सहारनपुर के जिलाधिकारी ने इस्लामिक मदरसा दारुल उलूम देवबंद द्वारा जारी किए गए अवैध फतवे की जांच पूरी होने तक उनकी वेबसाइट को बंद करने का आदेश दिया है। इस साल जनवरी के दूसरे सप्ताह में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने जिलाधिकारी से मदरसा द्वारा जारी अवैध फतवों की जांच कर दो सप्ताह में रिपोर्ट देने को कहा था। ध्यान देने वाली बात है कि दारुल उलूम देवबंद ने फतवा जारी कर कहा था कि गोद लिए गए बच्चे संपत्ति के मामले में कानूनी वारिस नहीं हो सकते। जिस पर NCPCR ने कहा था कि यह अवैध है, क्योंकि यह देश के कानून के खिलाफ है। आयोग ने आगे कहा था कि मदरसा बाल अधिकारों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
दारुल उलूम की ओर से जारी फतवे में कहा गया था कि गोद लिए गए बच्चे को असल बच्चे का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। बच्चा गोद लेना गैरकानूनी नहीं है। केवल बच्चे को गोद लेने से वास्तविक बच्चे का कानून उस पर लागू नहीं होगा। फतवे में कहा गया कि यह जरूरी होगा कि बच्चा मैच्योर होने के बाद शरिया पर्दा का पालन करे। गोद लिए गए बच्चे को संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलने और किसी भी मामले में उसके उत्तराधिकारी नहीं होने की भी बात भी कही गई थी। दारुल उलूम के उस फतवे पर विवाद शुरू हो गया। इसे बच्चों के अधिकार हनन से जोड़कर देखा गया। इसके बाद सहारनपुर डीएम ने दारुल उलूम की वेबसाइट को बंद करा दिया है।
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जांच में कई बातें आई सामने
ध्यान देने वाली बात है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की ओर से जारी नोटिस में एक लिंक दिया गया था, जिसमें स्कूलों के सिलेबस, किताब, कॉलेजों के यूनिफॉर्म, गैर इस्लामिक माहौल में बच्चों की शिक्षा, लड़कियों की उच्च मदरसा शिक्षा आदि से संबंधित फतवे थे। जांच में पाया गया कि ये फतवे बच्चों के अधिकारों की खुलेआम अवहेलना कर रहे हैं। एक फतवे में तो बच्चों के पीटने की बात कही गई थी।
हालांकि, RTE Act, 2009 (आरटीई अधिनियम, 2009) के तहत स्कूलों में शारीरिक दंड निषिद्ध है। NCPCR ने यह भी कहा कि दारुल उलूम देवबंद के फतवे में उठाए गए कई मुद्दे किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के विपरीत है। गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है, जब इस्लामी मदरसा अपने फतवे के लिए विवाद में है। यह अतीत में कई बार देश के कानून का उल्लंघन कर चुका है।
पूरी तरह से खंगाली जा रही है वेबसाइट
NCPCR ने जिला प्रशासन से मदरसा द्वारा पारित अवैध आदेशों को देखने और उसके अनुसार कार्रवाई शुरू करने को कहा है। NCPCR ने जिलाधिकारी से कहा है कि इस संगठन के वेबसाइट की पूरी तरह से जांच की जाए और देश तथा सामाजिक समरसता के विपरीत मिलने वाले किसी भी सामग्री को तुरंत हटा दिया जाए। इसके अलावा, ऐसी वेबसाइट तक लोगों की पहुंच को तब तक रोका जा सकता है, जब तक गैरकानूनी बयानों के प्रसार और पुनरावृत्ति से बचने तथा आपत्तिजनक फतवे पर लगाम लगाने के साथ-साथ दोषियों पर उचित कारवाई नहीं हो जाती।
हालांकि, सरकार और प्रशासन की सख्ती को देखते हुए दारुल उलूम ने ऐसे आपत्तिजनक फतवों को अपने वेबसाइट से हटा दिए है, परंतु पूर्ण रूप से नहीं। इसी को देखते हुए बाल अधिकारों की सर्वोच्च संस्था ने फिर से एक ऐसी ही आपत्तिजनक फतवों की लिस्ट सौंपी है। वो तो भला हो योगी सरकार का, जो ऐसे संस्थाओं पर नकेल कस रही है और इन पर कार्रवाई का साहस कर रही है। वरना दूसरी सरकारों में तो ये मदरसे इस्लामिक कट्टरता पर न सिर्फ फतवा पारित करते थे, बल्कि उसे लागू भी करते थे चाहें वो भारत के कानून और अखंडता के विपरीत ही क्यों न हो!
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