राष्ट्र की एकता, अखंडता और सुरक्षा को शक्ति और सामर्थ्य से ही बनाए रखा जा सकता है। दूसरी बात, अगर आप में शक्ति नहीं होगी, तब तक आपके अधिकारों के लिए कोई नहीं लड़ेगा और आपको धोखा मिलता रहेगा। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण हमें यही दो सीख देता है। यह घटना दर्शाती है कि अगर एक मजबूत नेता ठान ले, तो वैश्विक दबाव की परवाह किए बिना देश अपने भू-राजनीतिक और सामरिक महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ा सकता हैं। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी रूस की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं किया और पश्चिमी देशों की परवाह किए बिना NATO को उसकी औकात दिखा दी। इस परिस्थिति को देखते हुए आम भारतीयों के मन-मस्तिष्क में एक प्रश्न का कौंधना स्वाभाविक है कि क्या भारत भी POK वापस ले सकता है? कुछ लोग कहेंगे कि POK और डोनबास अलग हैं, और हां, पाकिस्तान भी यूक्रेन नहीं है, बल्कि एक परमाणु सम्पन्न देश है। चीन, यूएन, यूएस, मुस्लिम देश और पता नहीं क्या-क्या है? एक मायने में देखें, तो सभी की बातें सही भी है। लेकिन ये बात भी उतनी ही सही है कि अभी नहीं, तो कभी नहीं। हम आपको इसके पीछे का तार्किक कारण बताएंगे और यह भी समझाएंगे कि अगर भारत POK पर कब्जा करने की कोशिश करता है, तो भारत के पक्ष में क्या होगा और भारत के खिलाफ क्या होगा।
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भारत के पक्ष में क्या जाता है?
1. POK हमारा है
यह हमारा सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है। जब पुतिन ने यूक्रेन पर आक्रमण करने का फैसला किया, तो उन्होंने डोनबास क्षेत्र पर कब्जा करने का फैसला किया। मास्को के दावे का आधार लुहान्स्क और डोनेट्स्क प्रांतों की यूक्रेन से खुद को अलग करने की इच्छा है और इस क्षेत्र में एक रूसी भाषी आबादी है। ऐसा नहीं है कि डोनबास रूसी क्षेत्र था और दिन के अंत में, यथास्थिति को बदल दिया गया था, लेकिन अगर भारत ने POK पर कब्जा कर लिया, तो भारत यथास्थिति बहाल कर देगा। POK भारत का अभिन्न अंग है और पाकिस्तान ने ही भारत के इस हिस्से पर अवैध कब्जा किया हुआ है, इसलिए नई दिल्ली के पास POK से पाकिस्तानी कब्जे वाले लोगों को बाहर निकालने का अधिकार सुरक्षित है। ऐसे में भारत इस तरह के सैन्य अभियान के बाद किसी भी राजनयिक आक्रोश को सीमित कर सकता है।
2. सुपीरियर मिलिट्री
भारत एशिया की सबसे बड़ी सैन्य शक्तियों में से एक है और पर्वत की चोटियों पर युद्ध लड़ने के मामले में भारतीय सेना का कोई सानी नहीं ह। इसके साथ-साथ पाकिस्तान की सेना और मुख्य रूप से वायु तथा नौसेना अभी काफी कमजोर है। लाहौर तक कब्जा कर लेने वाली भारतीय सेना के लिए पाकिस्तान कोई बड़ा खतरा नहीं है। दूसरी ओर यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस के दौरे का इमरान कितना लाभ कमाएंगे, यह तो भगवान ही जानता है पर अब वो पश्चिमी देशों की आंखों में खटकने लगे हैं और भारत के संदर्भ में उन्हें किसी प्रकार की सैन्य और आर्थिक सहायता मिलना लगभग असंभव है।
हां, कुछ लोग चीन को लेकर अवश्य सशंकित होंगे। वो ये सोचते होंगे कि क्या होगा अगर चीन ने मोर्चा खोल दिया? अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस परिस्थिति में चीन कभी ऐसा नहीं करेगा, क्योंकि रूस का खुला समर्थन और नाटो का खुला विरोध कर वह पश्चिम की आँखों की किरकिरी बन चुका है। ऊपर से दक्षिणी चीन सागर और क्वाड के देश भी उसपर आग बबूला हैं। जहां तक रूस का सवाल है, तो रूस भी चीन से कुछ खास खुश नहीं है। रूस की नाखुशी का कारण यह है कि एक चीन नीति का समर्थन कर रूस को लग रहा था कि यूएन में चीन खुल के उसके पक्ष में मतदान करेगा, जबकि चीन ने मतदान से ही परहेज किया।
दूसरी ओर, क्वाड के सदस्यों और पश्चिमी देशों के करीब होने के बावजूद जिस भारत से रूस के विपक्ष में मतदान की उम्मीद थी, उसने भी मतदान से परहेज कर एक सशक्त संदेश दिया। अतः चीन अगर कोई भी दुस्साहस करता है, तो न सिर्फ पश्चिमी देश भारत के पाले में खड़े होंगे, बल्कि रूस भी भारत का ही साथ देगा। यहां एक बात और ध्यान देने योग्य है कि नैतिकता के आधार पर भी रूस को भारत के पक्ष में बोलना होगा, क्योंकि अगर नाटो यूक्रेन को अपना सदस्य देश बनाकर रूस के लिए खतरा बन सकता है, तो दूसरी ओर पाक ने तो जम्मू की विवादित जमीन ही चीन को बेच दी है, जहां से उनकी CPEC परियोजना निकल रही है।
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3. आर्थिक मजबूती
वर्तमान में भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था है। दूसरी ओर, पाकिस्तानमें स्वस्थ विकास के कोई संकेत नहीं दिखा रहा है। नए इस्लामिक ब्लॉक बनाने के दुस्वप्न ने इस्लामाबाद को OIC से भी दूर कर दिया है। अगर भारत और पाकिस्तान के बीच आमना-सामना होता है, तो नई दिल्ली युद्ध जनित आर्थिक विषमता को झेल पाने में सक्षम होगी, जबकि पाकिस्तान के पास बहुत जल्दी पैसा खत्म हो जाएगा। अंततः इस्लामाबाद को भारत के सामने आत्मसमर्पण करने और भारत की शर्तों पर शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए घरेलू दबाव का सामना करना पड़ेगा।
4. सामरिक लाभ
जैसा कि भारत ने वर्ष 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और वर्ष 2019 में बालाकोट हवाई हमले के दौरान साबित किया, उसके सैन्य बल पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र में घुसकर इस्लामाबाद समर्थित आतंकी शिविरों को निशाना बना सकते हैं। POK पर फिर से कब्जा करते हुए भारत को इस क्षेत्र में पाकिस्तान के सैन्य ढांचे को निशाना बनाना होगा। भारतीय सेना कोवर्ट ऑपरेशन और हाइब्रिड युद्ध में माहिर है। अचानक युद्ध और कोल्ड स्टार्ट Doctrine के माध्यम से पाकिस्तान की सेना को समर्पण पर मजबूर किया जा सकता है। इसलिए POK को वापस लेने का कोई भी भारतीय प्रयास तेज और हाइब्रिड होना चाहिए। भारत पूर्ण युद्ध छेड़े बिना POK के कुछ सामरिक महत्व वाले स्थानों पर अवश्य कब्जा कर सकता है। इस पतिस्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अभी नहीं तो कभी नहीं।
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