कैप्टन अमरिंदर सिंह चुनावी युद्ध हार कर भी पूरी जंग जीत चुके हैं

कैप्टन ने तो कांग्रेस की लंका लगा दी!

Captain Amrinder Singh and PM Modi

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एक सैनिक, सैनिक की तरह लड़ा। पूरे साहस से भिड़ा, गिरा और हारा पर अपनी हार को सुनिश्चित जानते हुए भी एक राजनेता के तौर पर उसने भारत की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का भरसक प्रयास किया। वैसे भी एक सैनिक की यही तो खासियत होती है, चाहे वह किसी भी अन्य पेशे और व्यवसाय को क्यों न अपना ले पर उसके लिए भारत सर्वोपरि था, है और रहेगा। मिट्टी के प्रति उसका यही प्रेम और कर्तव्य अंततः उसे किसी भी रण में हारने नहीं देता। अगर गलती से वह अपने उद्देश्य प्राप्ति में विफल भी हो जाए, तो माटी उसे अभिमन्यु सम गौरव प्रदान करती है न कि जयद्रथ सम कलंक। जी हां, हम बात कर रहे हैं पंजाब के चक्रव्यूह को भेदने वाले अभिमन्यु कैप्टन अमरिंदर सिंह की।

राष्ट्र की सुरक्षा से समझौता न करने के कारण नवजोत सिंह सिद्धू और सोनिया गांधी ने मिलकर अमरिंदर को अपमानजनक तरीके से पार्टी से बाहर निकाल दिया। उसके बाद सिद्धू, चन्नी, सोनिया, प्रियंका, केजरीवाल, भगवंत मान, आम आदमी पार्टी, जमींदार, आढ़तिया, दलाल, किसान मोर्चा के नेता-कार्यकर्ता और कुछ खालिस्तानी तत्वों ने मिलकर MSP, किसान आंदोलन और सिख भावनाओं की आड़ में एक चक्रव्यूह रचा।

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सिद्धू को हराया

किसी के पल्ले नहीं पड़ रहा था कि आखिरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक चक्रव्यूह कैसे तोड़ा जाए? पर ऐन वक्त पर अमरिंदर आगे आए। उन्होंने कांग्रेस के इस चक्रव्यूह का भेदन करने के लिए भगवा पार्टी से हाथ मिलाया। हालांकि, वो खुद चुनाव हार गए परंतु जैसा कि अभिमन्यु ने किया था, उन्होंने भी कांग्रेस के इस चक्रव्यूह को तोड़ दिया। जिसका परिणाम हुआ कि चन्नी-सिद्धू सहित कांग्रेस पंजाब में बुरी तरह पराजित होकर अपने अंत की ओर अग्रसर हो गई है।

सिद्धू का पाकिस्तान और बाजवा प्रेम जगजाहिर है। अगर इस चुनाव में वो जीत जाते तो पाक और खलिस्तानपरस्तों का पंजाब के शासन पर शिकंजा थोड़ा कस जाता। पर अमरिंदर सिंह ने अमृतसर पूर्व से नवजोत सिंह सिद्धू को हराने का बीड़ा उठाया। वैसे तो अमृतसर से नवजोत सिंह सिद्धू को आम आदमी पार्टी की जीवन ज्योत कौर ने करीब 7000 वोटों से पराजित किया, पर यह 7000 वोट भाजपा अमरिंदर के गठबंधन वाले जगमोहन सिंह राजू ने कम किया वरना सिद्धू आसानी से चुनाव जीत जाते। हम सभी जानते हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ही अमृतसर लोकसभा सीट से भाजपा लहर के बावजूद अरुण जेटली सरीखे नेता को हराया था, अतः इस सीट को स्वाभाविक रूप से उनका गढ़ माना जाता है और इस बार भाजपा विरोधी लहर होने के बावजूद उन्हीं के गुणा गणित से सिद्धू चुनाव हार गए।

अमरिंदर बनेंगे पंजाब के राज्यपाल

दूसरी बात राजनीति में जो दिखता है, वह होता नहीं और जो होता है, वह दिखता नहीं। भले ही अमरिंदर चुनाव हार चुके हैं, लेकिन इस हार के बावजूद भी उन्होंने अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर ली है। वैसे भी कांग्रेस से निकाले जाने के बाद उनका दो ही उद्देश्य था- सिद्धू को सत्ता प्राप्ति से रोकना, जो कि उन्होंने पूरा कर लिया है और दूसरा स्वयं का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करना। जो कि उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन करके पूरा कर लिया है। हालांकि, भाजपा पंजाब के सत्ता में नहीं आई और तथ्य यह है कि इसकी कोई संभावना भी नहीं थी, परंतु भाजपा विरोधी लहर के बावजूद भी ऐन वक्त पर भाजपा से गठबंधन करने का साहस जो अमरिंदर सिंह ने दिखाया है, उसका फल भाजपा अपने सहयोगी को अवश्य देगी।

राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि आने वाले समय में अमरिंदर सिंह को किसी राज्य के राज्यपाल पद पर नियुक्त किया जा सकता है और कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी अगर वह पंजाब राज्य के ही राज्यपाल बन जाए। इससे तो यही साबित होता है कि भले ही अपनी राजनीतिक क्षमता के इतर अमरिंदर सिंह पंजाब के सीएम नहीं बन पाए, लेकिन अपनी राजनीतिक अक्लमंदी के कारण वो अवश्य ही पंजाब में प्रशासन के संवैधानिक सर्वोच्चता को हासिल कर लेंगे। शायद, अमरिंदर ने स्वयं को हार कर भी जीतने वाले बाज़ीगर के रूप में स्थापित कर लिया है।

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