कांग्रेस अब वो पार्टी बनकर रह गई है जिसे छोड़ने को सभी तैयार हैं, पर उसमें कोई भी शामिल होना नहीं चाहता। इसका सबसे बड़ा कारण जो सबके मुख पर रहता है वो एक ही है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी का पार्टी को संगठन के तौर पर नहीं अपितु राजशाही की भांति चलाना। स्वयं को श्रेष्ठ और सर्वश्रेष्ठ मानते आए गांधी परिवार ने कांग्रेस की बंटाधार कर दिया है। कांग्रेस की बर्बादी के लिए यदि कोई जिम्मेदार है तो वो है गांधी परिवार। मां नहीं तो बेटा और बेटा नहीं तो बेटी, कांग्रेस में इसी के इर्दगिर्द सब कुछ मंडराता है। ऐसे में कई नेता जो कांग्रेस आलाकमान की तानाशाही से खिन्न थे, वे पार्टी छोड़ विभिन्न दलों में चले गए और अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित कर लिया। हाल ही में जिस नेता ने कांग्रेस का दामन छोड़ा है, वो हैं कांग्रेस नेता और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह के पोते विक्रमादित्य सिंह।
दरअसल, एक “क्वीन” की भांति चले आ रहे सोनिया गांधी के व्यवहार और उनकी निरंकुशता का ही परिणाम है जो कांग्रेस से नाराज विक्रमादित्य सिंह ने पार्टी को अलविदा कह दिया। विक्रमादित्य सिंह, दिग्गज कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री करण सिंह के बड़े बेटे हैं। उन्होंने पार्टी पर “जमीनी वास्तविकताओं से नाता” न रखने का आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दिया है। यह कोई नया कारण या कोई नई बात नहीं है। कांग्रेस आलाकमान के इसी राजशाही रवैये ने आज उसे कहीं का नहीं छोड़ा है। जहां भी कांग्रेस की हार हुई वहां से एक ही आवाज़ उठी “नेतृत्व परिवर्तन”, वो बात अलग है कि नेतृत्व परिवर्तन का नारा बुलंद करने वाले नेताओं ने पार्टी में अपमान का घूंट पीकर दल परिवर्तन कर लिया। क्योंकि नेतृत्व परविर्तन की बात उठाकर वे कांग्रेस आलाकमान की आंखों में खटकने लगे थे और ऐसे में वहां रहना मतलब खून का घूंट पी कर रोज़ अपनी फजीहत कराने के समान था।
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कांग्रेस की कुंठित सोच का हो रहा हिसाब
एक ओर जहां आज भी देश के कई राज्यों में राजशाही परिवारों के वंशजों को पूजा जाता है, लोग उनकी इज़्ज़त एक राजा के तौर पर नहीं बल्कि अपनत्व की भावना के साथ किया करते हैं, तभी आज चाहे वो ज्योतिरादित्य सिंधिया हों, जितिन प्रसाद हों या फिर विक्रमादित्य सिंह, उनके जैसे तमाम राजशाही परिवार से ताल्लुक रखने वाले नेताओं की लोकप्रियता और जनता में उनके प्रति प्रेमभाव में लेश मात्र भी कमी नहीं आई है। और यहां स्वघोषित राजा-रानी वाली कांग्रेस को एक ही राजशाही परिवार चलाता आ रहा है, नाम है “गाँधी परिवार।” इन सभी नेताओं में सबसे बड़ी समानता यही है कि यह सभी कांग्रेस पार्टी से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहे और अन्तोत्गत्वा भाजपा में शामिल हो गए। यूं तो विक्रमादित्य सिंह ने आधिकारिक तौर पर भाजपा में शामिल होने के कोई संकेत नहीं दिए हैं, परंतु जैसी परिस्थितियां हैं उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वो आज नहीं तो कल भाजपा का दामन थाम ही लेंगे।
यह कांग्रेस की सबसे गलत और कुंठित सोच वाली नीति रही है, जो उसने कभी भी उन योग्य राज परिवार से आने वाले नेताओं को आगे बढ़ने का अवसर नहीं दिया जिनके परिवार का एक अहम योगदान स्वतंत्रता और स्वतंत्रता पश्चात देश के लिए रहा। उन सभी को छोड़कर कांग्रेस ने चाटुकारों और नेहरू-गाँधी परिवार की जीहुजूरी करने वालों को ही आगे बढ़ाया और यही कारण रहा जो एक-एक कर उन सभी ने कांग्रेस को तिलांजलि देना बेहतर समझा और अपने अस्तित्व एवं स्वाभिमान को जीवंत रखने के लिए अन्य पार्टियों का रुख किया। वो बात अलग है कि कांग्रेस के नेता उन्हें अवसरवादी कहते हैं, पर उन कांग्रेसियों को शायद यह विदित नहीं कि यह वही कांग्रेस आलाकमान है जो सरकार बनाने के लिए इन्हीं राजशाही परिवारों के बल पर चुनाव जीत जाती थी और अंत में उन्हीं को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता था। ऐसे में अवसरवादी कौन हैं यह अनुमान लगाना बेहद आसान है।
सिंह ने त्यागपत्र देते हुए कही ये बात
अब बात विक्रमादित्य सिंह की करें तो उन्होंने ट्विटर के माध्यम से यह बात साझा की कि वो त्यागपत्र दे रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अपना इस्तीफा देता हूं। जम्मू-कश्मीर के महत्वपूर्ण मुद्दों पर राष्ट्र हित को लेकर मेरी स्थिति कांग्रेस पार्टी के साथ मेल नहीं खाती है। पार्टी जमीनी हकीकत से कट चुकी है।” अपने पोस्ट के साथ उन्होंने एक पत्र साझा किया, जिसमें उन्होंने लिखा है कि ‘प्रिय श्रीमती सोनिया गांधी जी, मैं तत्काल प्रभाव से कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता हूं। मेरा मानना है कि कांग्रेस जम्मू एवं कश्मीर के लोगों की भावनाओं और आकांक्षाओं को महसूस करने और व्यक्त कर पाने में असमर्थ है।’
I hereby tender my resignation from the Indian National Congress.
