हाय हाय! ममता के हाथ से फिसल गई तृणमूल कांग्रेस

ये तो गजब हो गया!

Mamata Banerjee

Source- TFIPOST

तृणमूल कांग्रेस में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। एक पार्टी जिसने वर्ष 2021 के पश्चिम बंगाल चुनावों में जीत हासिल की, वह आज अंदरूनी कलह, गुटबाजी और तनाव से त्रस्त है। आप भी सोच रहें होंगे आखिर हम ऐसा क्यों कह रहें है और अगर ऐसा है तो इसके पीछे क्या कारण है? इससे पहले ये जानना जरुरी है कि क्या आप लोग प्रशांत किशोर और उनकी राजनीतिक सलाहकार फर्म I-PAC के बारे में जानते हैं? क्या आप जानते है कि वह और उनकी फर्म हमेशा अपने राजनीतिक ग्राहकों के लिए परेशानी का कारण बनते हैं! टीएमसी भी कोई अपवाद नहीं है।  इतने लंबे समय तक, सभी की राय यही थी कि ममता बनर्जी ही तृणमूल कांग्रेस की कमान संभाल रही हैं। पर, अब स्थिति ऐसी नहीं है।

जैसा कि अब राजनीतिक हलकों में खबरें चल रही हैं कि राष्ट्रीय नेता बनने का और मोदी विरोधी मोर्चा का नेतृत्व करने का स्वप्न देखने वाली ममता अपनी पार्टी ही नहीं संभाल पा रही हैं। पिछले साल मोदी लहर से बचने में मदद के लिए I-PAC को ममता बनर्जी ने तृणमूल के चुनावी रणनीति बनाने और विधानसभा चुनाव जिताने का जिम्मा सौंपा था। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि प्रशांत किशोर तब से टीएमसी के वास्तविक नेता बन चुके हैं! उनकी सहमति के बिना तृणमूल में कोई फैसला नहीं होता। दरअसल, प्रशांत किशोर और टीएमसी के तथाकथित नंबर-2 नेता अभिषेक बनर्जी ने खुद ममता बनर्जी को साइड-लाइन करते हुए पार्टी पर एकाधिकार स्थापित कर लिया है।

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पार्टी के भीतर उठी आवाजों को दबाने का प्रयास

ममता बनर्जी जैसे नेताओं को देखकर मुख से यही निकलता है कि गिरिए, गिरना स्वाभाविक है, परन्तु, इतना मत गिरिए कि रसातल में पहुंच जाए! ज़मीन पर गिरा इंसान उठ सकता है, जबकि ज़मीन में पड़ा इंसान सिर्फ मुर्दा होता है। राजनीतिक स्वार्थ के वशीभूत हमने कई नेताओं की नैतिकता को गिरते हुए देखा, परंतु नैतिकता के मृत होने का प्रथम उदाहरण पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी में देखने को मिला है और अब वह अपनी ही पार्टी के भीतर से उठ रही लोकतांत्रिक आवाज को तानाशाही से दबाने का प्रयास कर रही हैं!

इसमें कोई दो राय नहीं है कि ममता बनर्जी एक क्रूर राजनीतिज्ञ हैं! ऐसे में पार्टी के अंदर उठी आवाज के बाद उन्होंने अभिषेक बनर्जी और प्रशांत किशोर के गठजोड़ से टीएमसी का नियंत्रण वापस ले लिया था। 13 फरवरी को, टीएमसी सुप्रीमो ने पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व के साथ एक आपात बैठक बुलाई और पार्टी की राष्ट्रीय कार्य समिति का पुनर्गठन किया। दिलचस्प बात यह है कि प्रशांत किशोर ने जिन नेताओं को टीएमसी में शामिल किया, उनमें से किसी को भी बनर्जी ने राष्ट्रीय कार्य समिति में स्थान नहीं दिया।

एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकती

ध्यान देने वाली बात है  कि प्रशांत किशोर में खुद को सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति मानने की एक गंदी आदत है! वह कथित तौर पर एक अहंकारी चुनावी प्रबंधक है। ऊपर से बंगाल विधान सभा चुनाव में मिली जीत ने उनमें राजनीतिक महत्वाकांक्षा निर्मित कर दी है। ऊपर से ममता भी एक अहंकारी नेता हैं! अब एक म्यान में दो तलवारें कैसे रहे? इसी वजह से दोनो में टकराव और मतभेद उभरने लगे हैं। वह अपनी संस्था की तरह तृणमूल पार्टी चलाने की कोशिश में एक भी क्षण बर्बाद नहीं कर रहें हैं। तृणमूल को चुनावी समर जिताने वाले प्रशांत अब उसे तोड़ने की रणनीति बना रहे हैं!

प्रशांत किशोर ने वास्तव में ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस को एक दूसरे के सामने खड़ा कर दिया है। ऐसे में बंगाल की मुख्यमंत्री निश्चित रूप से किशोर को बख्शने वाली नहीं हैं। अतः अब टीएमसी के वरिष्ठ नेता प्रशांत किशोर के खिलाफ बोलने लगें हैं, क्योंकि ममता बनर्जी उन्हें अनुमति देती हैं! किशोर और ममता के बीच तनाव का मुख्य बिंदु तब आया, जब आगामी निकाय चुनावों के लिए उम्मीदवारों की दो प्रतिस्पर्धी सूची पार्टी से निकली। एक सूची प्रशांत किशोर के I-PAC द्वारा तैयार की गई थी, जिसे अभिषेक बनर्जी की स्वीकृति थी, जबकि दूसरी सूची पार्टी की ओर से जारी की गई थी। लेकिन ममता बनर्जी ने प्रशांत किशोर के ऊपर “पुराने नेताओं” को चुना।

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अभिषेक-प्रशांत और ममता के बीच बंटी पार्टी की शक्तियां

आपको बता दें कि राष्ट्रीय स्तर पर ममता बनर्जी एक लंबे अंतराल के बाद वापसी करने के मूड में हैं। ममता ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव जैसे क्षेत्रीय राजनीतिक दिग्गजों तक पहुंच बनाई है। वो जल्द ही दिल्ली में अन्य विपक्षी मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक भी कर सकती हैं। अब तक, ममता के विस्तारवादी राष्ट्रीय अभियान को प्रशांत किशोर, उनकी फर्म और अभिषेक बनर्जी द्वारा नियंत्रित किया जा रहा था, लेकिन अब ममता ने उनसे यह अधिकार वापस ले लिया है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि I-PAC यह भी तय कर रहा था कि अखिल भारतीय राजनीति में TMC की रणनीति क्या होनी चाहिए और उसे एक राज्य से दूसरे राज्य में कैसे फैलना चाहिए।

दूसरी ओर, ममता बनर्जी विपक्ष को एकजुट करने के प्रयासों को ठीक वैसे ही पुनर्जीवित करती दिख रही हैं, जैसा वर्ष 2019 के पहले विपक्षियों ने किया था, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला। निकलेगा भी कैसे? ममता से खुद की पार्टी तो संभल नहीं रही, राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन क्या ही संभालेंगी? ममता बनर्जी और I-PAC के बीच पूरे विवाद ने एक नई सच्चाई का खुलासा किया है जो यह है कि काफी लंबे समय से बनर्जी टीएमसी के भीतर सर्वोच्च शक्ति नहीं रही हैं। पार्टी के भीतर कमान ममता, प्रशांत किशोर और अभिषेक बनर्जी के बीच बंट गई है! अभिषेक-प्रशांत की जोड़ी को पिछले कुछ महीनों में उन पर भारी पाया गया। हालांकि, वह अब टीएमसी को संभालने के कंडीशन में वापस आ गई हैं, और प्रशांत किशोर टीएमसी से बाहर निकलने का रास्ता तलाश रहे हैं!

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