रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत को बदनाम करने में जुटे हैं मीडिया, विपक्ष और फिल्म स्टार्स

ये कभी सुधर ही नहीं सकते!

Russia vs Ukraine war

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रूस और यूक्रेन के बीच का हालिया विवाद कूटनीति का सबसे जटिलटम विषय है। अतः भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का पक्ष रखने के लिए एक से बढ़कर एक कूटनीतिक विशेषज्ञ, अधिकारी, राजनयिक और अंतरराष्ट्रीय संबंधो के ज्ञाता नियुक्त कर रखे हैं, जो संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और द्विपक्षीय मंचों पर भारतीय हितों की रक्षा कर रहे हैं। पर, क्या आप जानते हैं कि इस मुद्दे पर भारत के पक्ष को सबसे बड़ा खतरा न तो रूस से है और न ही यूक्रेन से, न तो यूरोपीय संघ से है और न ही नाटो से, बल्कि भारतीय पक्ष को सबसे बड़ा खतरा हमारे मीडिया संस्थानों की वाहियात रिपोर्टिंग, नेताओं के बड़बोलेपन, तुच्छ कलाकारों के छद्मविद्वता तथा हमारी और आपकी बकैती से है।

आप भी सोच रहे होंगे कि हम ऐसा क्यों कह रहें है? आपको बता दें कि एक नेता, अभिनेता, नागरिक और एक पत्रकार न सिर्फ समाज के अभिन्न अंग, बल्कि देश के दर्पण होते हैं। भले ही कूटनीतिक विशेषज्ञ और राजनयिक अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का आधिकारिक पक्ष रखते हैं, पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय तो भारतीय समाज का अनाधिकारिक पक्ष भी सुनता है और ये सोचने लगता है कि कहीं भारत की कथनी और करनी में अंतर तो नहीं है, क्योंकि वहां की मीडिया, फिल्म स्टार्स, नेता और नागरिक तो कुछ और ही राय रखते हैं। जैसा कि TFI ने आपको पहले ही बताया है कि रूस और यूक्रेन के बीच का हालिया विवाद कूटनीति का सबसे जटिलटम विषय है और हमारा विश्वास मानिए शाम की खबर सुनकर आप इसके बारे में सरकार को सलाह देना तो दूर अपनी राय भी नहीं बना सकते। पर, क्या करें हम तो बकैती के आदि हैं, फिल्मवाले पब्लिसिटी के और मीडिया वाले टीआरपी के और हम सभी मिलकर इस मामले में भारत के आधिकारिक पक्ष की कैसे ऐसी की तैसी कर रहे हैं, आइये जानते हैं।

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मीडिया की वाहियात रिपोर्टिंग

रूस और यूक्रेन के ताज़ा विवाद पर हमारे देश के मीडिया संस्थान कैसी असंवेदनशीलता और अपरिपक्वता का परिचय दे रहे हैं, इसकी एक झलक आपको टीवी या यूट्यूब खोलते ही मिल जाएगा। ऐसा लग रहा है जैसे उनकी वर्षों की टीआरपी की भूख शांत होने वाली है और इस चक्कर में वो जनता के सामने अनाप-शनाप शीर्षक के साथ जंग के झूठे फोटो और वीडियो परोस रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि वो एक संवेदनशील समाचार नहीं, बल्कि कोई ‘War Movie’ दर्शकों को दिखा रहे हों। अब जैसे आप प्राइम टाइम पर आने वाले रवीश कुमार के शो का ही उदाहरण ले लीजिये। इसका शीर्षक था- बेलगाम रूस करेगा यूक्रेन पर हमला। अब यहां पर प्रश्न यह उठता है कि रविश कुमार ने यह तय कैसे कर लिया कि रूस ‘बेलगाम’ है? उन्होंने यह निर्धारित कैसे कर लिया कि रूस ही सभी समस्याओं की जड़ है? क्या उन्हें समझ नहीं आता कि ऐसी रिपोर्टिंग कर, वो भारत सरकार को कोस नहीं रहे, बल्कि अपने दुराग्रह के कारण भारत सरकार को असहज कर रहे हैं? क्या वो भारत का पक्ष नहीं जानते? अगर नहीं जानते, तो हम उन्हें बता दें कि इस मुद्दे पर भारत के पक्ष ‘संतुलित और स्वतंत्र’ हैं।

