ऑनलाइन गेमिंग का विचार बहुत पहले आ चुका है, इसे केवल सरकारी नियमों की आवश्यकता है

सरकार को करना चाहिए विचार!

Online Gaming

Source- Google

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बीते सोमवार को ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगाने वाले राज्य सरकार के एक कानून को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कर्नाटक पुलिस अधिनियम, 1963 में महत्वपूर्ण संशोधनों को रद्द कर दिया, जिसमें राज्य में ऑनलाइन जुए या सट्टेबाजी पर अधिकतम तीन साल की कैद और एक लाख रुपये तक के जुर्माने पर प्रतिबंध लगाया गया था। फैसला मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी और न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित की खंडपीठ से आया, जिन्होंने ऑनलाइन गेमिंग गतिविधियों को विनियमित करने से संबंधित कर्नाटक अधिनियम संख्या 28/2021 के कुछ प्रावधानों को भारत के संविधान के लिए अल्ट्रा वायर्स घोषित किया।

दरअसल, राज्यपाल थावरचंद गहलोत की सहमति के बाद कर्नाटक सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में ऑनलाइन गेम में सट्टेबाजी और सट्टेबाजी पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून को अधिसूचित किया था। इस अधिनियम ने राज्य में सभी प्रकार के दांव, सट्टेबाजी और जुए सहित ऑनलाइन गेम के सभी प्रारूपों पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके तहत ऑनलाइन गेमिंग को गैर-जमानती अपराध माना जाता था। इसमें एक लाख रुपये जुर्माना और तीन साल तक की कैद का प्रावधान था। ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों ने नए कानून पर सवाल उठाने के लिए अदालत का रुख किया था, जिसके बाद अब फैसला सामने आया है।

ऑनलाइन खेलों से जुड़ी कंपनियों का कहना था कि कर्नाटक का बंगलुरु जैसा शहर, जो कि गेमिंग कंपनियों के हब के तौर पर उभर रहा है, ऐसी जगहों पर भी प्रतिबंध लगाने से शहर के गेमिंग हब बनने की कोशिशों के लिए चुनौतियां पेश होंगी। दिलचस्प बात यह है कि पीठ ने पूरे अधिनियम को नहीं छेड़ा, लेकिन यह स्पष्ट कर दिया कि अगर जुए के खिलाफ संविधान के अनुरूप कोई नया कानून लाया जाता है, तो वह विधायिका के फैसले के बीच में नहीं आएगा। पीठ के अनुसार प्रतिवादियों को ऑनलाइन गेमिंग व्यवसाय और याचिकाकर्ताओं की संबद्ध गतिविधियों में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए परमादेश का एक रिट जारी किया गया है।

और पढ़ें: भारतीय गेमिंग कंपनी Nautilus Mobile में 5.4 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा Krafton

200 से अधिक प्लेटफॉर्म पर खेल रहे हैं 13 करोड़ लोग

ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन (AIGF) के सीईओ रोलैंड लैंडर्स ने ब्रैंडवैगन ऑनलाइन को बताया, “एक के बाद एक तीन सकारात्मक फैसलों के बाद, हमें विश्वास है कि हितधारक अब ऑनलाइन कौशल गेम और जुआ व्यवसाय के बीच अलगाव के मामले में स्पष्ट हो जाएंगे।” ऐसा ही ख़ुशी का माहौल ड्रीम 11, MPL जैसी ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों का होगा, जिन्हें अब राहत की सांस मिली है। निस्संदेह, यह फैसला भारत में सभी खेल प्रशंसकों के लिए स्वागत योग्य समाचार है, जो विश्व स्तर पर फैंटेसी खेलों का सबसे बड़ा बाजार है, जिसमें 13 करोड़ (130 मिलियन) से अधिक उपयोगकर्ता 200 से अधिक प्लेटफार्मों पर खेल रहे हैं। यह निर्णय पंजाब और हरियाणा, राजस्थान, बॉम्बे जैसे राज्यों के माननीय उच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए अन्य सकारात्मक निर्णयों का अनुसरण करता है, जिन्होंने फैंटेसी स्पोर्ट्स को कौशल के खेल के रूप में मान्यता दी, जो संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत संरक्षित एक वैध व्यावसायिक गतिविधि है।

और पढ़ें: गेमिंग इंडस्ट्री के क्षेत्र में आसमान छूएगा भारत

सरकार को जल्द ही लेना होगा फैसला

आपको बताते चलें कि भारत आज दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते गेमिंग बाजारों में से एक है। स्किल-आधारित ऑनलाइन गेमिंग में वर्तमान में सालाना राजस्व में लगभग 1 अरब डॉलर से बढ़कर वर्ष 2030 तक 8-10 अरब डॉलर वार्षिक राजस्व तक पहुंचने की क्षमता है। ऐसे में अब यह सरकार को देखना है कि जिस प्रकार बीते पांच वर्षों में इन एप्स का प्रभुत्व और इसके उपयोगकर्ता बढे हैं, ऐसे में इन्हें बंद और प्रतिबंधित करने के बजाए इन्हें कमाई का स्त्रोत और कर का एक ज़रिया बनाया जाए। यह तो सच है कि इसे गैरकानूनी करार नहीं किया जा सकता है, ऐसे में जिस प्रकार क्रिप्टो से हो रही कमाई पर टैक्स लगाने का निर्णय इस वर्ष के वार्षिक बजट में पेश किया गया है, ऑनलाइन गेमिंग को भी इसी में सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। इससे उपयोगकर्ता भी खुश होंगे और सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होगी यानी कि दोनों हाथों में लड्डू। सरकारी कानूनों के दायरे में लाने से इन सभी की विश्वसनीयता तो बढ़ेगी ही, साथ ही देश के प्रति अन्य कंपनियों का भी रुझान बढ़ेगा जो निवेश करने के लिए भारत आएंगी।

और पढ़ें: गेमिंग के मामले में भारत सबसे बड़े देशों में से एक है, पर Online Game पर लगने वाले Tax में सुधार की आवश्यकता है

Exit mobile version