शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित: JNU की पहली महिला और राष्ट्रवादी कुलपति

अब बदलेगी JNU की छवि!

शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित

भारत के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान में से एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की पहली महिला कुलपति प्रोफ़ेसर शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित की नियुक्ति बीते सोमवार को भारत के महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा की गई है। प्रोफ़ेसर शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित फिलहाल सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में राजनीति और लोक प्रशासन विभाग में हैं। साथ ही प्रोफ़ेसर शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित एक राष्ट्रभक्त भी हैं। प्रोफेसर शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित को नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) का 13वां कुलपति नियुक्त किया गया है। इससे पहले JNU के पूर्व कुलपति जगदीश कुमार को पिछले सप्ताह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का प्रमुख बनाया गया।

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कौन हैं प्रोफ़ेसर शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित

जेएनयू के रजिस्ट्रार को लिखे एक पत्र में केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने लिखा है कि विश्वविद्यालय की विधियों द्वारा उन्हें दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने आगंतुक के रूप में शांतिश्री धूलिपुडी को नियुक्त करने किया है। 59 वर्षीय शांतिश्री धूलिपुडी पंडित का जन्म 15 जुलाई 1962 को रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुआ था। उनकी मां रूस में लेनिनग्राद ओरिएंटल फैकल्टी विभाग में एक तमिल और तेलुगु प्रोफेसर थीं। शांतिश्री पंडित ने राजनीति विज्ञान के रूप में अपने प्रमुख विषय के साथ चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज से मास्टर डिग्री प्राप्त की थी। 1986 और 1990 के बीच पंडित ने अपनी पी.एच.डी. औऱ एम.फिल जेएनयू स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पूरी की।

बता दें कि शांतिश्री पंडित ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सदस्य के रूप में भी कार्य किया है और कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए एक आगंतुक नामांकित व्यक्ति भी थी। उसने कुल 29 पी.एच.डी. के लिए एक गाइड के रूप में सेवा प्रदान किया है और कई संस्थानों में प्रशासनिक पदों पर रही हैं। शांतिश्री पंडित का वर्ष 1988 से अध्यापन का एक लंबा अनुभव और करियर है। सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में शामिल होने से पहले उन्होंने गोवा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में भी काम किया था। वह 1985 से शोध (Research) से जुड़ी हुई हैं और उन्होंने 1990 में प्रकाशित ‘भारत में संसद और विदेश नीति’ और 2003 में ‘एशिया-नैतिकता और नीति में पर्यावरण शासन’ जैसी किताबें लिखीं है।

एक राष्ट्रभक्त भी हैं प्रो. शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित

हाल ही में, उन्होंने आंदोलनकारी किसानों को लेकर भी अपना रोष व्यक्त किया था। वहीं, शांतिश्री पंडित ने कुलपति बन्ने के बाद छात्रों और शिक्षकों को अपने पहले संदेश में कहा कि उनकी तत्काल प्राथमिकता ‘अकादमिक उत्कृष्टता’ के लिए एक वातावरण प्रदान करना होगा और मोदी शासन की विचारधारा की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि “ध्यान भारत-केंद्रित निर्माण में होगा।” टाइम्स नाउ के संपादक राहुल शिवशंकर की टिप्पणी के जवाब में उन्होंने वाम-उदारवादियों को भी लताड़ लगाई। उनका मानना ​​है कि भारत में वामपंथियों ने धार्मिक कट्टरता का समर्थन करना शुरू कर दिया है जबकि पहले के समय में ऐसा नहीं था। जेएनयू परिसर में जिस तरह से जिहादी ‘दाढ़ी’ और ‘हिजाब’ सामने आए हैं, उससे भी वह चिंतित हैं।

JNU की छवि अब बदलेगी 

प्रोफेसर शांतिश्री अपने अच्छे पुराने दिनों को याद करती रही हैं। वह छात्रों के एक निश्चित वर्ग को विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ नहीं पातीं है। वह कहती हैं कि जब वह वहां की छात्रा थी तो माहौल अलग था। कई अवसरों पर उन्होंने जेएनयू के वामपंथी कार्यकर्ताओं पर भी निशाना साधा है और रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर भी अपना मत स्पष्ट किया है।

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साथ ही सरकार से जामिया मिलिया इस्लामिया और सेंट स्टीफेंस कॉलेज जैसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों के वित्त पोषण को रोकने के लिए कहा है। उन्होंने ‘गैर-मुसलमानों’ से ‘लव जिहाद’ को रोकने के लिए जागरूक होने का भी आग्रह किया है। ऐसे में, कहा जा सकता है कि लंबे समय से अपनी छवि को लेकर जूझ रहा जेएनयू नए कुलपति के आगमन से बदलेगा।

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