कृषि कानून को लेकर एक नया खुलासा सामने आया है। तथाकथित किसानों द्वारा आंदोलन की सच्चाई सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति ने उजागर किया है। आपको ज्ञात हो कि लगभग एक साल तक जारी किसानों के विरोध के बाद, 2020 में संसद द्वारा पारित किए गए तीनों कृषि कानूनों को पिछले साल रद्द कर दिया गया था। तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के पीछे का आधार यह था कि किसान उनके समर्थन में नहीं थे। लेकिन यह पूरी तरह सत्य नहीं है।
कृषि कानूनों के लिए नियुक्त सुप्रीम कोर्ट की समिति की रिपोर्ट
दरअसल तीन कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति ने कहा है कि देश में 3 करोड़ से अधिक किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाली समिति से बात करने वाले लगभग 84 प्रतिशत किसान संघों ने कृषि कानूनों का समर्थन किया था। आपको बतादें कि पंजाब, हरियाणा और यूपी के कुछ हिस्सों के तथाकथित अमीर किसानों द्वारा आंदोलन के बाद निरस्त कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट पैनल ने केंद्र सरकार की मंजूरी के साथ राज्यों को कृषि कानून लागू करने और उन्हें डिजाइन करने में लचीलेपन की अनुमति देते हुए तीन अधिनियमों को बनाए रखने की वकालत की थी।
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बता दें कि समिति द्वारा सोमवार को रिपोर्ट सार्वजनिक की गई।इस मामले में चार सदस्यीय समिति ने कहा कि’‘ आवश्यक कृषि कानूनों को निरस्त करना देश भर में कानूनों का समर्थन करने वाले अधिकांश किसानों के साथ अन्याय होगा”।पैनल ने कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, अनिल घनवती सहित चार सदस्यों का गठन किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति ने कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे यूनियनों सहित 266 कृषि संगठनों से संपर्क किया था। समिति को समर्पित पोर्टल पर 19,027 अभ्यावेदन और 1,520 ईमेल भी प्राप्त हुए थे।
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पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, 3.83 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले 73 किसान संघों में से 61 संगठनों ने कृषि कानूनों का समर्थन किया था। 51 लाख किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाली केवल चार यूनियनों ने उनका विरोध किया था और बाकी 7 यूनियनों ने कानूनों में कुछ संशोधन की मांग की थी। हालांकि, पैनल ने सूचित किया कि दिल्ली में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले किसान संगठन समिति के साथ संवाद सत्र में बार-बार आमंत्रण भेजने के बाद भी शामिल नहीं हुए। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने वाली 40 यूनियनों ने SC द्वारा नियुक्त पैनल में कोई प्रतिनिधित्व नहीं किया।
न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा अन्य मुद्दों पर समिति के सुझाव
इसके अलावा, समिति ने MSP नीति के “पुनरीक्षण” और खुली खरीद को बंद करने, धान से अधिक उच्च मूल्य वाली फसलों, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में विविधीकरण सहित कुछ प्रगतिशील सुझाव भी दिए थे।समिति का मानना था कि गेहूं और धान की खरीद के बजाय FCI को कैपिंग करनी चाहिए। इस तरह के उपाय से देश में फसल विविधीकरण के लिए जगह बनेगी।इस प्रकार किसानों का एक विशाल बहुमत तीन कृषि कानूनों के पूर्ण समर्थन में था। उन्हें विश्वास था कि सुधारवादी विधानों ने उन्हें समृद्धि के पथ पर अग्रसर किया होगा। हालांकि ऐसा लगता है कि इस मामले में बहुमत की राय नहीं ली गई, क्योंकि सरकार ने तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया। इस प्रकार कुछ संगठनों के विरोध ने 3.3 करोड़ किसानों के हितों का जो नुकसान किया वह किसी भी तरह से उचित नहीं है।
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