Dear Farooq Abdullah, कश्मीरी पंडितों के पलायन के संबंध में उत्तर देने के लिए बहुत कुछ बचा है

क्या फारुख को पहले ही मालूम था कि हिन्दूओं पर अत्याचार होने को है?

source- tfipost

1990 के दशक में कश्मीर घाटी में रहने वाले अधिकांश हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया था। हिन्दुओं का अपना देश कोई है तो वह भारत है और वहां भी हिन्दुओं पर इतनी क्रूरता इस बात को दर्शाता है की उस समय देश का नेतृत्व कर रहे लोगों को हिन्दुओं की कोई परवाह नहीं थी।आपको बता दें कि कश्मीर घाटी में इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा हजारों कश्मीरी हिंदुओं के साथ बलात्कार, लूटपाट और हत्या की गई थी। जो बच गए वे डर के मारे कश्मीर छोड़कर अपने ही देश में शरणार्थी बन गए। इस जघन्य घटना के बाद कश्मीरी पंडितों को जम्मू के शिविरों में अमानवीय परिस्थितियों में उनका पुनर्वास किया गया था। आज हम कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार और नरसंहार की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हाल हीं में रिलीज हुई फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादियों के हाथों कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार पर एक बहस को प्रज्वलित कर दिया है और दिखाया है कि कैसे उस समय केंद्र और राज्य सरकार ने कश्मीरी हिंदुओं की पीड़ा के प्रति आंखें मूंद लीं थी।

इन सब अमानवीय घटना में हमेशा से कांग्रेस सरकार और फ़ारूक़ अब्दुल्ला का नाम आता रहा है और कहीं न कहीं कश्मीरी हिन्दुओं के कत्लेआम के समय राजनीतिक रोटी और सूत्रधार का कार्य फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने भी किया होगा, ऐसा हम नहीं बल्कि देश के राजनीतिक जानकार उनपर हमेशा आरोप लगाते आए हैं।

एक दिन पहले मुख्यमंत्री पद क्यों छोड़ा गया?

‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म के साथ फारूक अब्दुल्ला एक बार फिर विवादों के केंद्र में आ गए हैं। नेशनल कांफ्रेंस के मुखिया, जिन्होंने तत्कालीन राज्य जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया है, के पास जवाब देने के लिए बहुत कुछ है। फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने 1980 के दशक के अंत में हुए कश्मीरी हिंदुओं के क्रूर नरसंहार के साथ-साथ भारत में एक सार्वजनिक बहस छेड़ दी है, जो 1990-91 में चरम पर थी। फारूक अब्दुल्ला 18 जनवरी 1990  तक जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। उसी वर्ष 19 जनवरी को, कश्मीरी हिंदुओं के खिलाफ  चौतरफा नरसंहार शुरू किया गया था।

इस मामले में फारूक के बेटे, उमर अब्दुल्ला इन दिनों फिल्म में दिखाए गए असहज सच के कारण बौखला गए हैं। उमर अब्दुल्ला ने कहा, “फिल्म में कई झूठों को दिखाया गया है और सबसे बड़ा यह है कि यह गलत तरीके से दिखाया गया है कि कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार थी। उमर अब्दुल्ला ने कहा, तथ्य यह है कि 1990 में जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन था जब कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर छोड़ दिया था। केंद्र में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा समर्थित सरकार थी।

फारूक अब्दुल्ला और पलायन

उमर अब्दुल्ला चाहते हैं कि आप विश्वास करें कि कश्मीरी हिंदुओं और अल्पसंख्यकों का नरसंहार अचानक हुआ था। ये झूठ है। कश्मीरी हिंदुओं की लगातार प्रताड़ना और हत्या 1990 से पहले भी जारी थी। हालाँकि, इतिहास का वह हिस्सा भारतीयों को कभी नहीं बताया गया – यही वजह है कि इस्लामवादी और उनके कट्टरपंथी लीडर आज इतने उत्तेजित हैं।

सवाल यह भी उठता है कि कश्मीरी हिंदुओं के खिलाफ चौतरफा नरसंहार शुरू होने से ठीक एक दिन पहले फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा क्यों दिया? क्या वह आतंकियों को खुली छूट देना चाहते थे? क्या वह इस तरह के नरसंहार के शुरू होने पर मामलों के शीर्ष पर नहीं दिखना चाहते थे ? कश्मीरी हिन्दुओं पर होने वाले हमले हो सकते हैं यह जानने के बाद भी क्या फारूक अब्दुल्ला ने कश्मीरी इस्लामवादियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की?

