूप में काम करता रहेगा।
चुनाव प्रचार के आखिरी दिन, मंगलवार को बसपा प्रत्याशी मनबीर सिंह ने पीजी कॉलेज में मिहिर भोज की प्रतिमा के आसन पर ‘गुर्जर सम्राट मिहिर भोज, अमर रहे’ के नारे लगाए और गुलाब की पंखुड़ियों की वर्षा करते हुए ध्वज फहराया। आप सभी पाठकगणों को मिहिर भोज विवाद के बारे में स्मरण होगा। मिहिर भोज किस जाति से आते हैं इसको लेकर क्षत्रियों और गुर्जरों में मतभेद हैं।
योगी आदित्यनाथ ने सामाजिक समरसता को बनाए रखते हुए मिहिर भोज को राष्ट्रीय नायक के रूप में स्थापित कर ना सिर्फ क्षत्रियों का मान बढ़ाया बल्कि गुर्जरों की भी भावना का खास ख्याल रखा। परंतु चुनाव के एक दिन पूर्व बसपा प्रत्याशी मनबीर सिंह ने अपने विधानसभा में स्थित पीयू कॉलेज में स्थापित मिहिर भोज की प्रतिमा पर ना सिर्फ पुष्प अर्पण किए बल्कि उन्हें गुर्जर जाति का बता दिया।
इससे ना सिर्फ क्षत्रियों की भावनाएं आहत हुई बल्कि बसपा का जातिवादी चेहरा भी उभर कर सामने आ गया। मनवीर सिंह ने अपने निजी फायदे के लिए क्षत्रियों को पूर्ण रूप से बसपा से दूर कर दिया ऊपर से मिहिर भोज के मुद्दे को उभारना यह भी प्रदर्शित करता है कि गुर्जर भी उनके पाले में नहीं है इसीलिए वह भावनात्मक मुद्दों को छेड़ रहे हैं ।
यह निर्वाचन क्षेत्र राष्ट्रीय राजधानी की सीमा में है और इसमें बसपा प्रमुख मायावती का पैतृक गांव भी शामिल है। अतः, इसके काफी गूढ़ राजनीतिक निहितार्थ हैं। मनबीर के इस बयान से गुर्जर समुदाय भी ना सिर्फ सकते में है बल्कि राजपूत समुदाय आहत है और यह समझ रहा है की पूरी बसपा पार्टी का इस मुद्दे पर यही स्टैंड है।
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9वीं शताब्दी के मिहिर भोज की मूर्ति के आगे कहे गए ये शब्द यह तय करने के लिए तैयार है कि लोग गुरुवार को किसे वोट देते हैं, जो उत्तर प्रदेश में चुनाव की शुरुआत का प्रतीक है।
यूपी की बात करें तो वहां राजपूत (ठाकुर) 6-7 फीसदी तक हैं। आजादी के बाद यूपी को उन्होंने 5 CM दिए हैं। यूपी के ही दो ठाकुर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँचे। ब्राह्मणों के बाद सत्ता पर सबसे ज्यादा पकड़ ठाकुरों की ही रही है। यूपी से चंद्रशेखर और वीपी सिंह तो राजस्थान से भैरो सिंह शेखावत शीर्ष पदों तक पहुँचे हैं।
मनबीर सिंह, बहुजन समाज पार्टी
बसपा प्रत्याशी मनबीर सिंह ने अपने चुनावी हलफनामे में सात आपराधिक मामले घोषित किए हैं। 42 वर्षीय ने 3. 7 करोड़ रुपये की कुल संपत्ति और शून्य देनदारियों की घोषणा की है। उनकी चल संपत्ति 29. 3 लाख रुपये है, अचल संपत्ति 3. 4 करोड़ रुपये है। उन्होंने स्वयं की आय 5. 3 लाख रुपये और कुल आय 9.6 लाख रुपये घोषित की है। हलफनामे के अनुसार उनके पास पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री है। उनके इस हलफनामे से उनके आपराधिक इतिहास का भी साफ-साफ पता चलता है।
उनके इस दांव की काट चलते हुए पश्चिम यूपी के 15 जिलों में 71 विधानसभा सीटों के दांव पर, पार्टी नेतृत्व धन सिंह कोतवाल जैसे गुर्जर नायकों को सम्मानित कर रहा है, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने 1857 के विद्रोह में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी।
वैसे भी सुधीर भदौरिया को छोड़कर बसपा में कोई भी बड़ा राजपूत चेहरा नहीं रहा है। ऊपर से प्रदेश के जितने बड़े राजपूत चेहरे रहे हैं उन्हें मायावती ने अपने कार्यकाल में परेशान ही किया है चाहे वह राजा भैया हों, अमर सिंह हों या फिर योगी आदित्यनाथ। अतः मायावती के पैतृक गांव से सटे विधानसभा क्षेत्र के बसपा प्रत्याशी द्वारा मिहिर भोज को पुनः गुर्जर नेता बताया जाना उनके चुनावी अभियान के लिए आत्मघाती सिद्ध हो सकता है।