वाराणसी में फेल होने के बाद, ममता बनर्जी अब यूक्रेन संकट पर चिंतित हो रही हैं!

प्रोपेगेंडा और PR में ममता के साथ खेला हो जा रहा है!

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ममता बनर्जी के ग्रह नक्षत्र इस समय ठीक नहीं चल रहे हैं। पार्टी में आंतरिक विद्रोह चल रहा है। पार्टी की पकड़ राज्यों में कमजोर हो रही है। वाम दलों द्वारा ममता को उनके गढ़ में घेरा जा रहा है। पूरी तरीके से भद्द पिटी हुई है और दूसरी ओर, रही सही कसर बनारस में तब पूरी हो गई जब ममता को बनारस में राष्ट्रवादियों ने घेर दिया। अराजकता को अपनी लाठी बनाकर राजनीति करने वाली ममता का ढंग से वाराणसी में स्वागत हुआ। उनके साथ जो हुआ वो कुछ इस तरह भी समझा जा सकता है कि चौबे जी चले थे छब्बे बनने, दुबे बन गये!

अब दुबे बन गये तो लाज पचाना भी होता है तो दीदी अब राष्ट्रीय स्तर से उठकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चली गई हैं, जहाँ से उनका फिर से भद्द पिटना तय है। सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली, ममता बनर्जी की इसी प्रवृत्ति ने उन्हें राजनेता बनने के बजाए एक निष्ठुर शासक बना दिया है। पश्चिम बंगाल में जिस प्रकार टीएमसी की शह पर राज्य में आतताई वाला व्यवहार कर रहे उसके कार्यकर्ताओं पर अंकुश लगाने में ममता बनर्जी असफल रही हैं। अपने मीडिया कवरेज के नंबर बढ़ाने के लिए, सनक में ममता पहले यूपी चुनाव में अपनी गैरज़रूरी उपस्थिति दर्ज़ कराने के लिए वाराणसी गईं। वहां मिली लताड़ और आक्रोश से जब ममता को अपना मकसद पूरा होता नहीं दिखा उन्हें तब जाकर यूक्रेन और रूस में फंसे छात्रों की याद आई वो भी तब जब अधिकांश छात्रों को भारत सरकार Operation Ganga जैसे मिशन के तहत वतन वापस ले आई है।

देर सवेर ही सही ममता को युद्ध प्रभावित यूक्रेन में फंसे छात्रों को वापस लाने की बात याद आई और उसके साथ ही केंद्र सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते हुए संकटग्रस्त क्षेत्रों में फंसे भारतीय छात्रों की इतनी हितेषी बन गईं जैसे इस संकट में मोदी सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया हो।

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मोदी सरकार के विरोध में रुदाली राग को ट्वीट कर बयां करते हुए ममता ने यूक्रेन से छात्रों को वापस लाने में केंद्र की ओर से देरी का आरोप लगाते हुए कहा कि, ”मैं यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों के जीवन को लेकर बहुत चिंतित हूं। जीवन बहुत कीमती है। उन्हें वापस लाने में इतना समय क्यों लग रहा है? पहले कदम क्यों नहीं उठाए गए?” उन्होंने कहा, ”मैं केंद्र सरकार से आग्रह करती हूं कि तत्काल पर्याप्त संख्या में उड़ानों की व्यवस्था की जाए और सभी छात्रों को जल्द से जल्द वापस लाया जाए।”

अब ये कौशल सिर्फ ममता बनर्जी के ही पास हो सकता है कि विकट परिस्थिति जन्में, उससे पहले ही समस्या के बारे में सोचा जा सकें क्यूंकि सम्भव है कि ममता सपने में भविष्य देख लेती हैं।

छात्रों के लिए नौटंकी वाला विलाप करने वाली ममता अपने कर्मों को भूल गईं की कैसे उनकी सरकार में मानवीय मूल्यों का परित्याग कर उनके TMC गुंडों ने कितने घरों के चिराग को बुझा दिया है। यूक्रेन में फंसे छात्रों के प्रति सहानुभूति दिखा खानापूर्ति करने वाली ममता इसलिए यह सब कह रही थीं क्योंकि 2 मार्च को उनका वाराणसी दौरा FLOP SHOW सिद्ध हुआ जहाँ उन्हें काले झंडे से लेकर पूर्ण विरोध का सामना करना पड़ा।

आलम तो यह था कि बढ़ते विरोध के कारण पुलिस ने ममता को जैसे-तैसे गाडी की पिछली सीट पर बैठाकर उन्हें रवाना किया था। आईं थीं मोदी विरोध करने, खुद का ही पोपट हो गया। शायद ममता भूल गईं होगीं कि वो यूपी था और उसमें भी वाराणसी, कोई बंगाल का बदहाल क्षेत्र नहीं जहाँ उनकी आव-भगत की जाती।

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ज्ञात हो कि, ममता ने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था जिसमें यूक्रेन संकट पर सभी पार्टी की बैठकों का आग्रह किया गया था और यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को वापस लाने में कथित देरी के लिए वाराणसी में एक रैली में मोदी सरकार की भी आलोचना की थी। इस बीच, टीएमसी के पूर्व साथी और वर्तमान में मोदी सरकार में मंत्री निसिथ प्रमाणिक ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी में यूक्रेन के कई छात्रों का स्वागत करते हुए कहा कि केंद्र सरकार सभी भारतीयों को जल्द से जल्द वापस लाने की पूरी कोशिश कर रही है। ”प्रमाणिक ने कहा कि, “अब तक लगभग 17000 भारतीयों को भारत वापस लाया जा चुका है। भाजपा सरकार देश में शेष भारतीयों को वापस लाने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। ऐसे में सरकार के कामों पर बिना सिर-पैर की बातें कर उन्हें गलत ठहराना ममता बनर्जी की कुंठित मानसिकता को दर्शा रहा है, जिसको हर कोई समझ रहा है कि एक जगह बात नहीं बनी तो दूसरी जगह से ही सुर्खियां बटोर लें।

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