कभी-कभी हमें कुछ प्रतिष्ठित लोगों के जीवन के बारे में कुछ ऐसे अनछुए पहलुओं का पता चलता है, जिससे उनके बारे में हमारी राय बिल्कुल ही बदल जाती है। अगर राय नहीं भी बदले, तो हम उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन बाद में पता चले तथ्यों के आधार पर भी करने लगते हैं। उदाहरण के लिए अल्बर्ट आइंस्टीन को को ही देख लीजिए। लोग उन्हें एक नस्लवाद विरोधी के रूप में जानते हैं। वे कहते थे कि नस्लवाद “गोरे लोगों की बीमारी” है। लेकिन लोग उनकी डायरी प्रविष्टियों की परवाह नहीं करते हैं, जो ज़ेनोफोबिया और नस्लवाद से भरी थी। बहुत कम लोग जानते हैं कि आइंस्टीन भारतीयों के प्रति नस्लवादी दुराग्रह से भरे हुए थे।
हालांकि, अपने जीवन में उन्होंंने सार्वजनिक रूप से इसकी अभिव्यक्ति बहुत कम बार ही की पर भारतीयों के प्रति उनकी सोच कितनी पूर्वाग्रह से ग्रसित थी, यह उनकी डायरी के प्रविष्टियों से पता चलता है। आइए जानते हैं कि उन्होंने भारतीयों के बारे में क्या कहा और अपने आकलन में वह क्यों गलत थे।
दरअसल, वर्ष 1946 में, भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन अपनी नस्लवाद विरोधी टिप्पणी को लेकर सुर्खियों में आए। उन्होंने कहा, “जातिवाद गोरे लोगों की बीमारी है।” लेकिन केवल बीस साल पहले वह भारत, श्रीलंका और चीन के बारे में अपनी डायरी में उसी बीमारी के लक्षणों से ग्रसित नजर आ रहे थे। आइंस्टीन के डायरी लेखन से पता चलता है कि वो किस तरह भारतीयों को नीचा दिखाते थे। भारतीयों के कम सक्षम होने के बारे में उनका एक अजीब सिद्धांत था। हालांकि, दुनिया भर के भारतीय नागरिक और भारतीय मूल के लोग अपने गौरवशाली उदय से न सिर्फ उनके समकालीन समय में, बल्कि आज भी उन्हें निरंतर रूप से गलत साबित कर रहें है।
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आइंस्टीन ने भारतीयों को कहा था-“जैविक रूप से हीन”
आइंस्टीन की डायरी की प्रविष्टियां सार्वजनिक होने के बाद, यह पता चला कि भौतिक विज्ञानी ने भारतीयों को “जैविक रूप से निम्न” कहा था, अर्थात् वो भारतीयों को बायोलॉजिकली इनफीरियर समझते थे। आइंस्टीन अपनी सुदूर पूर्व यात्रा के दौरान कोलंबो में भारतीयों से मिले और उन्हें “आदिम युग” जीवन जीने वाले जाति के रूप में वर्णित किया। इतना ही नहीं आइंस्टीन ने अपने सिद्धांत को साबित करने के लिए एक बेतुका कारण भी बताया था। उन्होंने कहा था कि “जलवायु भारतीयों को एक घंटे के एक चौथाई से अधिक पीछे या आगे सोचने से रोकता है।” आइंस्टीन की डायरी प्रविष्टियों को संकलित करने वाली पुस्तक के संपादक ज़ीव रोसेनक्रांज़ ने कहा कि इस भौतिक विज्ञानी ने “भारतीयों के कथित रूढ़िवाद को भौगोलिक निर्धारण के लिए जिम्मेदार ठहराया।”
पर ऐसा लगता है कि आइंस्टीन भारतीयों के प्रति इतने ज्यादा दुराग्रह से ग्रसित थे कि वह अपनी इस गलत सिद्धांत से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं थे। आइंस्टीन “जैविक रूप से हीन” भारतीयों के सिद्धांत पर अटल रहे और यह देख नहीं पाए कि उनके समकालीन समय में विश्व और भारत के विभिन्न क्षेत्रों में फैले भारतीय उसी समय से निरंतर उनके इस बेतुके सिद्धांत को गलत साबित कर रहे हैं। और अब ऐसा लगता है, जैसे आइंस्टीन जब अपनी डायरी में प्रविष्टियां कर रहे थे, तो उन्होंने बहुत सी बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया।
