भारत हिजाब-हिजाब करता रह गया, बांग्लादेश ने गैर-मुस्लिम मेडिकल छात्राओं के लिए भी हिजाब किया अनिवार्य

हम एक फैसला नहीं ले पाये और वहां हिन्दू हिजाब पहनने को मजबूर हो गये!

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पिछले दिनों कर्नाटक के उडुपी में एक सरकारी विद्यालय में कुछ मुस्लिम लड़कियां बुर्का पहनकर आईं जिसके बाद पूरे भारत में हिजाब पर चर्चा शुरू हो गई। विद्यालय प्रशासन द्वारा इन लड़कियों को प्रवेश देने से मना कर दिया गया था जिसके विरोध में धीरे-धीरे पूरे कर्नाटक में प्रदर्शन शुरू हो गए। मामला कर्नाटक हाईकोर्ट तक जा पहुंचा जिस पर सुनवाई चल रही है। हालांकि हाईकोर्ट ने फिलहाल विद्यालय में पहनावे के पुराने नियमों को बहाल रखा है। इसी बीच बांग्लादेश से एक ऐसी खबर सामने आई है जिसे सुनकर गैर मुस्लिम समुदाय के लोगों को अपने भविष्य के लिए चिंतन शुरू कर देना चाहिए।

डर के कारण हिंदू छात्राएं नहीं कर सकतीं विरोध!

बांग्लादेश के जैसोर में अद-दीन सकीना मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाली गैर मुस्लिम हिंदू छात्राओं को भी कॉलेज में हिजाब पहनकर आना पड़ता है। कॉलेज प्रशासन ने सभी छात्राओं के लिए हिजाब अनिवार्य कर दिया है और हिंदू छात्राओं को भी इस नियम का पालन करना पड़ता है। डर के कारण कोई हिंदू छात्रा चाह कर भी इस नियम का विरोध नहीं कर सकतीं।

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हालांकि, 2010 में बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में यह आदेश दिया था कि कोई भी संस्थान किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध मजहबी कपड़े नहीं पहना सकता। किंतु इस कॉलेज में बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट के नियम की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। कॉलेज प्रशासन प्रवेश के समय ही लिखित रूप में छात्राओं से यह स्वीकार करवा लेता है कि वह हिजाब पहनकर ही कॉलेज में आएंगी। यदि कोई छात्रा इस नियम का विरोध करती है तो उसे प्रवेश नहीं दिया जाता है।

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कॉलेज प्रशासन ने दी है ड्रेसकोड वाली दलील

कॉलेज प्रशासन का कहना है कि हिजाब कॉलेज के ड्रेसकोड का हिस्सा है और इस कारण सभी को इसे पहनना ही पड़ेगा। स्थानीय नेताओं में से किसी ने भी इसका विरोध नहीं किया है। यहां तक कि कोई मीडिया में इस पर चर्चा भी नहीं करना चाहता। कुछ दिनों पूर्व ही पाकिस्तान में मजहबी मामलों के मंत्री ने इमरान खान से अपील की थी कि वह 8 मार्च को महिला दिवस के बजाय अंतर्राष्ट्रीय हिजाब दिवस के रूप में मनाए जाने का नियम बनाएं।

भारत में भी मुस्लिम समुदाय द्वारा हिजाब को लेकर जिस प्रकार का विरोध दर्ज किया गया वह उनकी पाकिस्तानी और बांग्लादेशी प्रवृत्ति को परिलक्षित करता है। हम यह नहीं कह रहे कि भारत का हर मुसलमान पाकिस्तानी है और उसमें वैसी ही अलगाववादी प्रवृत्तियां मौजूद है जैसी 1947 में भारत विभाजन की मांग करने वाले गद्दारों में थी, ऐसा कहना सरासर गलत है बल्कि हम बात कर रहे हैं रूढ़ीवादी मानसिकता के स्तर पर बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत के मुसलमानों के बीच पाए जाने वाली एकता की ।

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हम इस सत्य को स्वीकार करें या ना करें पर यह सत्य बदलने वाला नहीं है कि बांग्लादेशी हिंदू लड़कियों को मुसलमानों की तरह ही हिजाब पहनना पड़ रहा है क्योंकि बांग्लादेश में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। भारत में मुसलमान अल्पसंख्यक है इसलिए हिजाब को अपना मजहबी अधिकार बता कर कथित लोकतांत्रिक तरीके से अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। हालांकि, इस लोकतांत्रिक तरीके के इतर हिजाब के विरुद्ध आवाज उठाने वालों की हत्याएं भी की जा रही हैं। बांग्लादेश में जहां मुसलमान बहुसंख्यक हैं वहां वह हिंदू लड़कियों के अधिकार को कुचल कर जबरन अपने मजहबी मान्यताओं को स्वीकार करवा रहे हैं। दोनों देशों में भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमान अपनी कट्टरता को अलग-अलग माध्यमों से न्यायोचित ठहरा रहे हैं। दोनों जगहों पर मानसिकता में एक ही अंतर है और वो है केवल संख्या बल का।

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