पद का मोह नहीं छोड़ पा रहीं सोनिया, पार्टी का नाश करके ही मानेगा गांधी परिवार

कांग्रेस को स्वयं डूबोने में जुटा है गांधी परिवार

चुनाव राजनीतिक दल और उसके नेताओं के लिए परीक्षा होते हैं, जिनके परिणाम जनता के समक्ष उनकी स्वीकार्यता को प्रदर्शित करते हैं। वर्ष 2014 के बाद से ही कांग्रेस की स्थिति बहुत दयनीय हो चुकी है। चुनाव जीतने से ज़्यादा उनको सीटों का डबल डिजिट आंकड़ा पार करना भी उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाता है। ऐसे में आलाकमान सभी राज्य इकाई के प्रमुखों की जवाबदेही सुनिश्चित करता है, उसी की एक झलक बीते मंगलवार को दिखी जहां हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सभी प्रदेश अध्यक्षों से इस्तीफा मांग लिया। पर शायद सोनिया गांधी के नज़रिए में कांग्रेस की हार के ज़िम्मेदार सभी कांग्रेसी हैं पर गांधी परिवार में से एक की भी जवाबदेही नहीं है क्योंकि पार्टी उनकी और उनके बाप-दादाओं की जो ठहरी।

गांधी परिवार पर हार की गाज कभी नहीं गिरती

कांग्रेस आलाकमान के एक फैसले से यह सिद्ध होता है कि बड़े से बड़ा जमीनी नेता भी उसके लिए हार का ज़िम्मेदार है पर गांधी परिवार में से एक व्यक्ति की भी गलती नहीं है।

राजनीति संभावनाओं का खेल है, पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में करारी हार के बाद कांग्रेस आलाकमान ने इस हार का ठीकरा सभी चुनावी प्रदेशों के प्रदेश अध्यक्षों पर फोड़ा है। उत्तर प्रदेश के अजय कुमार लल्लू, उत्तराखंड के गणेश गोदियाल, पंजाब के नवजोत सिंह सिद्धू, मणिपुर के नामिरकपम लोकेन सिंह और गोवा के गिरीश चोडनकर इन सभी से कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उनका इस्तीफा मांग तत्काल अपने पद को छोड़ने का निर्देश दिया। एक-एक कर सबके इस्तीफे आने भी लगे और सार्वजानिक भी हुए। ऐसे में मूलभूत प्रश्न है कि कांग्रेस में हार का ठीकरा सभी कांग्रेसियों पर फूटता है पर 2014 से अनगिनत हारों का सेहरा पहने हुए गांधी परिवार पर इसकी गाज कभी नहीं गिरती।

और पढ़ें- गांधी परिवार ने शुरू की कांग्रेस के भीतर आखिरी डॉग फाइट!

सोनिया गांधी के अध्यक्ष पद से हटने के बाद राहुल गांधी को अध्यक्ष पद से नवाजा गया। पार्टी को चलाने में अक्षम और लगातार हार पे हार दर्ज़ करने के बाद जुलाई 2017 से जुलाई 2019 तक अध्यक्ष पद पर बने रहने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और पुनः कमान सोनिया गांधी को दे दी गई, इस बार ‘अंतरिम अध्यक्ष’ टैग से सोनिया गांधी ने कमान अपने हाथ में ली। उसी वर्ष प्रियंका गांधी वाड्रा ने कांग्रेस पार्टी में विधिवत पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव बनकर एंट्री ली और साथ ही उत्तर प्रदेश की की कमान प्रभारी के तौर पर संभाली।

हर ओर से बुरी तरह हार रही कांग्रेस

इस बार का उत्तर प्रदेश चुनाव भी कांग्रेस पार्टी ने परोक्ष रूप से प्रियंका के चेहरे पर ही लड़ा था। लड़की हूं लड़ सकती हूं के नारे को बुलंद कर अघोषित सीएम प्रत्याशी बन प्रियंका गांधी ने राज्य भर में कुल मिलाकर 300 से अधिक सीटों पर चुनाव प्रचार किया। योगी से अधिक रैलियां करने के बावजूद कांग्रेस राज्य में 403 सीटों में से मात्र 3 सीटों पर विजयी हो पाई। ऐसी दुर्दशा कि राज्य के चुनावी परिणामों में सबसे अधिक कांग्रेस के 387 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई है।

