पांच राज्यों के चुनाव संपन्न हो चुके हैं और 4 में भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना चुकी है। चारों राज्यों में मुख्यमंत्री का चयन हो चुका है और शपथ ग्रहण या तो संपन्न हो चुका है अथवा उसकी तैयारी हो रही है। इन चुनावों के कई राजनीतिक अर्थ है जिनमें एक मुख्यमंत्रियों के चयन से भी जुड़ा हुआ है। चारों राज्यों अर्थात उत्तर प्रदेश उत्तराखंड गोवा और मणिपुर में मुख्यमंत्री का चेहरा बदला नहीं गया है। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पुनः मुख्यमंत्री बनाया है, वहीं मणिपुर में एन बिरेन सिंह मुख्यमंत्री बने हैं। दोनों नेताओं की लोकप्रियता अपने-अपने राज्यों में जननेता के समान है। गोवा की बात करें तो वहां प्रमोद सावंत को मनोहर पर्रिकर की तरह जननेता नहीं माना जाता है, उनके नेतृत्व को लेकर गोवा भाजपा में कई पक्ष असंतुष्ट दिखे। किंतु चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पुनः प्रमोद सावंत पर विश्वास दिखाया है। उत्तराखंड की बात करें तो पुष्कर सिंह धामी अपना चुनाव हार गए लेकिन भाजपा विधायक दल में किसी ने भी उनके नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा नहीं किया। केंद्र ने उनकी विधायकों के बीच स्वीकृति को ध्यान में रखते हुए उन्हें उन्हें मुख्यमंत्री बनाया है।
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भाजपा छत्रपों के बीच नई पीढ़ी भी तैयार करती है-
इस प्रकार भाजपा के 4 मुख्यमंत्रियों में सभी जन नायक नहीं है लेकिन फिर भी उन्हें मौका दिया गया है। इसका कारण यह है कि उनकी आयु 50 वर्ष से कम है और उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने का अनुभव हो चुका है। भाजपा केवल राज्य में सरकार बनाना नहीं चाहती बल्कि एक ऐसे नेतृत्व का निर्माण करना चाहती है जो राज्य स्तर पर भाजपा की पकड़ को मजबूत कर सके। यह भाजपा की वृहत्तर योजना का हिस्सा है। उदाहरण के लिए गुजरात और मध्य प्रदेश की बात करें तो वहां क्रमशः नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान जननायक के रूप में उभरे। छत्तीसगढ़ में रमण सिंह की छवि भी ऐसी ही थी, हालांकि 15 वर्ष लम्बे कार्यकाल के बाद रमन सिंह चुनाव हार गए लेकिन उनकी लोकप्रियता से उनके प्रतिद्वंद्वी भी इंकार नहीं कर सकते।
भारत रत्न प्रधानमंत्री अटल जी और आडवाणी जी के दौर में भाजपा ने नरेंद्र मोदी, सुषमा स्वराज, शिवराज सिंह चौहान, अरुण जेटली, सुशील मोदी, रमन सिंह, प्रमोद महाजन जैसे युवा नेताओं का एक बैच तैयार किया था। इनमें से एक प्रयोग बहुत सफल रहा और नरेंद्र मोदी जैसे नेता का जन्म हुआ, सुशील मोदी जैसे प्रयोग असफल रहे, अरुण जेटली जननायक नहीं बन सके किंतु उन्होंने एक मंत्री के रूप में अद्वितीय कार्य किए।
इसी प्रकार वर्तमान भाजपा नेतृत्व भविष्य के लिए नेताओं का निर्माण कर रहा है। भाजपा की नजर 2024 चुनाव जीतने पर तो है ही किंतु 2029 के बाद वर्तमान कैबिनेट को बदलकर नई कैबिनेट की भूमिका के लिए नए नेतृत्व के निर्माण की है। यही कारण है कि त्रिपुरा में विप्लव देव, असम में हेमंत बिस्वा शर्मा, महाराष्ट्र में फडणवीस जैसे नेताओं को नेतृत्व दिया गया है।
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प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य स्तर पर नेतृत्व का चेहरा न बदलने का फैसला किया है। जिससे राज्य स्तर पर भाजपा का विस्तार और दृढ़ हो। जैसे गुजरात आज भाजपा की शक्ति है, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, त्रिपुरा, मणिपुर ये सभी छोटे बड़े राज्य, भाजपा का गढ़ बन जाएं। प० बंगाल में भाजपा की पराजय का एक कारण युवा नेतृत्व का न होना भी था। किंतु अब शुभेंदु अधिकारी के रूप में संभावित चेहरा भाजपा के पास है। राज्य का नेतृत्व उन्हें ही दिया जाता है जिनकी आयु कम हो और जो लोग लंबी पारी खेल सकें।
एक समय था जब कांग्रेस ने भी भविष्य के नेतृत्व तैयार करने की योजना बनाई थी, राहुल गांधी, सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद जैसे नेताओं को आगे बढ़ाया जा रहा था। लेकिन कांग्रेस का मॉडल परिवारवाद की बीमारी से ग्रसित था। कांग्रेस के मॉडल में केंद्रीय भूमिका राहुल गांधी की थी। यह भूमिका जन्म के आधार पर निर्धारित थी, जबकि सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया राहुल से बहुत अधिक योग्य थे।
किंतु भाजपा में ऐसा परिवारवाद नहीं है। योग्यतम व्यक्ति नेता बनता है और बाकी उसके पीछे चल देते हैं। जहाँ अन्य दल नेतृत्व संकट से जूझते हैं, भाजपा के पास एक से बढ़कर एक चेहरे हैं।