अगर विदेश में जीतना चाहता है भारत, तो घरेलू पिचों में लानी होगी विविधता

भारतीय क्रिकेट पिच पर रन बनाना आसान है, तो ऐसी पिच पर खिलाड़ियों का अभ्यास कैसे होगा?

एक सवाल हर भारतीय के मन को हमेशा कचोटते रहता है कि आखिर हमारी क्रिकेट टीम विदेश में क्यों हार जाती है? हमारे पास विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों, गेंदबाजों और क्षेत्ररक्षकों की फौज है फिर भी हम विदेश में जाते ही आखिर फेल क्यों हो जाते है। यही MS धोनी जब भारतीय उपमहाद्वीप के पिचों पर नेतृत्व करते हैं तब टीम विश्व कप जीत जाती है और यही एमएस धोनी का कप्तानी रिकॉर्ड विदेश में जाते ही फिसड्डी हो जाता है। आखिर, क्या कारण है कि हम सिर्फ 1983 में विदेश में जाकर विश्व कप जीत पाए उसके बाद या तो कभी ग्रुप स्टेज में बाहर हो जाते है तो कभी सेमी-फाइनल में।

हम सिर्फ बल्लेबाजी वाली पिचों पर ही खेलने के आदि हो गए है। इससे हमारा सर्वांगीण विकास रुक गया है। इस कारण हम विदेश में जाकर वहां के माहौल में ना तो ढल पाते हैं और ना ही खेल पाते है।

हम अपने दर्शकों को बता दें की सारी मूल समस्या का जड़ यही हैl हम अपने आनंद के लिए चौकों- छक्कों की बारिश और चीयर लीडर्स का डांस देखने के लिए ज्यादा उत्साहित रहते है। हमारी यही लालसा क्रिकेट, बोर्ड, खिलाड़ी और क्यूरेटर को मजबूर कर देती है कि एक खास प्रकार की पिच बनाई जाए जो बाल्लेबाजों के लिए तो स्वर्ग समान हो पर गेंदबाजों के लिए कब्रगाह बन जाए। इसी चाहत ने बल्ले और गेंद के बीच के संतुलन को ध्वस्त कर दिया है। गेंदबाज को मार पड़ती है तो हमे ज्यादा मजा आता है और विकेट देखने तथा अच्छी गेंद को सराहने में कम। इस कारण मुनाफा कमाने के लिए ऐसी पिचें बनती जाती हैं और भारतीय क्रिकेट की पिचें हमेशा विवादों में आ जाती हैं।

कई बार तो भारतीय पिच क्यूरेटरों को प्रतिद्वंद्वी टीमों की आपत्तियों का सामना करना पड़ता है। चाहे वह IND vs AUS 2017 का पुणे टेस्ट हो, IND vs AUS 2004 का मुंबई टेस्ट हो या फिर IND vs ENG 2021 की टेस्ट सीरीज । माइकल वॉन सहित कई दिग्गज क्रिकेटरों ने भारतीय क्रिकेट पिचों की आलोचना की हैl

भारतीय क्रिकेट पिच विवाद: 2021

आप लोगों को याद होगा चेन्नई में इंग्लैंड के साथ हुए पहले टेस्ट के बाद सोशल मीडिया पर पहली बार भारतीय पिचों के लिए “द बीच” शब्द ट्रेंड किया था। यह पूर्व अंग्रेजी कप्तान माइकल वॉन द्वारा कहा गया था। इंग्लैंड ने पहला टेस्ट 227 रन से शानदार तरीके से जीता। इसके बाद भारत ने दूसरा टेस्ट 317 रनों के बड़े अंतर से जीता। इसी ने भारतीय क्रिकेट पिच विवाद को जन्म दिया और हमारी पिचों को बीच की संज्ञा दी गई क्योंकि यहां उछाल ना के बराबर था।

कौन तय करता है कि एक आदर्श क्रिकेट पिच क्या है?

भारत में जब क्रिकेट की बात आती है तो हर कोई विशेषज्ञ बन जाता है और क्रिकेट पिच जैसा जटिल विषय इसे तैयार करने वाले क्यूरेटर पर छोड़ दिया जाता है।

इस सवाल का जवाब देने के लिए कि आदर्श सतह क्या है, मप्र क्रिकेट संघ के मुख्य पिच क्यूरेटर श्री समंदर सिंह चौहान कहते हैं- “एक क्यूरेटर को सबसे पहली बात यह ध्यान में रखनी चाहिए कि खेल का प्रारूप क्या है। सीमित ओवरों के प्रारूप, खासकर टी20 में पिच की मांग अलग होती है। यह चौकों और छक्कों के बारे में अधिक है। इसी तरह वनडे और टेस्ट क्रिकेट की भी मांग है।”

