मोहम्मद अजहरुद्दीन- भारतीय क्रिकेट इतिहास का सबसे ‘दागी’ कप्तान!

'सट्टेबाजी का सरताज' अजहरुद्दीन- जिसने अपना ज़मीर बेच दिया!

Mohammad Azharuddin

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आपको ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ का वो डायलॉग याद है, जिसमे रामाधीर सिंह कहता है कि जब तक भारत में सनीमा है, लोग $#@ बनते रहेंगे। यह बात शत प्रतिशत सत्य है। हम भारतीय लोग बहुत ही भोले प्राणी होते हैं। सनीमा हमें जो परोसता है, हम उस पर विश्वास कर लेते हैं। सनीमा जिसका महिमामंडन करता है, हम उसी को अपना नायक चुन लेते हैं। तर्क गया तेल लेने! भले ही चलचित्र के शुरुआत में चाहे हमें डिस्क्लेमर दिया जाये या कहानी को काल्पनिक बताया जाये, पर फिर भी हम तो सनीमा को ही सच मानेंगे।

हमारे इसी फैंटसी का फायदा उठाकर बॉलीवुड वाले जब चाहें तब किसी का भी व्हाइट-वाश कर देते हैं और उसे हम नायक मानने लग जाते हैं। ऐसे ही एक नायक हैं भारतीय टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन। ये मुरादाबाद से कांग्रेस के सांसद भी रहें है और अभी तेलंगाना कांग्रेस समिति के अध्यक्ष हैं। इस आर्टिकल में हम विस्तार से समझेंगे कि कैसे बॉलीवुड ने न सिर्फ अज़हरुद्दीन के चरित्र का व्हाइट-वाश किया, बल्कि मैच मिक्सिंग के आरोपी और देश के सबसे खराब और अक्षम कप्तान को हमारा नायक बनाकर पेश करने का प्रयास किया!

‘अजहर’ का उद्देश्य ही था उनका महिमामंडन करना

13 मई 2016 को टोनी डिसूजा द्वारा निर्देशित एक फिल्म रिलीज़ हुई जो अजहर के जीवन पर आधारित थी। फिल्म में इमरान हाशमी ने अजहरुद्दीन, नरगिस फाखरी ने संगीता बिजलानी और प्राची देसाई को उनकी पहली पत्नी नौरीन के रूप में दिखाया गया था। इस फिल्म का मुख्य उद्देश्य ही उनपर लगे फिक्सिंग के दाग को धोना और उनके चरित्र का महिमामंडन करना था।

आप सभी को याद होगा कि आईपीएल 2016 के दौरान इस दागी कप्तान के ऑन-एयर होने के बाद, ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज डिर्क नानेस ने ट्विटर पर एक बहुत ही प्रासंगिक सवाल पूछा। उन्होंने लिखा, “एक मैच फिक्सर का IPL जैसे इतने बड़े क्रिकेट शो में राजा की तरह स्वागत क्यों किया जा रहा है? यह कैसे संभव है?” ध्यान देने वाली बात है कि उन्होंने भारत की इतनी शालीन जनता के बीच खुद को इतने अहंकारी ढंग से कैसे पेश कर लिया और ऊपर से मुरादाबाद से कांग्रेस सांसद के रूप में भी चुन लिए गए?

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हम भारतीय पता नहीं ये बात क्यों नहीं समझ पाते कि वर्ष 2000 में सीबीआई के समक्ष विशिष्ट मैचों में किए गए फिक्सिंग के वीडियो-टेपस्वीकारोक्ति और अनीस, दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन और अबू सलेम के साथ उनके संबंध थे तथा उसके बावजूद हम उन्हें कैसे माफ कर सकते हैं? उन्होंने न सिर्फ भारतीय क्रिकेट को अंधकार में धकेलने का काम किया है, बल्कि राष्ट्र के सम्मान और प्रतिष्ठा को भी गर्त में पहुंचा दिया। ऊपर से हमने उन्हें पुरस्कृत करते हुए न सिर्फ मुरादाबाद से सांसद बनाया, बल्कि उन्हें एक नायक का दर्जा भी देने लगे हैं।

