ओवैसी की हत्या के लिए किसी ने नौसिखिए हमलावर को चुना किंतु हमारे अनुमान में ओवैसी खुद ही हैं

सत्ता के लोभ में सब जायज़ है!

“नकल के लिए भी अकल की ज़रुरत होती है।”

ऐसा ही कुछ हाल ही में मुस्लिम कट्टरता के ध्वजवाहक और लोकसभा सांसद असदउद्दीन ओवैसी के ऊपर हुए हमले में नज़र आया है। AIMIM अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी पर बीते शुक्रवार को हमला हुआ था। दरअसल, अपने चुनावी यात्रा के दौरान ओवैसी उत्तर प्रदेश से दिल्ली लौट रहे थे तब दो हमलावरों ने ओवैसी की गाड़ी पर तीन गोलियां चलाईं थी, जिसके बाद उन दोनों हमलावरों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। वहीं, बीते शुक्रवार से इस घटना पर शोर मचा हुआ है किन्तु इस घटना ने ही अपने विरुद्ध सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं, जिनको नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है।

हमले के पीछे कौन कहीं ओवैसी स्वयं तो नहीं?

राजनीति में वैचारिक विरोध होना लोकतांत्रिक है पर ओवैसी पर हुए हमले को स्वयं ओवैसी ने उसे एक वर्ग के रैडिकलाइजेशन (चरमपंथ) की तरफ बढ़ रहे कदम से जोड़ दिया है। ये सत्य है कि AIMIM के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी के उत्तर प्रदेश के हापुड़ में उनके ऊपर हुए हमले को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। जैसा कि आप जानते हैं कि हर चीज़ के दो पहलु होते हैं। इस घटना में भी दिन बढ़ते-बढ़ते नए तथ्य सामने आ रहे हैं। इस घटना को अंजाम देने वाले दो आरोपी शामिल शुभम और सचिन को गिरफ्तार कर लिया गया है और आगे की जाँच जारी है। हालांकि, इस घटना की जांच पुलिस करेगी किन्तु टीवी चैनलों पर चल रही CCTV फुटेज की मानें तो सोशल मीडिया पर लोग उसके आधार पर तथ्य निकाल रहे हैं।

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 लोगों के अनुसार, इस घटना को प्रचार-प्रसार का आधार बनाकर स्वयं के नाम को यूपी की राजनीति में किस प्रकार स्थापित किया जाए यही ओवैसी का प्लान है।उनकी गाडी के फुटेज से यह साफ़ नज़र आ रहा है कि जो भी गोली चली वो उनको मारने के उद्देश्य से नहीं चली थी। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि यदि हमलावर का उद्देश्य वास्तव में ओवैसी को मारने का था, तो गोली या तो शीशे पर लगती या दरवाज़े के ऊपरी भाग में। यह साफ़-साफ़ दिख रहा है कि गोली गाड़ी के टायर से बिलकुल सटे हुए ऊपरी हिस्से पर लगी थी, जैसे गोली मारने के लिए नहीं टायर पंचर करने के लिए चलाई गई हो। वहीं, इससे स्पष्ट होता है कि शायद हमलावर नौसिखिया था।

जांच पूरी होने तक करना होगा इंतजार  

वहीं, सोशल मीडिया पर इस बात की भी चर्चा हो रही है कि यूपी चुनाव में अपनी ज़मीन तलाश रहे ओवैसी ने यह घटना अपने ही इशारे पर कराई है। जिस प्रकार पहले भी कई बार राजनेता अपने ऊपर हमला कराकर लाइमलाइट लेने का प्रयास करते हैं। ओवैसी को भी उसी का एक दूसरा पहलु बताया गया है क्योंकि ओवैसी जिस उद्देश्य से यूपी की राजनीति में आए थे उन्हें उस तरह का रिस्पॉन्स मिलता दिख नहीं रहा है। बता दें कि मुस्लिम मतदाताओं के वोटों का ध्रुवीकरण करने की तीव्र इच्छा के साथ आये असदउद्दीन ओवैसी को राज्य की पहले से स्थापित पार्टियों ने बहुत पीछे छोड़ दिया है, जिस प्रकार पहले ओमप्रकाश राजभर से ओवैसी चुनाव लड़ने की बात कर रहे थे, वो राजभर तो स्वयं अखिलश यादव के साथ हमजोली हो चले हैं।

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सपा से गठजोड़ बनने की आस लगाए बैठे ओवैसी को वहां भी झुनझुना ही हाथ लगा था। ऐसे में, ओवैसी पर हुए हमले को राजनीतिक पब्लिसिटी स्टंट करार देना हास्यास्पद नहीं तथ्यात्मक लग रहा है। इन सभी बातों की सोशल मीडिया ढ़ेर लगी हुई है। वहीं, ओवैसी पर हुए हमले को अधिकांश लोग संदेहजनक दृष्टि से देख रहे हैं। बताते चलें कि ओवैसी पर हुए हमले में आरोपियों से पूछताछ के बाद यूपी के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार ने बताया है कि धर्म विशेष पर दिए गए सांसद ओवैसी के बयान पर दोनों हमलावर आहत थे। ऐसे में, इस हमले को लेकर अभी जांच पूर्ण होगी और तब तक इन सभी आधारों पर कोई भी प्रश्न खड़ा करना उचित नहीं होगा।

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