My position on critical issues vis-à-vis Jammu & Kashmir which reflect national interests do not align with that of the Congress Party. @INCIndia remains disconnected with ground realities. @INCJammuKashmir pic.twitter.com/g5cACgNf9y
— Vikramaditya Singh (@vikramaditya_JK) March 22, 2022
विक्रमादित्य सिंह ने यह भी कहा कि उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने के बाद बालाकोट हवाई हमले, अनुच्छेद 370-35A को रद्द करने सहित कई अन्य मुद्दों के समर्थन में विचार व्यक्त किए थे। उन्होंने कहा, “कांग्रेस में शामिल होने के बाद, मैंने कई मुद्दों के समर्थन में विचार व्यक्त किए जो कांग्रेस के रुख से मेल नहीं खाते। इनमें बालाकोट हवाई हमले, अनुच्छेद 370-35A का निरसन, लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश का गठन, गुप्कर गठबंधन की निंदा और परिसीमन प्रक्रिया का समर्थन शामिल है। जी-23 नेताओं पर बोलते हुए उन्होंने कहा, ‘जी-23 में कई कुशल कांग्रेसी नेता हैं और उनकी अनदेखी करना बड़ी भूल है। समय के साथ नहीं बदले, जनता और युवाओं की आकांक्षाओं को ध्यान में न रखें, तो आप फीके पड़ जाएंगे। अगर कोई समूह (G-23 गुट) आलाकमान को सुझाव देने के लिए उभरा है तो पार्टी को सहयोग करना चाहिए।”
उन्होंने फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर भी बात की और कहा कि यह देखकर दुख होता है कि कांग्रेस अभी भी “कश्मीरी नरसंहार के नतीजों को स्वीकार नहीं कर रही है।” उन्होंने कहा, “मैंने ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म नहीं देखी है …लेकिन मैं 1989 तक श्रीनगर में था…यह दुखद है कि कांग्रेस अभी भी इनकार कर रही है और कश्मीरी नरसंहार के नतीजों को स्वीकार नहीं कर रही है।”
2017 में कांग्रेस में हुए थे शामिल
आपको बताते चलें कि यूं तो विक्रमादित्य अगस्त 2015 में पीडीपी में शामिल हुए थे और राज्य विधान परिषद के सदस्य थे। उन्होंने अक्टूबर, 2017 में पार्टी से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि उनके लिए पीडीपी के साथ बने रहना संभव नहीं था, जिसने “जम्मू क्षेत्र की मांगों और आकांक्षाओं की अवहेलना की।” इसके बाद वो कांग्रेस में शामिल हो गए और उन्होंने कांग्रेस से जम्मू-कश्मीर के उधमपुर निर्वाचन क्षेत्र से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में ये तो तय है कि अब कांग्रेस तानाशाही से पार जा चुकी है और सत्य तो यह है कि उसके भीतर की सिरफुटव्वल अब सरेआम हो गई है। अपने नेताओ से सुझाव लेने से कतरा रहा आलाकमान अब उस पड़ाव पर आकर खड़ा है, जहां उसके पास न पाने को कुछ बचा है और न खोने को। अपने अस्तित्व को भुनाना तो दूर, कांग्रेस रहे बचे नेताओं को संतुष्ट भी नहीं कर पा रही है, क्योंकि उसके आलाकमान के भीतर से “क्वीन सोनिया” और “प्रिंस राहुल” की प्रवृत्ति खत्म होने का नाम नहीं ले रही है!