“पंजाब में नशा कोई मुद्दा नहीं”, उड़ते सुखबीर की उड़ता पंजाब वाली टिप्पणी

सुखबीर सिंह बादल के लिए पंजाब में सब चंगा सी!

जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी…पंजाब चुनाव देहलीज़ पर खड़े हैं और राज्य के पुराने दल शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल इस कथन को चरितार्थ कुछ इस अंदाज़ में कर रहे हैं कि वो राज्य की छवि को धूमिल करने में सबसे बड़े कारक ड्रग्स के अस्तित्व को नकार रहे हैं। पंजाबी युवाओं में नशे की समस्या पर बनी 2016 की बॉलीवुड फिल्म उड़ता पंजाब को राज्य के प्रमुख विपक्षी दल शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की प्रतिक्रिया मिल गई। एक साक्षात्कार में अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने पंजाब को खराब तरीके से पेश करने के लिए मीडिया और बॉलीवुड की आलोचना की। उन्होंने कहा कि पंजाब, दिल्ली, हरियाणा या गोवा में “चिट्टा (हेरोइन का मिलावटी रूप)” की कोई समस्या नहीं है।

सत्य तो यह है कि, सुखबीर सिंह बादल सच स्वीकारने से बच रहे हैं, यही कारण है कि वो ऐसे सर्वविदित सत्य को नकार रहे हैं जिसका प्रमाण टीवी के अतिरिक्त लोगों ने ज़मीनी हकीकत पर देखा है। पंजाब कोई आज अचानक से ड्रग्स के चंगुल में नहीं आया है, वहां के क्षेत्रीय राजनीतिक दल ही उसको शह देते आए हैं जिनमें शिरोमणि अकाली दल भी शामिल है। शिआद के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सुखबीर सिंह बादल, ड्रग्स और पंजाब को जोड़े जाने पर मुंबई के फिल्म जगत को आरोपित बना रहे हैं पर सत्य तो यह है कि उड़ता पंजाब में जितना भाग दिखाया है, पंजाब में असल हालात तो उससे भी खराब हैं। जो आज पंजाब को ड्रग्स मुक्त बता रहे हैं और पंजाब का दुष्प्रचार करने का श्रेय फिल्म इंडस्ट्री को दे रहे हैं, असल में ऐसे ही नेताओं के रिश्तेदार पंजाब में ड्रग्स कारोबार के सरगना हैं जिनके विरुद्ध इन दिन कड़ी कानूनी कार्रवाई चल रही है।

ज्ञात हो कि, यदि सुखबीर बादल के अनुसार पंजाब ड्रग्स प्रभावित राज्य नहीं है। ऐसे में पंजाब से एक चौकाने वाला सच सामने आया है, जिसके अनुसार बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूरों को पंजाब के खेतों में बंधुआ मजदूर की तरह काम कराया जाता था। साथ ही में उन्हें ड्रग्स दिया जाता है, ताकि उनसे नशे की हालत में अधिक से अधिक काम लिया जा सके। सीमा सुरक्षा बल (BSF) की एक जांच रिपोर्ट ने इस बात का खुलासा किया है। रिपोर्ट सामने आने के बाद पंजाब के पुलिस अधिकारी ने यह बात कबूल भी की है। उन्होंने कहा है कि यह सच है, लेकिन सीमा सुरक्षा बल इस मामलें को ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है। गृह मंत्रालय ने तत्कालीन प्रभाव से इस मामले का संज्ञान लिया है। ऐसे में यदि राज्य में ड्रग्स का ‘ड’ भी नहीं है तो इन मज़दूरों को दिया जाने वाला ड्रग्स शायद अमृत ही होगा।

भारत युवाओं का देश है, इसकी पूरी जनसंख्या में लगभग 65 प्रतिशत आबादी युवाओं की है। एक ओर विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी होने का गर्व भारत को है, तो वहीं बहुसंख्यक युवा आबादी के एक बड़े तबके का नशे में डूब जाना चिंता का विषय है। इसकी चपेट में आने वाला हर युवा आज बर्बाद हो रहा है। व्यापक स्तर पर युवाओं में फैलती ड्रग और नशाखोरी देश की मुख्य समस्याओं में से एक है। लेकिन हमारे कुछ राज्य ऐसे हैं जहां यह समस्या हद पार कर चुकी है। पंजाब इन्हीं राज्यों में अव्वल नंबर पर आता है। वर्ष 2017 के चुनाव से पहले कांग्रेस ने वादा किया था कि अगर वे चुनाव जीत जाती है तो राज्य में नशाखोरी पूरी तरह से समाप्त कर देगी। स्थिति यह है कि कांग्रेस को सत्ता के पांच वर्ष पूरे होने वाले हैं और चुनाव दस्तक दे चुका है लेकिन पंजाब की हालत पहले से भी दयनीय होती जा रही है।

