उत्तराखंड में स्थित चार विश्व प्रसिद्ध धाम अर्थात् बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री तथा यमुनोत्री के संचालन के लिए बनाए गए देवस्थानम बोर्ड एक्ट को भंग करने के लिए सरकार द्वारा पारित प्रस्ताव पर उत्तराखंड के राज्यपाल रिटायर्ड लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल गुरमीत सिंह ने मुहर लगा दी है। ध्यान देने वाली बात है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार ने देवस्थानम बोर्ड का गठन किया था, जिसके बाद चार धाम सहित उत्तराखंड के 50 मंदिरों के संचालन की जिम्मेदारी सरकार के पास आ गई थी। सरकार के इस नियम का चार धाम के पुजारियों तथा विश्व हिंदू परिषद सहित विभिन्न हिंदू संगठनों द्वारा विरोध किया गया था। जिसके बाद पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने पर सरकार ने इस एक्ट को भंग कर दिया। पिछले वर्ष दिसंबर महीने में सरकार ने इस संदर्भ में निर्णय लिया था, जिस पर अब राज्यपाल ने मुहर लगा दी है। एक बार फिर बद्री केदार मंदिर समिति पहले की तरह अपने अधिकारों के साथ सक्रिय हो जाएगी, जबकि गंगोत्री और यमुनोत्री स्थानीय पुरोहितों की समितियों द्वारा संचालित किए जाएंगे।
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शिवभक्तों को मिल गया भोलेनाथ का प्रसाद
सरकार द्वारा इस नियम को अंतिम स्वीकृति महाशिवरात्रि के समय दी गई, जो एक प्रकार से शिवभक्तों के लिए भोलेनाथ के प्रसाद समान है। इसके साथ ही शिवरात्रि के अवसर पर बद्रीनाथ और केदारनाथ के कपाट खुलने का समय घोषित किया गया है। केदारनाथ धाम 6 मई को और बद्रीनाथ धाम 8 मई को खुल जाएंगे। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हिंदू संस्थान और मंदिर एकमात्र ऐसे धार्मिक सांस्कृतिक इकाई हैं, जिनका संचालन सरकार द्वारा किया जाता है। देशभर के मस्जिदों, गुरुद्वारों और चर्च आदि का संचालन इन मजहब और पंथ में विश्वास रखने वाले लोगों द्वारा किया जाता है। संविधान का अनुच्छेद-29 देश के अल्पसंख्यकों को, जिनका निर्धारण उनकी सांस्कृतिक और मजहबी पहचान आदि के आधार पर किया जाता है, अपनी संस्कृति और मजहब के लिए संस्थाएं चलाने की अनुमति देता है। ऐसी संस्थाओं (चर्च और मदरसों) को सरकारी अनुदान भी मिलता है। इसके विपरीत मंदिरों के संचालन के लिए विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अपने-अपने राज्य में स्थित बड़े मंदिरों हेतु सरकारी बोर्ड का गठन किया गया है। मंदिरों को मिलने वाले अनुदान का प्रयोग समाज कल्याण के किस कार्य में करना है और कैसे करना है, यह सरकार निर्धारित करती है।
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हिंदुओं के पैसे का हिंदू हित में नहीं होता प्रयोग!
आपको बताते चलें कि ऐसे ट्रस्ट अधिकांशतः भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं और हिंदुओं के पैसे का हिंदू हित के लिए प्रयोग नहीं करते हैं! तमिलनाडु की बात करें, तो पिछले 35 वर्षों में राज्य की विभिन्न सरकारों द्वारा राज्य के मंदिरों की 47000 एकड़ जमीन का कई माध्यमों से गबन किया जा चुका है। पिछली AIADMK सरकार में अर्धनारीश्वर मंदिर की 100 करोड़ की संपत्ति को राज्य सरकार द्वारा मात्र 1.98 करोड़ रुपये में अधिग्रहित करने का प्रयास किया गया था, जिसका RSS संगठनों द्वारा विरोध किया गया था। इन मंदिरों हो यदि सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया जाए, तो विभिन्न दलित और आदिवासी बस्तियों में होने वाले धर्मांतरण के कार्यों को रोकने में मंदिर सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। इसके साथ ही सनातन संस्कृति के प्रसार और हिंदुओं की एकता के लिए भी मंदिर ट्रस्ट स्वतंत्र होकर अपने स्तर पर संभवतः बहुत अच्छे प्रयास कर सकते हैं।