पाकिस्तान और चीन का गठजोड़ अब टूटने के कगार पर पहुंच गया है। जी हां, आप बिल्कुल सही सुन रहे हैं, चीन और पाकिस्तान के रास्ते अब अलग होने वाले हैं। चीन के साथ-साथ दुनिया के तमाम देशों के कर्ज के बोझ तले दबा पाकिस्तान अब अपने नए आका की तलाश में लग गया है और ऐसा प्रतीत भी होते दिख रहा है कि अब पाकिस्तान पूरी तरह से चीन के साथ ब्रेकअप करने के फिराक में है। हाल ही में ऐसी कई रिपोर्टस सामने आई हैं, जो इसे प्रमाणित करते दिख रही है।
अकड़ और निवेदन दोनों एक साथ नहीं चल सकते हैं, पाकिस्तान स्वयं को क़र्ज़ में डूबा राष्ट्र मानने से सदैव परहेज करता आया है। एक समाचार रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते आर्थिक संकट और चीन पर अधिक निर्भरता के लिए अंतरराष्ट्रीय अलगाव के बीच, पाकिस्तानी अधिकारी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को खत्म करने के लिए तैयार हैं। लेकिन यह तब ही संभव है जब अमेरिका उसकी मदद करते हुए सौदा पेश करे। क़र्ज़ के बोझ के तले पाकिस्तान के पास चीन से पीछे छुड़ाने का एक यही अंतिम द्वार दिख रहा है, जिसको हरी झंडी अमेरिका देता है तो बढ़िया, नहीं तो पाक का ठन-ठन गोपाल होना निश्चित है।
चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) चीन का महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट है, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर जैसे विवादित इलाके से होकर गुजरता है। भारत इस प्रोजेक्ट का विरोध करता है, क्योंकि यह पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरता है। मुख्य तौर पर यह एक हाइवे और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है, जो चीन के काशगर प्रांत को पाकिस्तान के ग्वारदर पोर्ट से जोड़ेगा। इस प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान में बंदरगाह, हाइवे, मोटरवे, रेलवे, एयरपोर्ट और पावर प्लांट्स के साथ दूसरे इंफ्रस्क्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को डेवलप किया जाएगा। CPEC को बनाने में चीन भारी निवेश कर रहा है। CPEC की कुल लागत 46 अरब डॉलर (करीब 31 लाख करोड़ रुपए) है। सीपीईसी के जरिए चीन पाकिस्तान के इंफ्रास्ट्रक्चर में भी भारी निवेश करता आया है।
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चीन से पीछा छुड़ाने के लिए दांव-पेंच चल रहा है पाक
दरअसल, एशिया टाइम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तानी अधिकारी जो पश्चिम के प्रति संवेदनशील रहते हैं, उन्होंने सीपीईसी को रद्द करने या किनारे करने की पेशकश की है और यदि वाशिंगटन इस तरह की वित्तीय सहायता की पेशकश करता है, तो रास्ता साफ़ हो जाएगा। अमेरिका से संबंध मजबूत करने के लिए पाकिस्तान पहले ही कई प्रयास कर चुका है, पर अमेरिका ठहरा अमेरिका, वो थाली के बैंगन पाकिस्तान को क्यों ही भाव देगा, क्योंकि पाकिस्तान के भीतर सबसे बड़ी आंशिक कमी उसकी लड़खड़ाती विश्वसनीयता और उसकी डूबती अर्थव्यवस्था है। पाकिस्तान का इतिहास ही अपना काम बनता और भाड़ में जाए जनता वाले नारे पर टिका हुआ है। इसी खामी के कारण चीन से सदैव गलबहियां करने वाले पाकिस्तान पर कोई भी देश आसानी से विश्वास करने से झिझकता है।