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पंजाब में ड्रग्स की समस्या इतनी बढ़ चुकी है कि आए दिन अखबारों में ड्रग्स की खबरें कहीं न कहीं दिख ही जाती हैं। ड्रग समस्या और ड्रग माफिया न सिर्फ युवाओं को बर्बाद कर रहे हैं बल्कि जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों की भी हत्या कर दे रहे हैं। नशा कारोबारी के खिलाफ की गयी कार्रवाई के कारण ही कई बार ड्रग इंस्पेक्टर को जान से हाथ धोना पड़ा है, तो कभी उसके परिवार पर संकट आया है। पंजाब में नकली दवाईयों और ड्रग इंडस्ट्री में जितना भ्रष्टाचार है, शायद उतना आज राजनीति में भी नहीं है।

दिल्ली के एम्स ने पंजाब में होने वाले नशाखोरी का अनुमान लगाने के लिए 2015 में पहला व्यापक अध्ययन किया और उस रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकला कि राज्य में 200,000 से अधिक युवा ड्रग्स और नशीले पदार्थों से ग्रसित थे। विभिन्न सरकारी विभागों के डेटा से पता चलता है कि हाल के कुछ वर्षों में समस्या ज्यादा बढ़ गई है। जिसका श्रेय सीमा पार से होने वाली लगातार तस्करी को जाता है। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, 2018 की शुरुआत से अक्टूबर तक 303 किलोग्राम हेरोइन जब्त की गई थी। वहीं जनवरी से दिसंबर 2017 तक केवल 191 किलोग्राम हेरोइन जब्त की गई थी। पिछले ही साल दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 12 करोड़ रुपए से ज्यादा कीमत की साढ़े तीन किलो हेरोइन के साथ दो लोगों को गिरफ्तार किया था। बताया जा रहा था की ड्रग्स की ये खेप पाकिस्तान से अफगानिस्तान होते हुए भारत आई थी। दिल्ली से ये ड्रग्स पंजाब में सप्लाई होनी थी। ड्रग्स की इस खेप के साथ पकड़े गए दोनो आरोपी रविशंकर और विकास ड्रग्स सिंडिकेट के बड़े नाम बताए जा रहे थे।

बीबीसी के आंकड़ों के अनुसार जनवरी और जून 2018 के बीच पंजाब में नशीली दवाओं के दुरुपयोग से 60 मौतें हुईं। जबकि 2017 में ड्रग संबंधित घटनाओं में कुल 30 लोगों की मौत हुई थी। वर्ष 2016 और 2017 में एनडीपीएस अधिनियम (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances ) के तहत अपराधियों के खिलाफ कुल 18,215 प्राथमिकी दर्ज की गई थी। अप्रैल 2017 से अब तक दर्ज की गई एफआईआर की संख्या 23,869 तक पहुंच गई है। सूबे के सामाजिक सुरक्षा विभाग द्वारा वर्ष 2016 के एक आंकड़े के अनुसार पंजाब के गांवो में करीब 67 फीसद घर ऐसे हैं, जहां कम से कम एक व्यक्ति नशे की चपेट में है। पंजाब का दुष्प्रभाव उसके पड़ोसी राज्य हरियाणा पर भी पड़ा है। नशारुपी चिड़िया पंजाब से उड़ती हुई अब हरियाणा और शेष भारत में भी अपना घोंसला बना रही है।

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इतने बड़े आकंड़ों को भी यदि शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल यदि अस्वीकार करते है या इन सबको जानने के बाद भी आँख में पट्टी बाँध लेते हैं तो सौ बात की एक बात यह है कि ऐसे नेता राज्य को गर्त में ले जाना पसंद करते हैं न कि उसको ऐसी भयावह लत से निकलने में अपनी ओर से भूमिका बनाने के प्रयास करते। बादल किस प्रकार ड्रग्स का सेहरा फिल्म जगत के ऊपर मढ़ना चाह रहे हैं, वस्तुस्थिति पूरे राज्य की तीन करोड़ से अधिक आबादी वाली जनता को पता है। बादल जैसे पल्टूराम नेताओं को आईना दिखाना जनता को भली-भांति आता है। बादल जैसे नेता अस्थिर होते हैं जो अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा पूर्ण करने के लिए ऊंट की तरह कब किस करवट बैठ जाएं कोई नहीं जानता। इस बार वो पंजाब को ड्रग्स मुक्त बता रहे हैं, कल को कृषि मुक्त बता दें तो आश्चर्यजनक बात नहीं होगी।

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