कुछ नेताओं को लज्जा का अनुभव नहीं होता, वे निर्लज्ज होते हैं। उन्हें अपने निकृष्ट कथनी और करनी पर ग्लानि भी नहीं होती। ऐसे नेता अपनी राजनीतिक स्वार्थ और उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु इतना गिर जाते हैं कि राष्ट्र, संस्कृति, सनातन सभ्यता और समाज के महापुरुषों की भी बलि देने लगते हैं। अगर उन्हें लगे कि राष्ट्र को पाकिस्तानियों और खालिस्तानियों के हाथ हो बेच देने से उनके राजनीतिक कद में बढ़ोत्तरी होगी, तो वे ऐसा करने में जरा भी संकोच नहीं करेंगे । ऐसे नेता आये दिन हमारे राष्ट्र और इसके महानायकों को अपमानित करते रहते हैं। अरविंद केजरीवाल के स्वतंत्र खालिस्तान का पीएम बनने का दुस्वप्न उजागर हुए अभी 1 दिन भी नहीं हुआ था कि राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने शूरवीर महाराणा प्रताप और अकबर की लड़ाई को सत्ता संघर्ष बता दिया है।
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जानें क्या है पूरा मामला?
राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा है कि महाराणा प्रताप और अकबर की लड़ाई सत्ता संघर्ष के लिए थी और भाजपा ने इसे धार्मिक रंग दे दिया। बीते गुरुवार को नागौर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण शिविर में डोटासरा ने कहा कि भाजपा ने अपने शासनकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़ी संस्थाओं की मंशा के अनुसार पाठ्यक्रम तैयार किए थे। इसीलिए महाराणा प्रताप और अकबर के युद्ध को धार्मिक लड़ाई बताकर पाठ्यक्रम में शामिल करवा रखा था, जबकि यह कोई राष्ट्र निर्माण हेतु नहीं, बल्कि सत्ता के लिए संघर्ष था। भाजपा हर चीज को हिंदू-मुस्लिम के धार्मिक चश्मे से देखती है।
ऐसा नहीं है कि गोविंद सिंह डोटासरा के बिगड़े बोल पहली बार या फिर गलती से आए है। उन्होंने यह बयान पूरे होश-ओ-हवास में दिया है। उनकी यही सोच इस मुद्दे पर कांग्रेस की मानसिकता को भी परिलक्षित करती है। आपको बता दें कि डोटासरा राजस्थान की गहलोत सरकार में शिक्षामंत्री रह चुके हैं। शिक्षामंत्री रहते हुए उन्होंने कहा था- यह तो विशेषज्ञ ही बताएंगे कि महाराणा प्रताप और अकबर दोनों में से महान कौन था। उल्लेखनीय है कि अकबर और महाराणा प्रताप की लड़ाई को लेकर राज्य में पहले भी कई बार विवाद हुआ है। भाजपा की ओर से लगातार महाराणा प्रताप को महान बताया जाता रहा है, जबकि कांग्रेस हमेशा अकबर को विजेता और महान बताती रही है! वर्ष 2019 में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद 12वीं कक्षा की इतिहास पुस्तक में हल्दीघाटी के युद्ध के बारे में विस्तार से लिखा गया। जिसमें अकबर को महान बताया गया।
शोध में यह आया सामने
लेकिन आज हम अपने इस वीडियो के माध्यम से राजस्थान के पूर्व शिक्षामंत्री और राजस्थान कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष को ऑनलाइन क्लास देना चाहते हैं, ताकि इतिहास के बारे में उनकी समझ सही हो सके। 18 जून 1576 को मेवाड़ के महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के मध्य हुए हल्टीघाटी के युद्ध का परिणाम लगभग साढ़े चार सौ साल बाद अब सामने आ चुका है। राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध इतिहासकार और प्रोफेसर डॉ. शर्मा ने अपने शोध में बताया है कि युद्ध में महाराणा प्रताप की विजय हुई थी और उनके विजय को दर्शाते ताम्र पत्रों से जुड़े प्रमाण जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में जमा कराए गए हैं। डॉ. शर्मा के अनुसार युद्ध के बाद अगले एक साल तक महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के आस-पास के गांवों की जमीनों के पट्टे ताम्र पत्र के रूप में जारी किए थे। ताम्र पत्र के इन पट्टों पर भगवान एकलिंगनाथ के दीवान महाराणा प्रताप के हस्ताक्षर थे। ध्यान देने वाली बात है कि उस समय यह अधिकार सिर्फ राजा के पास ही होता था।