परंतु, इस बार पाकिस्तान स्वयं अपना पीछा चीन से छुड़ाने के लिए कई प्रकार के दांवपेच लगा रहा है। इमरान खान अमेरिका के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने का प्रयास कर रहे हैं, यहां तक कि अमेरिकी सरकार द्वारा वित्त पोषित यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के लिए वर्षों तक काम करने वाले यूएस-आधारित पाकिस्तानी विश्लेषक मोईद यूसुफ को पाकिस्तान का नया राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया है। इससे पाकिस्तान सरकार अपने झुकाव और अमेरिका के प्रति दोस्ती का नया अमलीजामा तैयार करने की पूरी गाथा लिखने बैठ चुकी हैं और यह गाथा अब तब ही खत्म होगी, जब पाक CPEC से अलग होकर अमेरिका के साथ अपनी पारी खेल पाएगा।
यूं तो इमरान सरकार अपनी ओर से भरसक प्रयास कर रही है, परंतु अमेरिका के परिप्रेक्ष्य में उसका हाथ सदैव तंग ही रहा है। ज्ञात हो कि, जुलाई 2019 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के बेलआउट पैकेज के अलावा पाक को बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ था। अमेरिका के साथ बेहतर संबंधों के लिए पाकिस्तान की संभावनाएं तब और कम हो गई थी, जब अमेरिका ने नवंबर 2021 में कतर को अफगानिस्तान में अपना राजनयिक प्रतिनिधि घोषित किया था।
पाकिस्तान की बदल रही हैं महत्वाकांक्षाएं
यह इमरान खान शासन की लगातार बढ़ रही छटपटाहट ही है, जो उसे अबतक चीन की जीहुजूरी इसलिए करनी पड़ रही है, क्योंकि वो उसको वित्तीय सहायता दे रहा है। लेकिन जैसे-जैसे समय-काल-परिस्थिति बदल रही है, पाक की महत्वकांक्षाएं परिवर्तित होने लगी है। अब वो अमेरिका और रूस के करीब जाने के बहाने ढूंढ़ने लगा है। कारण साफ़ है कि अब तक पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे पर चीन से कोई सकारात्मक कदम उठता नहीं दिखा है, साथ ही पाक पर चीनी कर्ज भी बढ़ता जा रहा है और कोई नतीजा भी निकलता नहीं दिख रहा है। जिस प्रकार चीन पर निर्भर होते हुए पाकिस्तान अपने पूर्व के इतिहास में उसे जड़-जमीन और जोरू देकर अपनी साख बचा लेता था, अब वो भी उसके बस की बात नहीं रही है। उसे यह लग रहा है कि चीन के साथ रहना अपने बचे हुए संबंधों को भी तिलांजलि देना होगा, क्योंकि आज की परिस्थिति में कोई भी देश चीन के प्रति सकारात्मक व्यवहार न के बराबर ही रख रहा है।
यूं तो CPEC से दूर होने की खबरें अपने चरम पर हैं, परंतु जैसा सर्वविदित है कि जब तक 100 प्रतिशत परिणाम न आ जाए, उससे पूर्व ढोल बजाने का कोई तुक नहीं बनता। लेकिन यह तो तय हो गया है कि पाकिस्तान अब चीन के सीपीईसी प्रोजेक्स से पीछा छुड़ाने की ओर बढ़ चुका है। पााकिस्तान कंगाल हो चुका है, पाकिस्तान का विदेशी कर्ज दिनों दिन बढ़ता जा रहा है और पाकिस्तान सरकार के पास अपना खर्च चलाने के लिए पैसे तक नहीं है। इस समय पाकिस्तान पर चीन के अतिरिक्त संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, वर्ल्ड बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का ऋण है। घरेलू और विदेशी कर्ज मिलाकर पाकिस्तान पर, पाकिस्तानी रुपए में कुल ऋण पचास हजार अरब से अधिक का कर्ज (50.5 ट्रिलियन) है। जनसंख्या अनुपात के हिसाब से हर पाकिस्तानी पर इस समय 2,35,000 पाकिस्तानी रुपए का कर्ज है। चीन से पाकिस्तान ने इतना कर्ज लिया है कि अब वो कभी भी चाहकर भी उसे नहीं चुका सकता। ऐसे में अब पाकिस्तान अपने नए आका की तलाश में लग गया है और अमेरिका के साथ उसकी बढ़ रही करीबी इसी बात का संकेत देती है।
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