कांग्रेस के हाथ से छिटक रहा है प्रमुख विपक्षी पार्टी का तमगा और उन्हें अभी तक इसका एहसास भी नहीं है

चाटुकारों ने कांग्रेस की ऐसी लंका लगाई है कि आप सोच भी नहीं सकते!

प्रमुख विपक्षी पार्टी

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कांग्रेस वर्ष 2014 से सत्ता से विमुख होती गई और अब हाल ए बयां कुछ ऐसा है कि उसे सत्ता पक्ष से विपक्षी होने का तमगा मिलने के बाद उससे प्रमुख विपक्षी पार्टी का टैग भी खिसकता दिख रहा है। यह आश्चर्यजनक इसलिए नहीं है, क्योंकि कांग्रेस ने स्वयं अपना अस्तित्व खोने का एहसास होने के बावजूद न ही पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए न कोई बड़े आमूलचूल परिवर्तन किए और नेतृत्व का तो क्या ही कहें, यह माँ-बेटा-बेटी में इस कदर सिमट गया है कि उससे बाहर आने में न जाने गाँधी परिवार को और कितने जन्म लग जायेंगे। ऐसे में आज की बात करें तो कांग्रेस ने अपनी प्रमुख विपक्षी पार्टी होने की स्थिति भी खो दी है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उन्हें अभी तक इसका एहसास नहीं हुआ है।

वर्ष 2014 से ही गिरते ग्राफ की पटकथा लिखती आ रही कांग्रेस को 2014 के आम चुनावों में जहां एक ओर अकेले मात्र 44 सीटें मिली थी, तो वहीं यूपीए गठबंधन को कुल मिलाकर 59 सीटें मिलने के साथ ही मत प्रतिशत के अनुसार 19.3 प्रतिशत ही वोट हासिल हुए थे। फिर राज्य चुनाव होते गए, एक के बाद एक कांग्रेस राज्य उससे छिटकते चले गए और अन्तोत्गत्वा आज आलम यह है कि देश में मात्र 2 कांग्रेस शासित राज्य रह गए हैं, जहां कांग्रेस का मुख्यमंत्री है। वो दो राज्य हैं- राजस्थान और छत्तीसगढ़।

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व्यक्ति अपनी गलतियों से सीखता है पर कांग्रेस गलती कर कर के और गलती करना सीखती है। वर्ष 2014 में कांग्रेस का राजनीतिक रूप से सूपडा साफ होने की श्रृंखला शुरू हुई तो थी, पर उससे पूर्व राज्यसभा में वो भाजपा से बड़ी पार्टी हुआ करती थी। कांग्रेस 2013 के राज्यसभा चुनावों में कुल 72 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी हुआ करती थी और आज वक्त बदल गए जज्बात बदल गए लाइन का अनुसरण करते हुए उसकी ऐसी फजीहत हो गई है कि उससे आधे से भी कम का आंकड़ा फिलहाल कांग्रेस के पास बचा है। आज कांग्रेस के पास मात्र 34 राज्यसभा सांसद हैं, जिनकी कुर्सी आगामी राज्यसभा चुनावों में अपनी कमर तोड़ती दिख जाएगी क्योंकि जैसे-जैसे राज्यों में कांग्रेस का पतन होता जा रहा है, ये सुनिश्चित है कि प्रमुख विपक्षी पार्टी बने रहने के लिए भी कांग्रेस के लाले पड़ेंगे।

शाश्वत सत्य यही है कि कांग्रेस दर-दर भटक रही है। देश की वयोवृद्ध पार्टी कांग्रेस को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जो भी प्रयास करने चाहिए, वो उसका 1 प्रतिशत भी करती नहीं दिख रही है। यह बात कई वरिष्ठ और रहे बचे कांग्रेसी नेता जो अन्य दलों में नहीं गए हैं उन सबको पता है, वे बेचारे आलाकमान तक समाधान करने के लिए अपनी ओर से सुझाव भी देते हैं। निस्संदेह यदि कांग्रेस पार्टी ने उनके सुझावों पर ही अमल कर लिया होता, तो पंजाब में जुम्मा-जुम्मा चार दिन पहले निर्मित पार्टी आम आदमी पार्टी ने इतनी बड़ी शिकस्त नहीं खानी पड़ती। पार्टी नेताओं की सुनी ही होती तो आज कांग्रेस की यह दशा न होती। चाहे सोनिया गाँधी हों या राहुल गाँधी दोनों ने अपने चाटुकारों को ऐसा सिर चढ़ा दिया कि कांग्रेस की भलाई चाहने वाले नेता विद्रोही बन गए और उनका नाम पड़ गया G-23 गुट। अब उसी जी-23 गुट के नेता, पुराने कांग्रेसी गुलाम नबी आज़ाद को पद्म भूषण पुरस्कार प्रदान किया गया है।

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चाटुकारों ने खोद दी गांधी परिवार की कब्र

कांग्रेस आलकमान के चाटुकारों की बुद्धि यहां भी तीव्र गति से चल गई होगी और 10 जनपथ पर फ़ोन कर कह दिया होगा, “लीजिए मैडम, मोदी जी ने नबी साहब को पद्म पुरस्कार दे दिया, अब वो कांग्रेस के नहीं रहे।” निश्चित रूप से यही कहा होगा, क्योंकि उन लोगों का तो काम ही है कि प्रतिभावान नेताओं को परे कर अपने बेटों और पोतों के लिए कांग्रेस में आगे की राह कैसे आसान की जाए। नबी जैसे नेताओं पर तो सदा से ऐसे कांग्रेसी नेताओं की निगाह रही है, क्योंकि कांग्रेस के उदय में गुलाम नबी आज़ाद जैसे नेताओं का हाथ रहा है और इस वजह से वो गाँधी परिवार के प्रिय भी रहे हैं।

अब नबी की जगह खुद कैसे पाएं इसी सोच में चाटुकारों की कांग्रेस की कब्र गाँधी परिवार की आँखों के सामने खोद दी और न ही सोनिया गाँधी को इसकी भनक लगी और न ही राहुल गाँधी को। वो तो लगे हैं अनर्गल विरोध में, पार्टी की स्थिति सही करने के बजाय अंधविरोध में जुटी कांग्रेस अब लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी दोयम दर्ज़े की हो जाएगी और इसका कारक और कोई नहीं स्वयं कांग्रेस आलाकमान ही होने जा रहा है।

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