आप सभी को याद होगा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काशी कॉरिडोर का उदघाटन करने के लिए दो दिवसीय दौरे पर वाराणसी आ गए थे, तब अखिलेश यादव ने क्या कहा था? 13 दिसंबर 2021 को उन्होंने अपमानजनक लहजे में कहा था कि ‘प्रधानमंत्री वहां दो-तीन महीने रहें। अच्छी बात है। वह जगह रहने वाली है। आखिरी समय पर वहीं रहा जाता है, बनारस में।‘ भारतीय संस्कृति और महादेव के काशी नगरी से अपरिचित होने के कारण ही उन्होंने ऐसा बयान दिया था। उनके इस बयान में हिन्दू विरोध, काशी अपमान के साथ साथ भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी अनभिज्ञता भी परिलक्षित होती है। खैर, महादेव के प्रधान सेवक के रूप में मोदी-योगी ने इस कॉरीडोर भव्य शुभारंभ किया। पर, उनके इस अपमानजनक बयान का जवाब प्रधानमंत्री मोदी ने अब बनारस में ही दिया है।
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पीएम मोदी का बनारस बाण
दरअसल, पीएम मोदी ने वाराणसी में भाजपा के ‘बूथ विजय सम्मेलन’ में किसी का नाम लिए बगैर कहा,‘भारत की राजनीति में कुछ लोग किस हद तक नीचे गिर गए हैं। मैं किसी की व्यक्तिगत आलोचना करना पसंद नहीं करता, लेकिन जब सार्वजनिक रूप से काशी में मेरी मृत्यु की कामना की गई, तो वाकई मुझे बहुत आनंद आया। उन लोगों ने तो मेरे मन की मुराद पूरी कर दी। इसका मतलब यह कि मेरी मृत्यु तक न काशी के लोग मुझे छोड़ेंगे और न ही काशी मुझे छोड़ेगी।’
प्रधानमंत्री ने आगे कहा,‘मुझे विश्वास है कि काशी की सेवा करते करते अगर मेरे मृत्यु लिखी होगी, तो इससे बड़ा जीवन का सौभाग्य क्या होगा। उन घोर परिवारवादियों को मालूम नहीं है कि यह जिंदा शहर बनारस है। यह बनारस मुक्ति के रास्ते खोलता है और बनारस विकास के जिस रास्ते पर चल पड़ा है वह देश के लिए गरीबी और अपराध से मुक्ति के रास्ते भी खोलेगा। यही मार्ग परिवारवाद में जकड़े भारत के लोकतंत्र को भी मुक्ति का रास्ता दिखाएगा।’
वैसे तो अखिलेश यादव के मूर्खतापूर्ण बयान पर प्रधानमंत्री जवाब न देते तो भी चलता, पर अपने जवाब में जिस खूबसूरती के साथ उन्होंने बनारस के ज़िंदादिली को उभारा है, वह अद्वितीय है। हिंदुओं के लिए वाराणसी दुनिया के सबसे पवित्र शहरों में से एक है। जब पांचों पांडव राजकुमारों ने कौरवों के खिलाफ धर्मयुद्ध जीता, तब अपने युद्ध के पापों का प्रायश्चित करने के लिए वे काशी आए, जिसे बनारस या वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है। मोक्ष (मुक्ति) की तलाश में लोग सदियों से इस उत्तरी भारतीय शहर की यात्रा करते आ रहे हैं।
‘जिंदा शहर बनारस’ को नहीं जानते अखिलेश
बनारस भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक आधार की धुरी है। यह इतिहास से भी पुराना है। विश्व के इतिहास में उल्लेखित सारी सभ्यता और नगर जहां उजड़ गए, बदल गए, वहीं बनारस अभी भी अपने वैभवशाली विरासत के साथ बना हुआ है। तुर्क, मुग़ल, मोहम्मद, औरंगजेब और न जाने कितने गाजी आए, पर महादेव की राजधानी का बाल भी बांका नहीं कर पाये। कहा जाता है कि यह शहर साक्षात महादेव के त्रिशूल पर बसा हुआ है। शायद इसीलिए इसे ज़िंदा शहर बनारस कहते हैं। यहां सूरज आसमान से नहीं निकलता, बल्कि गंगा के गर्भ से जन्म लेता है और फिर गंगा की थपकियों के साथ उसी के आंचल में सो जाता है।
बनारस सिर्फ घूमने के लिए नहीं, बल्कि खो जाने के लिए है- बेबाक, बेफिक्र, बेलगाम और बिल्कुल आवारा की तरह, क्योंकि तभी तो आप बनारस के शून्य में खोकर अपने अनंत अस्तित्व को पाते हैं और बनारस आप में खोकर आपके इस अस्तित्व को अमर कर देता है। प्रधानमन्त्री द्वारा बताए गए इस अवधारणा को शायद अखिलेश कभी नहीं समझ पाएंगे। मैनपुरी और इटावा के शानदार महलों में रहनेवालों को ये कभी समझ नहीं आएगा कि गली में, घाटों पर, किस मंदिर में या हाटो पर, किसी पान की दुकान में या फिर हरिश्चंद्र-मणिकर्णिका के जलते मसानों में आपको बनारस मिलेगा। हंसते-गाते, नुक्कड़ पर ठहाके लगाते, लोकतन्त्र उपजाते, राजनीति बतियाते हुए आपको बनारस की ज़िंदादिली दिखेगी, पर अखिलेश जैसों को तो यहां सिर्फ मृत्यु ही दिखती है।
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और जहां तक बात है बनारस को सिर्फ एक मृत्यु का स्थान बतानेवालों की, तो उन्हें ये 2-4 पंक्तियां जरुर पढ़नी चाहिए-
यहां मौत मातम नहीं
जश्न है, सौभाग्य है,
एकांत ही माया यहां
और कोलाहल भी वैराग्य है
शायद इसीलिए,
बनारस को जन्नत नहीं
जन्नत से भी ऊपर कहते हैं
यहां सिर्फ पुण्यात्मा नहीं
साक्षात शिव बसते हैं,
और जो शिव के साधक हैं
वो बस एक ही ख़्वाहिश रखते हैं
कि वो जिये कहीं भी
मगर मरे बनारस ही…
बनारस की अस्मिता पर प्रश्न उठाने से पहले अखिलेश को यह सोचना चाहिए कि सनातनी का सौभाग्य बनारस के दर पर दम तोड़ना है और यह बात नरेंद्र मोदी जैसा सच्चा भगवाधारी ही समझ सकता है। यह बात उनके पल्ले नहीं पड़ेगी। हां, एक बात वो अवश्य याद रख लें कि इसी बनारस में परिवारवाद और वंशवाद की मृत्यु होगी और फिर वो भारतीय लोकतन्त्र के मोक्ष का संवाहक बनेगा।