उन्होंने इस तथ्य की अनदेखी की कि प्राचीन भारतीय चिकित्सक सुश्रुत ने हजारों साल पहले प्लास्टिक सर्जरी और मोतियाबिंद सर्जरी की कला में महारत हासिल की थी। उन्होंने इस तथ्य की भी अनदेखी की कि भारतीयों को पाइथागोरस थ्योरम के बारे में पश्चिमी दुनिया से बहुत पहले से पता था। आयुर्वेद और दंत चिकित्सा की तो भारत में और भी पुरानी परंपरा है। फिर भी, हम भारतीयों को चिकित्सा और इंजीनियरिंग में अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों के साथ आइंस्टीन को गलत साबित नहीं करना चाहिए। वरना हम पर इतिहास का इस्तेमाल कर अपनी इज्जत बचाने का आरोप लगाया जाएगा।
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पूरी दुनिया में शीर्ष पदों पर बैठे हैं भारतीय
वास्तव में, हमें अपने गौरव और उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए इतिहास में जाने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है। वर्तमान में भारतीय पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना रहे हैं। अल्फाबेट, माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर, एडोब इंक, आईबीएम, माइक्रोन टेक्नोलॉजी और पालो ऑल्टो नेटवर्क सहित कई शीर्ष आईटी फर्मों को वर्तमान में भारतीय मूल के सीईओ द्वारा संचालित किया जा रहा है। और भारतीयों ने कई बड़े आविष्कार किए हैं। वायरलेस संचार के आविष्कार का श्रेय गुग्लिल्मो मार्कोनी को दिया जाता है, लेकिन जगदीश चंद्र बसु को वायरलेस कम्युनिकेशन का जनक माना जाता है। कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक सार्वजनिक प्रदर्शन में, बसु ने 75 फीट के पार एक विद्युत चुम्बकीय तरंग भेजी थी, जो दूर से घंटी बजाने के लिए दीवारों में घुस गई थी। उन्होंने एक रेडियो तरंग रिसीवर मर्करी कोहेरर का भी आविष्कार किया था, जिसे बाद में मार्कोनी ने संचार के लिए पहले दो-तरफा रेडियो बनाने के लिए उपयोग किया था।
ध्यान देने वाली बात है कि हाल ही में, भारत में जन्में आविष्कारक अजय भट्ट ने इंटेल में एक टीम का नेतृत्व किया था, जिसने USB तकनीक का निर्माण किया था और जो आईटी उद्योग में एक प्रमुख प्रगति थी। भारतीयों ने जो हासिल किया है वह निश्चित रूप से “जैविक रूप से हीन” दिमाग का काम नहीं है। भारतीयों की वर्तमान और अतीत की उपलब्धियां इस प्रकार आइंस्टीन को गलत साबित करती हैं। अंततोगत्वा हम बस यही कहना चाहेंगे कि आइंस्टीन को ऐसे विरोधाभासी और पूर्वाग्रह जनित सिद्धांत बनाने से पहले अपने स्वयं के उस कथन पर विचार करना चाहिए था, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह दुनिया भारत की ऋणी है, क्योंकि अगर भारत ने संख्या व्यवस्था, 0 और दशमलव की खोज न की होती, तो शायद मानव जाति आज तक किसी भी महानतम उपलब्धि को प्राप्त नहीं कर सकती थी।
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