हिजाब विवाद के असली दोषी आये सामने

PFI के छात्र संगठन और इस्लामी मदरसा दारुल उलूम ने लड़कियों को भड़काया!

कर्नाटक के उडुपी जिले में पिछले एक महीने से सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में लड़कियों को हिजाब या हेडस्कार्फ़ पहनके आने पर कक्षा में प्रवेश करने से रोका जा रहा है। इस घटना पर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है। घटना को लेकर छात्राओं का कहना है कि वे हिजाब पहनने के अपने अधिकार को जारी रखेंगे और उन्होंने कहा कि यह उनके मज़हब का हिस्सा है। उन्होंने कॉलेज के प्रबंधन से आग्रह किया कि उन्हें हिजाब पहनकर अपनी कक्षाओं में लौटने की अनुमति दी जाए। छात्राओं ने मुस्लिम छात्र संगठनों कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) और स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन (SIO) के समर्थन से 30 दिसंबर को इस मुद्दे पर उडुपी के उपायुक्त कूर्म राव से संपर्क किया था।

उडुपी में कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया की नजहत असदी कहती हैं, “हम इस पूरे मामले में लड़कियों का समर्थन कर रहे हैं और हम चाहते हैं कि उन्हें अपनी कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति दी जाए।” छात्राओं का कहना है कि उन्होंने अपने माता-पिता और स्कूल अधिकारियों के बीच बातचीत के निष्फल होने के बाद इन मुस्लिम संगठनों को संपर्क किया था। CFI पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) से समबन्धित है, जबकि SIO जमात-ए-इस्लामी हिंद की छात्र शाखा है। जब से स्कूल में हिजाब पहनने के मुद्दे पर विवाद हुआ है, समाधान खोजने पर SIO और CFI की राय विभाजित हो गई।

CFI लड़कियों का समर्थन करने में अधिक मुखर रहा है और लड़कियों को हिजाब पहनकर कक्षाओं में जाने की अनुमति देने के बारे में प्रिंसिपल के साथ चर्चा में शामिल रहा है और इस मुद्दे को सोशल मीडिया और मीडिया पर भी उठा रहा है। SIO सदस्यों का कहना है कि वे नहीं चाहते कि इस मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए और वे इसे आंतरिक रूप से हल करने के लिए काम कर रहे हैं।

आपको बता दें कि कर्नाटक सरकार द्वारा अपने सरकारी कॉलेजों में कोई विशेष ड्रेस कोड अनिवार्य नहीं है; ड्रेस कोड लागू करने का निर्णय कॉलेज के अधिकारियों या उनकी विकास निगरानी समितियों पर छोड़ दिया जाता है। कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश का कहना है कि विकास निगरानी समितियों को कक्षाओं के दौरान छात्रों द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों पर अंतिम निर्णय लेने की अनुमति दी जाएगी।

शिक्षा मंत्री बी.सी. नागेश ने कहा कि, “SDPI समर्थित CFI (कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया) हिजाब संघर्ष के पीछे है। जांच के बाद सब साफ़ तौर पर पता चल जायेगा।” उन्होंने आगे कहा कि, “कर्नाटक में हिजाब संघर्ष की जांच चल रही है और एक रिपोर्ट जल्द ही आ रही है। मैंने पहले ही गृह मंत्री से बात की है। हमने जांच की है और समस्या का समाधान किया है। इसके पीछे कौन है यह पता लगाने के लिए एक जांच होगी। कुछ लोगों को लगता है कि जब यह मामला राज्य भर में फैल रहा है तो इसकी जांच की जरूरत है। मामले की जांच के बाद, सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा और हम कार्रवाई करेंगे।”

वहीं इस मामले में कॉलेज विकास निगरानी समिति के अध्यक्ष भाजपा के उडुपी विधायक रघुपति भट हैं। इस मुद्दे पर वे कहते हैं, “हमने प्री-यूनिवर्सिटी विभाग को पत्र लिखकर पूछा कि क्या कॉलेज के छात्रों के लिए यूनिफॉर्म अनिवार्य है? कॉलेज के पास 1985 के बाद से ही एक यूनिफॉर्म है और वे उस पर कायम रहना चाहते हैं। अगर यूनिफॉर्म को अनिवार्य कर दिया गया तो उसके साथ हिजाब पहनने की कोई गुंजाइश ही नहीं रह जाएगी।”

