दुनिया का कोई भी देश भारतीय सेना को पर्वतीय युद्ध में मात नहीं दे सकता

भारत के बहादुर शेरों से दुश्मनों को भय खाना चाहिए

पर्वतीय युद्ध

Source- TFIPOST

हाल के बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक के उद्घाटन समारोह के दौरान चीन ने उस सैन्य अधिकारी से बैटल रिले परेड कराई, जिसने गलवान घाटी संघर्ष के दौरान भारतीय सैनिकों से मार खाई थी। सैनिक की परेड इस बात का सबूत थी कि चीन ने आखिरकार स्वीकार किया कि वास्तव में विवाद हुआ था। चीन ने पहले तो अपने कायरतापूर्ण हमले से भारत को झटका देना चाहा, जिसके जवाब में भारतीय सेना ने न सिर्फ जोरदार प्रहार किया, बल्कि LAC के पर्वतीय क्षेत्रों में उन्नत चौकियों पर कब्जा कर भी कर लिया। अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों और स्वयं चीनी सैनिकों ने आखिरकार यह मान लिया कि इस झड़प में चीन के 4 नहीं, बल्कि 40 सैनिक मारे गए थे जैसा कि भारतीय सेना काफी पहले से ही कहते आ रही है।

जब से चीन ने भारतीयों सैनिको से मार खाई है, तब से चीनी सैनिकों में भारतीय सैनिकों का इतना खौफ है कि वे उनके नाम से ही डर जाते हैं। गलवान घटना के बाद अब मॉडर्न वेपनरी पत्रिका के वरिष्ठ संपादक हुआंग गुओझी ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत के पास पर्वतीय युद्ध के लिए सबसे परिष्कृत सशस्त्र बल हैं। याद करिए, इस पत्रिका से पहले यही कथन हमारे प्यार CDS General स्वर्गीय विपिन रावत ने दी थी। जब से चीन के 40 हथियारबंद सैनिकों को हमारे निहत्थे सैनिकों द्वारा मारे जाने की खबर अंतरराष्ट्रीय मीडिया और सैन्य संस्थान के संज्ञान में आई है, तब से वो CDS General स्वर्गीय विपिन रावत की कही गयी बातों को दोहरा रहें हैं कि पर्वतीय युद्ध में विश्व की कोई सेना भारत के आगे नहीं टिक सकती।

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हुआंग गुओझी ने लिखा, “वर्तमान में पठार और पर्वतीय सैनिकों के साथ दुनिया का सबसे बड़ा और अनुभवी देश न तो अमेरिका, रूस और न ही कोई अन्य यूरोपीय देश है, बल्कि भारत है।” यह ध्यान देने योग्य है कि गुओझी की पत्रिका को एक व्यापक सैन्य और रक्षा पत्रिका माना जाता है। यह राज्य के स्वामित्व वाली चाइना नॉर्थ इंडस्ट्रीज ग्रुप कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NORINCO) से संबद्ध है, जो खुद ही PLA के लिए मशीनीकृत, डिजीटल और बौद्धिक उपकरण विकसित करने के लिए एक मुख्य मंच है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि गुओझी परोक्ष रूप से पीएलए सैनिकों की जुबान बोल रहे थे।

भारतीय सैनिक और उनका पर्वतीय प्रशिक्षण

ध्यान देने वाली बात है कि पर्वतारोहण भारतीय पर्वतीय मंडल के लगभग हर सैनिक का एक अनिवार्य हिस्सा है। भारत सियाचिन में दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र की रक्षा करता है। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में जहां फसल भी नहीं उग सकते, वहां साल-दर-साल, ऐसे बहादुर शेरों को सेना द्वारा अत्यंत पूर्णता के साथ तराशा जाता है। अधिकांश सैनिकों के लिए पहाड़ उनके दूसरे घर हैं, जिनमें से कुछ अपने घर के पिछले हिस्से की तरह इस क्षेत्र से भी भलि-भांति परिचित हैं।

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SFF– चीन का सबसे बुरा सपना

जैसा कि टीएफआई द्वारा पहले ही बताया गया है कि भारत की गुप्त स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) पर्वतीय क्षेत्र में चीन के लिए काल के समान हैं। स्थानीय इलाकों के बारे में पूरी तरह से जागरूक होने और पहले से ही ऐसे पर्यावरण के आदी होने के कारण SFF ने चीन को अपने बिल में रहने को मजबूर कर दिया है। ध्यान देने वाली बात है कि SFF इकाइयां सेना का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन वे सेना के नियंत्रण में कार्य करती हैं। इन इकाइयों की अपनी रैंक संरचनाएं होती हैं, जिन्हें सेना के रैंक के बराबर दर्जा प्राप्त होता है। हालांकि, वे उच्च प्रशिक्षित विशेष जवान होते हैं, जो विभिन्न प्रकार के कार्य कर सकते हैं, जो आमतौर पर किसी विशेष बल इकाई द्वारा किए जाते हैं।

पर्वतीय युद्ध में भारत का मुकाबला करना टेढ़ी खीर

बताते चलें कि भारतीय सैनिक अपने देश के लिए लड़ते हैं, वही चीनी सेना के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि वो जिनपिंग के निजी लड़ाकों की तरह लड़ते है। पीएलए में अधिकांश सैनिक निजी लड़ाके और गैर-पेशेवर हैं। इस प्रकार, सेना में शामिल होने की उनकी प्रेरणा विशुद्ध रूप से मौद्रिक है और अनिवार्य सेना सेवा को पूरा करने तथा नागरिक जीवन में जल्दी से आगे बढ़ने का एक तरीका है। उनमें देशभक्ति और राष्ट्र सेवा की भावना नगण्य है।

इसके बावजूद चीन LAC पर अपने सैनिकों की अंधाधुंध प्रतिनियुक्ति करता है, जबकि भारतीय सैनिकों को ऊंचाई पर तैनात करने के लिए आवश्यक अनुकूलन से गुजरना पड़ता है। भारत के पास अपनी पैदल सेना में लद्दाखी, तिब्बती और अन्य पर्वतारोही सैनिक हैं, जो इस क्षेत्र में पले-बढ़े हैं, जबकि चीन के पास ऐसा नहीं है। क्योंकि उसका सत्तावादी शासन तिब्बत पर कब्जा कर रहा है और इस क्षेत्र में अकथनीय अत्याचार कर रहा है। तिब्बतियों के पास चीनी कब्जे को हराने के लिए अतिरिक्त प्रेरणा है और तिब्बतियों के पीएलए सैनिकों में शामिल होने का कोई सवाल ही नहीं है।

ध्यान देने वाली बात है कि छद्म युद्ध के जरिए बीजिंग केवल पीछे से भारतीय सेना पर हमला कर सकता है। पर्वत पर भारत के पराक्रम का पारंपरिक युद्ध के मैदान या पर्वतीय युद्ध के मैदान में कोई मुकाबला नहीं कर सकता। हमारी सेना का शौर्य पाकिस्तान कारगिल और सियाचिन में पहले ही देख चुका है। भारतीय सैनिक PLA के मुकाबले बहुत फुर्तीले, पुष्ट और मजबूत हैं और यही उन्हें दुनिया भर के खतरनाक सैनिकों में से एक बनाता है।

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