कंगना रनौत! आप तो मुनव्वर फारुकी की बैंड बजाना चाहती थीं फिर उसे मंच क्यों दे दिया?

कंगना ये तुमने क्या किया!

आज जो अन्वेषण हम अपने लेख में लेकर आए हैं वह आपको निराशा से भर सकता है। जी हां हम सही कह रहे हैं क्योंकि हमारा ये लेख कंगना रनौत के बहुचर्चित शो लॉक अप और मुनव्वर फारूकी के बारे में है।

कंगना रनौत ने रविवार 27 फरवरी की रात को एकता कपूर के शो लॉक अप (Lock Up) के साथ ओटीटी डेब्यू किया। इस शो का ट्रेलर देखकर पहले ही लग गया था कि ये शो काफी विवादास्पद होने वाला है और इसमें दर्शक वो सब देखने वाले हैं जो उन्होंने आज तक नहीं देखा होगा जैसे कि कंटेस्टेंट्स का मीडिया ट्रायल, तीखे सवाल, बिना टिशू पेपर के टॉयलेट जाने और बिना पर्दा किए खुले में नहाने जैसे काम।

यह शो दिखा क्या रहा है?

पर अब यह शो दर्शकों को जो दिखा रहा है वह देखा नहीं जा रहा। दर्शकों को लगा था कि इस शो के माध्यम से हमें उन हस्तियों का पक्ष जानने को मिलेगा जो कभी विवादों के घेरे में थे। प्रश्न ये है कि आखिर ये शो वास्तव में दिखा क्या रहा है। एकता कपूर के शो लॉक अप और इसकी अवधारणा को देखते हुए ऐसा लगता है जैसे कभी विवादों के घेरे में रहे हस्तियों का पक्ष जानने के बजाय यह शो उनकी गलतियों को धोने का काम कर रहा है।

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कभी राष्ट्रवाद और देश के हित को लेकर मुखर रहने वाली बॉलीवुड नायिका कंगना रनौत अब टीआरपी के चक्कर में फंस गई हैं। शायद इसीलिए उन्होंने इस शो में प्रथम प्रतिभागी के तौर पर मुनव्वर फारूकी को आमंत्रित किया। आप सभी जानते हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र और माता जानकी को अपमानित करने के कारण मुनव्वर फारूखी को कोई भी कॉमेडी शो करने से जनता ने वंचित कर दिया था। कंगना रनौत ने भी जनता द्वारा किए गए इस न्याय को सही ठहराया और मुनव्वर के खिलाफ मुखर रहीं। पर टीआरपी, पैसा और पब्लिसिटी जो न कराएं।

कंगना जो कर रही हैं उस पर विश्वास नहीं होता!

मुन्नवर फरुखी ने हिन्दू धर्म और धर्म की धुरी मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र और मां जानकी का मज़ाक उड़ाया इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है। पर, उसके द्वारा किए गए कुकृत्य पर सबसे मुखर रहने वाली कंगना ही उसके पक्ष में देश का नैरेटिव बना रहीं हैं इस बात पर विश्वास नहीं होता।

कहा जा रहा है की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मुनव्वर फारूखी राम के अपमान को उचित ठहराएगा। सजा और प्रायश्चित की बात छोड़िए कंगना के इस शो के माध्यम से ना सिर्फ वह बच गया बल्कि टीआरपी की अंधी दौड़ कंगना से लेकर प्रोड्यूसर तक सब को फायदा भी पहुंचाया। और इन सब के बीच हिंदू समाज यह सोचता रह जाएगा कि आखिरकार सारे जयचंद और गद्दार हमारे समाज में ही क्यों जन्म लेते हैं?

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अपने दर्शकों को यह बता दें की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अलावा मुनव्वर ने अपने पक्ष में यह बात भी दोहराई कि जिस प्रकार उसने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र के बारे में हास्य और व्यंग्य किया है उसी प्रकार का हास्य व्यंग उसने इस्लाम के बारे में भी किया है और कंगना ने मात्र उस पर शो में अपना कॉन्टेंट डालने का आरोप लगाया।

भ्रम जाल का शिकार न हो हिंदू समाज!

पर हम इस प्रश्न का उत्तर अपने पाठकों पर छोड़ते हैं और उनसे पूछते हैं कि क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर राष्ट्रपुरुष को अपमानित करना सही है? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अपना मूलभूत अधिकार बताने वाले लोग उसकी सीमाओं से अवगत नहीं है? क्या मुनव्वर फारुखी ऐसा ही हास्य इस्लाम के बारे में कर सकता है?अगर कर सकता है तो उसके जीवित रहने की संभावना कितनी है? और उस इंसान की भी जीवित रहने की संभावना कितनी है अगर वह इस्लाम को अपमानित करने वाले व्यक्ति का पक्षधर हो जैसे अभी कंगना है?

हमारा हिंदू समाज हमेशा से भ्रम जाल का शिकार रहा है। आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपने धर्म से जितने दूर होते जाएंगे, ऐसे लोग हमें उतना ही दिग्भ्रमित करते रहेंगे। अगर मुनव्वर फारुखी ने इस्लामिक कुरीतियों के बारे में हास्य और व्यंग किया भी है तो भी राम को अपमानित करने वाले कुकृत्य के समतुल्य इसे नहीं माना जा सकता। राम सनातन धर्म के आधार और स्वयं ईश्वर के अवतार हैं। इस्लाम में राम के समतुल्य सिर्फ अल्लाह या पैगंबर ही हो सकते हैं। सब स्वयं विचार करिए अगर राम के समतुल्य इस्लामिक दैवीय शक्ति का अगर कोई मखौल उड़ाता है तो उसका क्या हश्र होता है?

हम यहां यह नहीं कह रहे हैं कि फारूकी का भी वही हश्र किया जाए लेकिन कंगना रनौत द्वारा उनके चरित्र को धोने का कुकृत्य अत्यंत ही निंदनीय और भर्त्सना करने योग्य है। कंगना मुनव्वर को एक मंच दे रही हैं अपनी बात को सही साबित करने का और हिंदू धर्म को पुनः अपमानित करने का। इस कृत्य से कंगना ना सिर्फ अपना विश्वास खोएंगी बल्कि अपनी प्रासंगिकता मान सम्मान और स्वाभिमान सब कुछ मिट्टी में भी मिला देंगी और अंततः जीतेगा मुनव्वर और हारेगा हिंदू समाज।

 

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