पीएम मोदी की बदौलत अब CPI-M जैसी कम्युनिस्ट पार्टियां भी शिवाजी जयंती मना रही हैं

अरे वाह! यह तो चमत्कार हो गया

source- tfipost

काली घटा का घमंड घटा, यह कथन CPI-M के परिप्रेक्ष्य में इन दिनों एकदम सटीक बैठती है। सीपीआईएम के विद्यार्थी समूह स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (DYFI) ने संयुक्त रूप से छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के अवसर पर महाराष्ट्र के विभिन्न इलाकों में चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया है। यूँ तो देशभर में शिवाजी जयंती के उपलक्ष्य पर अनेकों कार्यक्रम आयोजित होते हैं परन्तु यहाँ हतप्रभ होने की स्थिति तब आती है जब वामपंथ के उपासक, हिन्दू देवी देवताओं से लेकर हिन्दू नायकों को सर्वदा कोसने वाले CPI-M के घटक विद्यार्थी समूह, शिवाजी महाराज का पूजन करने लगते हैं।

DYFI जो कि महाराष्ट्र में शिवाजी जयंती मना रहा है वह CPIM की युवा शाखा है। CPIM का भारत की सांस्कृतिक विरासत, हिंदुत्व के प्रतीकों एवं हिन्दू धर्म को गाली देने का एक लंबा इतिहास रहा है और आज वही पार्टी शिवाजी जैसे प्रतीक को मान रही है, जो दोहरे चरित्र की पराकाष्ठा ही है। यूँ तो स्वतंत्रता के उपरांत, शुरुआती दशकों में कई राज्यों में  CPIM जैसे वाम दलों की अच्छी उपस्थिति थी। 1951-52 के पहले लोकसभा चुनाव में अविभाजित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) ने 16 सीटें जीती थीं। 1962 में यह बढ़कर 29 सीटों पर पहुंच गई और पार्टी को करीब 9 फीसदी वोट भी मिले। पार्टी के विभाजन के बाद, 1967 में CPI और CPI(M) को 42 सीटें मिलीं, लेकिन उनका वोट शेयर 9 प्रतिशत के आसपास रहा। यह सिलसिला तीन दशकों तक चलता रहा।

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दोनों पार्टियों ने 2004 में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, जब उन्होंने लोकसभा में 53 सीटें हासिल की थी। इसके बाद, उनकी किस्मत दुर्घटनाग्रस्त हो गई। 2014 में दोनों पार्टियाँ सिर्फ दस सीटें जीत सकीं और उनका राष्ट्रीय वोट प्रतिशत घटकर 4 प्रतिशत रह गया। इस समय वे खतरे के निशान से काफी नीचे हैं और उन्हें सिर्फ पांच सीटें और राष्ट्रीय वोट का लगभग 2 प्रतिशत हासिल हुआ है।

अब बुद्धि खुली है-

ऐसे में जबसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार शासन में आई है, तबसे देश में वामपंथी दलों का एकमात्र भाग दक्षिण के कुछ राज्यों तक ही सीमित रह गया है। यूँ तो CPI(M) जैसे दल सदैव उग्र होकर हिन्दू धर्म की भर्त्स्ना करते नहीं थकते थे, परंतु बीते 7 वर्षों में शायद उनकी बुद्धि के कपाट खुल गए जो वीर शिवाजी की जयंती बनाने पर इनके घटक संगठनों को विवश होना पड़ गया।

दूसरी ओर, महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज को हर धर्म के लोग अपना देवता और प्रेरणास्त्रोत मानते हैं, उनकी मान्यता महाराष्ट्र से सटे सभी प्रदेशों में भी है। ऐसे में CPI(M) के विद्यार्थी समूह को यह अवश्य ज्ञात हो गया होगा कि यदि यहाँ या कहीं और शिवाजी महाराज या अन्य किसी भी हिन्दू नायक के विरुद्ध बदतमीज़ी वाली भाषा का प्रयोग किया गया तो निस्संदेह बची-कूची वामपंथ की आत्मा को तबाह कर दिया जाएगा।

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यूँ तो कम्युनिस्ट पार्टियों सहित दुनिया भर के अधिकांश राजनीतिक दल, खुद को बचाए रखने और लोकप्रिय समर्थन हासिल करने के लिए खुद को फिर से खोजते हैं लेकिन सीपीआई और सीपीआई (एम) उन सिद्धांतों और नारों पर अडिग रहा है जो उन्हें दशकों पहले परिभाषित करता था। मजदूर वर्ग, संगठित श्रम और पूंजीवादी-सर्वहारा वर्ग के द्विआधार के बारे में उनके विचार अपरिवर्तित रहते हैं, भले ही दुनिया आगे बढ़ गई हो।

इसी बीच वामपंथी दलों जिनमें CPI(M) सदैव शामिल रही उसने हिंदू विरोधी भावना, जिसे हिंदूफोबिया के रूप में भी जाना जाता है, उसमें वैचारिक बदलाव करने को मजबूर होते हैं। हिंदुओं को ऐतिहासिक रूप से मुसलमानों द्वारा काफिर माना जाता रहा है और कुछ ईसाइयों द्वारा हीथेन, शैतानी या राक्षसी माना जाता है। वहीं धीरे ही सही, वामपंथ के अनुयायियों को यह तो समझ आने लगा है कि अब वो शासन नहीं है जो हिन्दू धर्म से जुड़े किसी भी कुकृत्य को पनाह दे देगा। अब शासन केवल हिन्दू धर्म नहीं सभी का संरक्षण करने के लिए प्रतिबद्ध है।

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