इस मुद्दे पर उमरीगर कहते है कि पिच क्यूरेटर ही पिच चुनते हैं। वे तय करते हैं कि खेल के प्रारूप के अनुसार कौन सी सतह होनी चाहिए। एक कप्तान होम क्यूरेटर से एक निश्चित प्रकार की पिच के लिए कह सकता है, लेकिन उसे निर्देश नहीं दे सकता। उसके बाद, क्यूरेटर बैठकर फैसला करते हैं। उन्हें बीसीसीआई के दिशानिर्देशों का भी पालन करना होता है ।

पर, समस्या सिर्फ इतनी ही नहीं है। क्या आप जानते हैं क्रिकेट पिच मूल रूप से 3 प्रकार की होती है। मृत पिच, धूल भरी पिच और हरी पिच। भारत में मुख्य समस्या यही है कि यहां डेड क्रिकेट पिचें पूरी तरह से सपाट हैंl इनकी सतह पर कोई घास और नमी नहीं होती है। पिच से घास नीचे लुढ़क जाती है और नमी की मात्रा शून्य हो जाती है। इन पिचों का रंग गहरा है। इसे बल्लेबाजों के लिए स्वर्ग और गेंदबाजों के लिए बुरा सपना माना जाता है।

इस प्रकार की क्रिकेट पिचें मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीपों में पाई जाती हैं। सीमित ओवर क्रिकेट जैसे ODI और T20 मुख्य रूप से इस प्रकार की क्रिकेट पिचों पर खेले जाते हैं। चूंकि इन विकेटों में गेंदबाजों के लिए कुछ भी नहीं है, इन क्रिकेट पिचों के परिणामस्वरूप उच्च स्कोरिंग मैच होते हैं। यही बात इन पिचों पर खेले जाने वाले खेल को और मनोरंजक बनाती है।

पर, इसके दूरगामी परिणाम का क्या? यह हमारे बल्लेबाजों को एक खास तरह की पिच पर खेलने का आदि बना देता है। इतना ही नहीं यह गेंदबाज के मनोबल को भी इस हद तक तोड़ देता है कि गेंदबाज अपनी गति और स्विंग छोड़ कर गति परिवर्तन के माध्यम से विकेट चटकाने की सोचने लगता है क्योंकि चिन्नास्वामी और वानखेड़े तथा कानपुर के पिचों पर गेंदबाजों को स्विंग तो मिलने से रहा।

फिर, जब यही खिलाड़ी विदेश में खेलने जाते है तब इन्हें ग्रीन क्रिकेट पिच का सामना करना पड़ता है। ये क्रिकेट पिच गेंदबाजों के लिए सबसे उपयुक्त हैं। इस तरह की क्रिकेट पिच पर तेज गेंदबाजों को काफी फायदा होता है। गेंदबाज इन पिचों पर काफी स्विंग की उम्मीद कर सकते हैंl इन पिचों पर घास तेज गेंदबाजों के लिए काफी हलचल पैदा करती है। हरी पिच बल्लेबाजों के लिए बुरे सपने के रूप में जानी जाती है।

हरी पिचों पर स्वाभाविक रूप से हरी घास होती है जो गेंद पर कम घर्षण पैदा करती है। एक अधिक और आसान स्विंग के परिणामस्वरूप स्विंग के साथ-साथ इन पिचों में उछाल अप्रत्याशित होता है, जो इसे बल्लेबाजों के लिए और खतरनाक बना देता है। इस प्रकार की क्रिकेट पिचें पश्चिमी देशों जैसे इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती हैं।

धूल भरी क्रिकेट पिच भी आमतौर पर भारत में पाई जाती है। इन पिचों की सतह नरम और अनियंत्रित होती है। इससे स्पिन गेंदबाजों को काफी फायदा होता है। इन पिचों पर बल्लेबाजी करना काफी आसान होता है। क्योंकि गेंद के उछाल का अंदाजा बल्लेबाज आसानी से लगा सकते हैंl इस प्रकार की क्रिकेट पिचें ज्यादातर उपमहाद्वीपों में पाई जाती हैं। इन विकेटों पर रन बनाना काफी आसान है। गेंदें सामान्य रूप से कम रहती हैं जिसे बल्लेबाजों द्वारा खेलना आसान होता है।

कहने का सार यह है  कि हम सिर्फ बल्लेबाजी को ध्यान में रखते हुए पिच बना रहें है। आईपीएल में तो हैदराबाद के मैदान को छोड़ कर सभी मैदानों का औसत रन 170-180 है। हमें यह समझना होगा कि अगर हम स्टेडियम में भीड़ जुटाने के लिए और पैसा कमाने के लिए बल्लेबाज अनुकूल और गेंदबाज प्रतिकूल पिच बनाते रहेंगे तो हम हमेशा विदेशों में मैच हारते रहेंगे क्योंकि हमारे बल्लेबाज ना तो तेज खेलने के आदि होंगे और ना ही गेंदबाज तेज फेंकने के।

 

Exit mobile version