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अकबर ने अपने सेनापतियों को दी थी सजा
इतना ही नहीं मेवाड़ की धरा के दूसरे इतिहासकार भी डॉ. शर्मा द्वारा किए गये इस शोध को सत्य बता रहे हैं। इतिहासकार डॉ. शर्मा के अनुसार, शोध में सामने आया है कि बादशाह अकबर हल्दीघाटी युद्ध के परिणामो को लेकर मुगल सेनापति मान सिंह व आसिफ खां से नाराज हुआ था और दोनों सेनापतियो को छह महीने तक दरबार में नहीं आने की सजा दी गई थी। डॉ. शर्मा ने आगे कहा है कि यदि मुगल सेना युद्ध जीतती, तो अकबर अपने सबसे बड़े विरोधी प्रताप को हराने वालों को पुरस्कृत जरूर करता, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और ये सब बातें इस बात को प्रमाणित करती है कि महाराणा प्रताप ने ही हल्दीघाटी के युद्ध में संपूर्ण साहस का परिचय देते हुए जीत हासिल की थी।
आपको बता दें कि एकलिंगनाथ के दीवान महाराणा प्रताप कभी नहीं हारे। वो कभी हार भी नहीं सकते थे। स्वयं जिसके रक्षक महाकाल हों और जो देश और संस्कृति के लिए लड़ा हो, वो कभी हार ही नहीं सकता। मुस्लिम तुष्टिकरण और ओछी राजनीति की काली पट्टी जब डोटासरा जैसे नेताओं के आंखों से उतरेगी, तब तो उन्हें हल्दीघाटी की खून से सनी मिट्टी दिखेगी। अरे महाराणा प्रताप की क्या बात करें, अकबर तो उनके चेतक के बराबर भी नहीं था। 5 फुट के अकबर को महिमामंडित कर विजेता बताने वाले लोगों को सोचना चाहिए कि 7.7 फीट के महाराणा का 90 किलो का भाला भी उठाने का सामर्थ्य उसमें नहीं था। ऊपर से वो तो हल्दीघाटी में आया ही नहीं, क्योंकि वो भी जानता था कि एक हिंदू के शौर्य को एक हिंदू ही चुनौती दे सकता है, अतः उसने मानसिंह को भेजा। डोटासरा जैसे लोगों को समझना चाहिए की अगर महाराणा नहीं जीते होते, तो डोटासरा डोटासरा नहीं बल्कि दोदासुद्दीन होते।
महाराणा का तिरस्कार नहीं सहेगा देश
डोटासरा, कांग्रेस पार्टी और अकबर को महिमामंडित करने वालों को यह समझना होगा कि महाराणा का तिरस्कार और उनके खिलाफ झूठा प्रचार यह राष्ट्र कभी नहीं सहेगा। कांग्रेस अपने इन्हीं नेताओं और इनके बेतुके बयानबाज़ी के कारण दिन प्रतिदिन गर्त में गिरते जा रही है। उन्हें समझना होगा कि यह पहले का भारत नहीं है, जहां की जनता हीन भावना से ग्रसित और सुसुप्तावस्था में है। लोग अब जागरूक हो गए हैं तथा अपनी संस्कृति और सभ्यता के प्रति अत्यंत प्रेम और सम्मान की भावना रखते हैं।
वो दिन गए जब सूट-बूट पहने और ब्रिटेन से शिक्षित कांग्रेसी नेता देश के आदर्श हुआ करते थे! अब देश अपने आदर्शों को अपनी संस्कृति और गौरवशाली इतिहास में ढूंढता है। इनके प्रति किसी भी प्रकार और तिरस्कार के भाव को जनता अपने मत के ताकत से ध्वस्त कर देगी। कांग्रेस को यह समझना होगा कि देश की जनता भले ही दो रोटी कम खाएगी पर अपने राष्ट्रपुरुषों का अपमान करने वालों के ताबूत में आखिरी कील ठोक देगी!
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