‘The Wire’ काश तुम्हारे पास “टेक फॉग” के लिए एक अच्छा शोधकर्ता होता

फर्ज़ी App को लेकर झूठ फैलाने चला The Liar!

सोशल मीडिया के इस युग में जितना इसका सदुपयोग नहीं हो रहा है उससे कई ज़्यादा इसका दुरूपयोग दिखाई देने लगा है। कुछ वर्ग जो खुद को स्वतंत्र पत्रकारिता का ध्वजवाहक बताते हैं, उनके अनुसार अभिव्यक्ति की आज़ादी है मतलब है कि कुछ भी लिख दो, कुछ भी छाप दो। ऐसा ही काम फ़ेक न्यूज़ फैलाने में माहिर ‘द वायर’ ने किया है। The Wire ने भारत सरकार और भाजपा को अपने प्रोपेगेंडा में घेरने की कोशिश की है। द वायर ने सरकार पर एक सोशल मीडिया कंट्रोल ऐप का आविष्कार करने और उसका प्रयोग कर झूठ को लोगों तक पहुँचने का आरोप लगाया है। द वायर के अनुसार उसकी रिसर्च में यह पता चला है कि ‘टेक फॉग’ ऐप  सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है। इसकी सहायता से सरकार अपने पक्ष की ही बातें लोगों तक पहुंचती है। इसी ऐप पर सरकार ने संसद में अपना पक्ष रखा।

सरकार को घेरने वाली द वायर की रिपोर्ट पर सरकार ने संसद को शुक्रवार को सूचित किया कि, “कथित ऐप ‘टेक फॉग’ के बारे में खबरों पर ध्यान दिया है, जिसका कथित तौर पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में हेरफेर करने के लिए इस्तेमाल किया गया था और IT मंत्रालय ने इसे ऐप स्टोर पर खोजने की कोशिश की लेकिन ऐसा कोई भी एप नहीं मिला।”

इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने राज्यसभा को एक लिखित जवाब में कहा कि कुछ रिपोर्टों के अनुसार इस सोशल मीडिया ऐप के माध्यम से लोगों के विचारों में हेरफेर करने में सक्रिय रूप से उपयोग में लाया गया लेकिन मंत्रालय को जांच में ऐसी कोई तकनीक किसी भी ऐप स्टोर पर नहीं मिली है।

इसके परिणामस्वरूप अब कुछ भी छापने वालों को कड़ा सन्देश स्वयं सरकार देने जा रही है, अभिव्यक्ति की आड़ में झूठ का आडम्बर गढ़ने वालों का सरकार पर्दाफाश करती नज़र आ रही है।

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यदि इसे रिसर्च कहा जाता है तो निस्संदेह द वायर को अब अपनी टीम में नए रिसर्चर की तलाश शुरू कर देनी चाहिए क्योंकि इससे द वायर की भरे बाजार या भरी संसद दोनों में बेइज़्ज़ती कुछ अधिक हो गई है। अपने दावे में जिस प्रकार द वायर ने यह कहा कि दो साल की जाँच पड़ताल के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचा है कि इस ऐप का उपयोग भाजपा अपने फायदे के लिए करती है। यदि उस समय द वायर पर एक ढंग का शोधकर्ता होता तो शायद इतनी फजीहत न होती क्योंकि वो शोधकर्ता यह तो बता देता कि जिस ऐप का ज़िक्र किया जा रहा है, उस ऐप का किसी भी ऐप स्टोर में अस्तित्व ही नहीं है। बावजूद इसके घमंड में उन्होंने इस रिपोर्ट को छाप दिया।

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दरअसल, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या सरकार नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के विरोध, दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा और COVID-19 महामारी के दौरान गलत सूचना फैलाने में टेक फॉग ऐप की भूमिका की जांच करने का इरादा रखती है।

चंद्रशेखर ने कहा, “सरकार ने कथित ऐप के बारे में समाचार लेखों को नोट किया है, जिसका नाम ‘टेक फॉग’ है।” उन्होंने कहा “इस मंत्रालय ने प्रमुख ऐप स्टोर और एपीके स्टोर पर ऐप का पता लगाने की कोशिश की है और इनमें से किसी भी ऑनलाइन स्टोर में यह ऐप नहीं मिला।” उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार उपयोगकर्ताओं के लिए खुले, सुरक्षित और जवाबदेह इंटरनेट के लिए प्रतिबद्ध है, और कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से गलत और घृणित जानकारी के प्रसार की बढ़ती घटनाओं से उत्पन्न जोखिम और खतरे से अवगत है।

यहाँ द वायर का बिना उल्लेख किए मंत्री महोदय ने दो टूक सन्देश भी दे दिया। उन्होंने कहा कि सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यूजर्स को नुकसान पहुंचाने और घृणित सामग्री की चुनौतियों से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं। उन्होंने नए आईटी मध्यस्थ नियमों और मुद्दों के समाधान के लिए उठाए गए अन्य उपायों का हवाला दिया।

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इन सभी बातों से यह तो सिद्ध हो गया कि, जब भी आवेश में आकर कोई भी बड़ा कदम उठाया जाता है, अधिकांश रूप से व्यक्ति को मुंह की खानी पड़ती है। ऐसा ही कुछ द वायर के संग हुआ जो इतना बौरा गया कि एक और फेक कंटेंट अपनी फ़र्ज़ी वाली लिस्ट में सूचीबद्ध कर लिया।

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