उडुपी में गतिरोध के जवाब में, चिक्कमगलुरु और दक्षिण कन्नड़ जिलों के दो अन्य कॉलेजों में विरोध प्रदर्शन किया गया, जहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के छात्रों ने कॉलेज के अंदर भगवा गमछा पहना था। विरोध के जवाब में दोनों संस्थानों के अधिकारियों ने भगवा गमछा और हिजाब पर रोक लगा दी।

इस मामले पर मचे बवाल के बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के प्रमुख प्रियांक कानूनगो ने कर्नाटक में जारी हिजाब विवाद पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत में एक इस्लामी मदरसा दारुल उलूम मुस्लिम महिलाओं को यूनिफॉर्म नहीं पहनने के लिए कह रहा है और वे इस मामले को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार हैं।अपने बयान में महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “गांधी को इन दृश्यों को देखकर दर्द हुआ होगा। गांधी पर्दा प्रथा के खिलाफ थे। वह परदा को मुस्लिम महिलाओं की शैक्षिक प्रगति में बाधक मानते थे।”

बाल अधिकार पैनल के प्रमुख ने कहा, “जो लोग इस मुद्दे पर छात्रों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं, वे देश की प्रगति के खिलाफ हैं।” इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए हमने दारुल उलूम देवबंद को नोटिस जारी किया है। NCPCR प्रमुख ने आरोप लगाया कि दारुल उलूम ने मुस्लिम महिलाओं को यूनिफॉर्म नहीं पहनने, को-एड स्कूलों और उन स्कूलों से दूर रहने के लिए कहा था जहां पुरुष शिक्षक संकाय का हिस्सा हैं।

आपको बतादें कि कर्नाटक में जारी हिजाब मामले ने 8 फरवरी को हिंसक रूप ले लिया था। कर्नाटक के बागलकोट जिले में विरोध प्रदर्शन के दौरान इस्लामवादियों ने पथराव किया था, जिसके बाद पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा था। राज्य में अस्थिर माहौल के कारण कर्नाटक के सीएम बोम्मई ने अगले तीन दिनों के लिए स्कूल और कॉलेज बंद करने का आदेश दिया है। NCPCR प्रमुख ने कहा कि पैनल स्थिति पर नजर रखे हुए है और वे सभी जरूरी कदम उठाएंगे। उन्होंने कहा कि इस मामले में बाहरी लोगों का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

इसी बीच हिजाब विवाद अब महाराष्ट्र भी पहुँच चुका है। दरअसल, हिजाब विवाद एक अत्यधिक स्थानीय विवाद के रूप में शुरू हुआ था। और इसे स्थानीय स्तर पर सुलझाया जाना चाहिए था। लेकिन अब बड़ी राजनीतिक ताकतें इस मामले में शामिल हो रही हैं।

दरअसल, हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, AIMIM कार्यकर्ताओं ने बुधवार को महाराष्ट्र के बीड जिले में कई जगहों पर ‘पहले हिजाब, फिर किताबें’ के बैनर लगाए। AIMIM के एक छात्र नेता के नाम वाले बैनरों पर यह भी लिखा था, ‘हिजाब हमारा अधिकार है’ और ‘कीमती चीजों को कवर में रखा जाना चाहिए।’

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने खुद कहा था, “भारतीय संविधान एक जीवित दस्तावेज है। उन्हें संविधान के अनुसार (हिजाब पहनने का) अधिकार है। कई लड़कियां पहले से हिजाब पहन रही हैं। किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए।”

आज के परिदृश्य में हिजाब विवाद को राजनीतिक और सांप्रदायिक ताकतें अपने कब्जे में ले रही हैं। और इसे राजनीतिक मुद्दे में बदलने का एक स्पष्ट प्रयास किया जा रहा है। हिजाब विवाद जब शुरू हुआ तो यह एक अत्यधिक स्थानीय मुद्दा लग रहा था, लेकिन इसके पीछे के सांप्रदायिक संगठन अब सुर्खियों में आ रहे हैं।

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