रूस युक्रेन विवाद के बीच भारतीय मेडिकल बाजार के लिए बड़ा अवसर आ गया है

अब भारत को उठना है और भागना है!

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यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने भारत को समझौता करने की स्थिति में ला खड़ा किया है। चीन से अपनी रक्षा करने के लिए भारत ने यूरोपीय संघ और रूस दोनों का पक्ष लिया है। कोविड 19 के पश्चात जहाँ हर देश इकोनॉमी के बुरे हालात से गुजर रही है और भारत के लिए भी तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही है, इसके विपरीत भारत ने कोविड के पहली लहर के बाद से ही अपनी फार्मास्यूटिकल कंपनी को और मजबूत करने का कार्य प्रारंभ किया इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी ने कई भारतीय दवा उत्पादित कंपनियों को वित्तीय सहायता प्रदान की, जिसका नतीजा ये रहा की भारत आज अपने इतने बड़े आबादी को अपने द्वारा बनाए गए कॉवेक्सिन तथा यूके के साथ मिल का बनाई गई आस्ट्रेजनिका से टीकाकरण किया है।

इसी बीच डेनिस अलीपोव, (भारत में रूसी राजदूत) ने शुक्रवार को रूसी समाचार कंपनी स्पूतनिक को दिए गए बयान में कहा की भारतीय दवा कंपनियां रूसी बाजार छोड़ने वाले पश्चिमी निर्माताओं की जगह ले सकती हैं, भारत जिसे की विश्व की फार्मास्यूटिकल हब कहा जाता है ,भारत में कई फार्मा कंपनियां रूस और यूक्रेन के साथ व्यापक कारोबार करती हैं। उदाहरण के लिए, पिछले वित्तीय वर्ष में, भारत ने रूस को 591 मिलियन डॉलर और यूक्रेन को 181 मिलियन डॉलर मूल्य के फार्मा सामानों का निर्यात किया, जैसा कि बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में बताया गया है। वे आंकड़े साल-दर-साल क्रमशः 7% और 44% की वृद्धि दर का प्रतिनिधित्व करते हैं।

दूसरी तरफ कई सारी पश्चिमी देशों की बड़ी बड़ी कंपनिया जैसे कि मैकडॉनल्ड्स, सैमसंग, अमेज़ॅन, पेपैल, कोका-कोला और स्टारबक्स सहित कई  कंपनियों ने रूस में कारोबार करना बंद कर दिया है। भारत की कोई भी कंपनी, फार्मा या अन्य कंपनी अभी तक, रूस से बाहर नहीं निकली है। उदाहरण के लिए, डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज ने रॉयटर्स को बताया कि वह बिक्री में व्यवधान के लिए तैयार है लेकिन उसने देश के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। डॉ रेड्डीज भारत में रूस के स्पुतनिक वी COVID-19 वैक्सीन का निर्माण और वितरण करता है।

सन फार्मा, डिविस, सिप्ला और ल्यूपिन जैसी भारतीय दवा कंपनियों ने टिप्पणी के लिए फेयर्स फार्मा के अनुरोधों का तुरंत जवाब नहीं दिया। टॉरेंट फार्मास्युटिकल्स और ज़ाइडस हेल्थकेयर के अधिकारियों ने कहा कि संघर्ष की शुरुआत के बाद से उन्होंने बिक्री में कोई बदलाव नहीं देखा है।

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पश्चिम से कई कंपनियों द्वारा रूस से पलायन के बावजूद, फार्मा क्षेत्र से कुछ ने इसका पालन किया है। उदाहरण के लिए, यूके की एस्ट्राजेनेका और फ्रांस की सनोफी ने रूस में हमेशा की तरह कारोबार जारी रखा है, जैसा कि इस सप्ताह की शुरुआत में द फार्मा लेटर ने रिपोर्ट किया था।

कुल मिला कर कहे तो भारत के लिए जहाँ एक ओर अपनी पांच ट्रिलियन अर्थव्यस्था के दृष्टि से बहुत ही शानदार अवसर है उसी के साथ साथ दुनिया के सामने भारत भी एक प्रोडक्शन हब के रूप में चीन का विकल्प है जिसकी जरूरत विश्व के सभी देशों को है। इसी के साथ साथ अगर ऐसा होता गया तो आने वाले समय में रूस और भारत की दोस्ती सामरिक, व्यापारिक दोनो दृष्टि से और गहरी होगी।

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