वैसे भी एक कहावत है कि जो राष्ट्र सही नायक नहीं चुनता, वो अपने आनेवाली पीढ़ी के मन में ऐसा विष डाल रहा है, जो देश को पतन की ओर ले जाएगा। अगर देश के लोगों को समझने में समस्या हो रही है, तो वो औस्ट्रेलियाई टीम के स्टीव स्मिथ को देख सकते हैं, जिन्होंने न सिर्फ अपने देश से माफी मांगी, बल्कि उनके पश्चाताप के आँसू उनके रुदन में भी दिख रहे थे।

अजहरुद्दीन ने कभी भी नहीं मांगी माफी

हमें यह सोचना होगा कि वर्ष 2000 के बाद से सीबीआई रिपोर्ट में उनके कच्चे चिट्ठे की विस्तृत सामग्री उपलब्ध होने के बावजूद न तो उन्होंने माफी मांगी और न ही कोई पश्चाताप किया, उल्टे उन्होंने तकनीकी आधार पर अपने आजीवन प्रतिबंध को चुनौती दी और देश को दिग्भ्रमित करने का प्रयास किया। कहा जाता है कि अजहर तब टूट गया जब सीबीआई ने उसे याकूब और टाइगर मेमन के तस्वीर के साथ भारतीय अंडरवर्ल्ड से उसके व्यापक संबंधों के सबूत दिखाए गए। राकेश मारिया कहते हैं कि अजहर मैच फिक्सिंग का “किंगपिन” था। उसके पास “एक आपराधिक दिमाग” था और वह अनीस इब्राहिम, छोटा शकील और शरद शेट्टी द्वारा “भाई” माना जाता था।

अनीस इब्राहिम के साथ चर्चा करने के बाद बुकी मुकेश गुप्ता के लिए वर्ष 1996 के टाइटन कप में भारत बनाम दक्षिण अफ्रीका के मैच को उन्होंने फिक्स किया। इतना ही नहीं बुकी मुकेश गुप्ता के लिए वर्ष 1997 एशिया कप में कोलंबो में भारत बनाम श्रीलंका के मैच को भी अज़हर ने अपना शिकार बनाया। तीसरे अवसर पर बुकी अजय गुप्ता के लिए वर्ष 1999 में जयपुर में भारत बनाम पाकिस्तान के मैच को भी उन्होंने फिक्स कर दिया था।

विदेश पिचों पर ‘जीरो’ रहे थे अजहरुद्दीन!

आपको बता दें कि भारत में क्रिकेट जीवन है। इसे एक धर्म का दर्जा प्राप्त है और इसे खेलने वाले को भगवान का। यह हममें भारतीयता का संचार करता है, पर अज़हरुद्दीन ने चंद पैसों के लिए इसे बेंच दिया। पता नहीं उनकी इस हरकतों के बावजूद लोग उन्हें एक अच्छे कप्तान का दर्जा कैसे दे देते है? उनकी वजह से पूरी की पूरी टीम बिखर गयी और देश का सर शर्म से झुक गया। पर, अज़हर तो अपने कामों को ढकने में लगे रहें और बड़ी बेशर्मी से माफी से भी बच गए। अज़हरुद्दीन वर्ष 1989 में कृष्णमाचारी श्रीकांत के बाद भारतीय टीम के कप्तान बने थे। उन्होंने 47 टेस्ट मैचों में भारतीय टीम का नेतृत्व किया। कप्तान के रूप में उन्होंने मात्र 14 टेस्ट मैच जीते।

उपमहाद्वीप में उनके रिकॉर्ड को छोड़ दें, तो वह इसके बाहर एक आपदा के समान थे। उनका विदेशी पिचों पर टेस्ट कप्तानी का रिकॉर्ड बेहद खराब है। वो विदेश में भारतीय टीम को 10 मैचों में से एक भी मैच नहीं जीता पाए। मजबूत टीमों को भूल जाइए, हम जिम्बाब्वे से उनके घरेलू मैदान पर भी हार गए थे। फिर भी हम भारतीयों को समझ नहीं आता कि कौन हमारा नायक बनने के लायक है और कौन नहीं? माफ करिएगा, चंद पैसों के लिए जिसने टीम की जीत को underworld के हाथों बेच दिया, वह हमारा अच्छा कप्तान तो क्या एक अच्छा देशवासी भी नहीं हो सकता!

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