यही हाल पंजाब में हुआ जहां एक राज्य में बची सरकार को भी पुनः नहीं जीत दिला पाई। 77 सीटों के साथ सरकार पर काबिज कांग्रेस खिसककर 18 सीटों पर आ गई। गोवा में 17 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी कांग्रेस इस बार वहां भी खिसककर 11 सीटों पर आ पहुंची। मणिपुर में भी हाल एक ही रहा जहां पहले 28 सीटें थीं अब वो खिसककर 5 सीट ही रह गई हैं। एक उत्तराखंड ही है जहां कांग्रेस की सीटों में इजाफा हुआ है, पहले 11 सीटें जीतने के बाद इस बार के नतीजों में उसने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी।

और पढें- कश्मीर फाइल्स पर छाती पीटने वाले कांग्रेसी ‘Delhi Files’ के बाद तो अपना माथा ही फोड़ लेंगे

हाल ही में संपन्न पांच राज्य विधानसभा चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) के अध्यक्षों से इस्तीफा देने के लिए कहा है ताकि पुनर्गठन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके। कांग्रेस चार भाजपा शासित राज्यों को हथियाने में विफल रही और आम आदमी पार्टी (आप) से पंजाब हार गई।

ऐसे में राज्य के प्रमुख संगठनात्मक व्यक्तियों से इस्तीफा मांगना यदि उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी है तो यह प्रक्रिया राष्ट्रीय नेतृत्व तक पहुंचते-पहुंचते दम क्यों तो देती है? यह कांग्रेस और सोनिया गांधी के लिए शर्मिंदगी का सबब है जहां रायबरेली से पूर्व कांग्रेसी विधायक अदिति सिंह ने भाजपा में शामिल होने के बाद भी सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र में जीत दर्ज़ की है। पर न तो इसकी नैतिक ज़िम्मेदारी सोनिया गांधी लेंगी और न ही चुनाव में प्रमुख चेहरा बनकर प्रचार करने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास करेंगी।

पार्टी में दो ही युवा हैं एक राहुल और एक प्रियंका!

वो तो अजय कुमार लल्लू की किस्मत थी जो वो जीत नहीं पाए वरना वो कांग्रेस के उन नेताओं में आते हैं जिनका किला ध्वस्त करना बेहद जटिल होता है। एक राजनेता और जनता के प्रतिनिधि के तौर पर लल्लू का कद निस्संदेह बड़ा है, बस कांग्रेस में होने के कारण लल्लू इस बार हार गए वरना दो बार के लगातार विधायक होने के रिकॉर्ड को अपने नाम करना कोई सरल बात नहीं थी।

और पढ़ें- कांग्रेस को न केवल ‘गांधी परिवार’ बल्कि ‘नेहरूवादी राजनीति’ से भी स्वंय को अलग करना होगा

ऐसे में कांग्रेस अपने सभी जेष्ठ और श्रेष्ठ पदाधिकारियों को संगठनात्मक ढांचे से अलग कर रही है जो कि बेवकूफी से कम नहीं है। यदि परिवर्तन ही करना था तो राष्ट्रीय स्तर से इसकी शुरुआत करनी थी, जहां असंतुष्ट G-23 नेताओं से राय लेकर अगले अध्यक्ष का चयन करते। पर वो भी होने से रहा क्योंकि गांधी परिवार के आंखों में पूरी कांग्रेस के भीतर 2 ही युवा चेहरे हैं एक राहुल गांधी, दूसरी प्रियंका गांधी वाड्रा। इनके अतिरिक्त न ही कांग्रेस की कमान संभालने में कोई सक्षम है और न ही कांग्रेस में गांधी परिवार के अतिरिक्त कोई और अधिक सक्षम बन सकता है।

सौ बात की एक बात यह है कि,2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को लगातार दूसरी हार का सामना करने के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था। सोनिया गांधी, जिन्होंने अंतरिम अध्यक्ष के रूप में फिर से कांग्रेस की बागडोर संभाली थी, ने भी अगस्त 2020 में नेताओं के एक वर्ग द्वारा कड़ी आलोचना के बाद पद छोड़ने की पेशकश की थी, जिसे जी -23 कहा जाता है, लेकिन CWC जैसी चापलूस कमिटी के चंद नेताओं ने उन्हें जारी रखने का आग्रह किया था। जिसके बाद अब तक वो  पार्टी की बागडोर संभाल रही हैं।

इतनी शिकस्त के बाद भी नहीं खुल रहीं आंखें

इतनी शिकस्त मिलने के बाद भी कांग्रेस आलाकमान की आंख नहीं खुल रही हैं,आज भी सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा अपने पद पर बनी हुई हैं क्योंकि उनसे सवाल और उनकी जवाबदेही तय करने की भला किसकी बिसात है। यही कांग्रेस के समूल नाश और पतन की गाथा लिखना शुरू कर चुका है।

Exit mobile version