रूस भारत का दोस्त है, जिसने 1971 के युद्ध में हमारे देश की मदद की और मौजूदा समय में देश का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता भी है। वहीं, यूक्रेन भारत के परमाणु कार्यक्रम का मुखर आलोचक तथा भारत पर आर्थिक प्रतिबंधों का समर्थक रहा है। इसके साथ-साथ यूक्रेन पाक को हथियार और टैंक भी मुहैया कराता है। हाल ही में, रूसी दूतावास ने यूक्रेन पर भारतीय मीडिया के फर्जी और भड़काऊ रिपोर्टिंग के संबंध में एक लंबा रिपोर्ट जारी किया। जिसमें रूस ने भारतीय मीडिया की विकृत, भड़काऊ और तथ्यहीन समाचार परोसने की प्रकृति पर अपनी चिंता जाहिर की। पर, मीडिया को ये सब समझने की क्या जरूरत है? वे तो आपदा को अवसर में बदलते हुए टीवी पर दर्शकों को ‘Real War Movie’ दिखा रहे हैं। किसी का शीर्षक है- पुतिन का धमाका तो कोई कह रहा है तृतीय विश्व युद्ध की झलक और हम मज़े लेकर देख रहे हैं और इन्हीं को अपने ज्ञान का आधार मानते हुए सोशल मीडिया पर गंदगी फैला रहे हैं।

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फिल्म स्टार्स की घटिया प्रतिक्रिया

मीडिया जहां टीआरपी के लिए ये नंगा नाच कर रही है, तो दूसरी ओर फिल्म स्टार्स पब्लिसिटी के लिए अपनी फिजूल बातें फैला रहे हैं। वैसे भी Netflix और Amazon जैसे मंच के आने के बाद जनता ने घटिया पटकथा के कारण इनको नकार दिया है। अतः अब ये सोशल मीडिया पर गैर-जिम्मेदारना पोस्ट कर सुर्खियां बटोरने के फिराक में हैं। उदाहरण के लिए, प्रियंका चोपड़ा को ही ले लीजिये। विदेश में जाकर शादी क्या कर ली, वो विदेशी ही बन गई हैं? उनका कहना है कि हमें यूक्रेन के लोगों की मदद करनी चाहिए। उन्हें भारत के पक्ष से कोई फर्क नहीं पड़ता। वो संयुक्त राष्ट्र की ‘Good will Ambassador’ हैं और भारत के पक्ष से ज्यादा उन्हें अपने अंतरराष्ट्रीय पहचान की पड़ी है।

वयोवृद्ध गीतकार जावेद अख्तर ने भी स्थिति पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, “यदि रूसी-यूक्रेनी संघर्ष निष्पक्षता और न्याय की भावना पैदा करता है, तो सऊदी के यमन जैसे छोटे देश पर अत्याचारऔर बम विस्फोटों के प्रति क्यों सभी पश्चिमी शक्तियां पूरी तरह से उदासीन हैं।” ऐसा लग रहा है जैसे जावेद अख्तर इस मामले को आतंकवादियों के खिलाफ कारवाई रोकने के तर्क के रूप में प्रयोग कर रहे हैं। राहुल गांधी जहां यूक्रेन में फंसे छात्रों के हवाले से यूक्रेन की मदद हेतु ट्वीट करने में लगे हैं, तो वही शशि थरूर भारत के अहिंसा के सिद्धांतो और चीन का डर दिखाकर रूस के साथ संबंध बिगाड़ने की सलाह दे रहे हैं। ओवैसी तेल की बढ़ती कीमतों के कारण रूस को सबक सिखाने के पक्ष में है और ये सभी नेता ऐसा न करने के लिए मोदी सरकार को घेर रहे हैं।

हम सभी को यह समझना होगा कि कम बोलना कूटनीति की आधारशिला है। दूसरी बात, रूस-यूक्रेन का मामला देश का पक्ष है, न कि जनता से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ मुद्दा। ऐसे में किसी प्रकार के लोभ और मोदी दुराग्रह से ग्रसित होकर पब्लिसिटी के लिए कुछ भी बोलना भारत के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।

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