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यहां मुख्यमंत्री के रूप में फारूक अब्दुल्ला के कार्यकाल के बारे में और भी चौंकाने वाला विवरण है। जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक के रूप में सेवा दे चुके शेष पॉल वैद के अनुसार, ISI द्वारा प्रशिक्षित 70 आतंकवादियों के पहले समूह को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने गिरफ्तार किया था। हालाँकि, फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार ने इन खूंखार आतंकवादियों को रिहा करवा दिया और उन्होंने लगभग तुरंत ही कश्मीरी हिंदुओं पर अत्याचार किया था।

पूर्व डीजीपी ने जिन आतंकवादियों का जिक्र किया उनमें त्रेहगाम के मोहम्मद अफजल शेख, रफीक अहमद अहंगर, मोहम्मद अयूब नजर, फारूक अहमद गनई, गुलाम मोहम्मद गुजरी, फारूक अहमद मलिक, नजीर अहमद शेख और गुलाम मोही-उद-दीन तेली शामिल हैं। श्री वैद ने पूछा, “क्या यह 1989 की केंद्र सरकार की जानकारी के बिना संभव हो सकता था?”

आपको बतादें कि भाजपा ने 80 और 90 के दशक में कश्मीर में हुई हिंसा में उनकी संलिप्तता की ओर इशारा करते हुए अब्दुल्ला परिवार पर निशाना साधा है। भाजपा सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग के राष्ट्रीय प्रभारी अमित मालवीय ने ट्वीट किया, ‘उमर को कश्मीर की फाइलों का कौन सा हिस्सा असत्य लगता है? तथ्य यह है कि उनके पिता फारूक अब्दुल्ला ने 18 जनवरी, 1990 को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था, और जैसे कि 19 जनवरी, 1990 से असहाय कश्मीरी हिंदुओं पर नरसंहार शुरू किया गया था? और उन्होंने 70 ISI प्रशिक्षित खूंखार आतंकवादियों को रिहा करने का आदेश दिया?

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फारूक अब्दुल्ला पर मोदी सरकार के एक बेहद वरिष्ठ नेता ने चुनावी धांधली का भी आरोप लगाया है। केंद्रीय मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने गुरुवार को कहा कि कश्मीर का टर्निंग पॉइंट “1987 का विधानसभा चुनाव में धांधली” था।

प्रधान मंत्री कार्यालय के प्रभारी केंद्रीय मंत्री ने कहा, “यह सुनिश्चित करने के लिए कि फारूक अब्दुल्ला आराम से बहुमत के साथ मुख्यमंत्री के रूप में लौट आए, (तत्कालीन) राज्य मशीनरी ने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (एमयूएफ) उम्मीदवारों की हार को सुरक्षित करने के लिए पैंतरेबाज़ी की थी, जबकि राजीव-फारूक समझौते और नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच सामरिक समझ के कारण केंद्र मूकदर्शक बना रहा।

उन्होंने आगे कहा, “इसके तुरंत बाद आजादी के नारों के साथ असंतोष की लहरें सुनाई देने लगीं और यह असंतोष जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) जैसे आतंकवादी संगठनों के काम आया, जिन्होंने घाटी की सड़कों पर धमकी भरे विज्ञापन और आतंक फैलाने वाले पोस्टर लगाना शुरू कर दिया। ।”

फारूक अब्दुल्ला किसी तरह कश्मीरी हिंदुओं के अपनी मातृभूमि से पलायन में एक प्रमुख  व्यक्ति प्रतीत होते हैं। फिर भी, वह अब तक वो जवाबदेही से से बच गए है। अब, उनके कार्यों पर सवाल उठाए जा रहे हैं, और कश्मीर के संकट में उनकी भूमिका की तह तक जाने का एकमात्र तरीका यह है कि उनके और उनकी पार्टी के खिलाफ एक उच्च-स्तरीय जांच शुरू की जाए जिससे बर्बरता का सत्य भारतीय जनता जान सके।

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