एक कहावत है कि आपके कार्य आपके शब्दों से अधिक प्रभावी रूप से बताते हैं कि आप कैसे हैं। यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए शत प्रतिशत सही है। विपक्ष द्वारा यह झूठ फैलाया गया है कि प्रधानमंत्री मोदी अल्पसंख्यकों के विरोधी हैं जबकि वास्तविक आंकड़े पूरे परिदृश्य की अलग ही नहीं बल्कि पूरी तरह से उल्टी तस्वीर दिखाते हैं।
प्रधानमंत्री के विरुद्ध फैलाया जाता रहा है भ्रम
वामपंथी उदारवादी समूह द्वारा संचालित एनजीओ, मीडिया कट्टरपंथी, अल्पसंख्यक समूह और उनकी संस्थाएं तथा विपक्षी दल यह सब मिलकर प्रधानमंत्री मोदी पर अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप लगाते हैं। यह मिथ्या भ्रम फैलाए जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण भारत की पंथनिरपेक्षता खतरे में है।
हालांकि जब इस झूठे प्रोपेगेंडा को आंकड़ों की कसौटी पर कसा जाता है तो यह सारी मिथ्या अवधारणाएं टूटने लगती हैं। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में चलाई जा रही लोक कल्याणकारी योजनाएं तथा लागू हुए कानूनी सुधार के कारण अल्पसंख्यक समाज को अत्यधिक लाभ हुआ है।
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2006 में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आई थी जिसमें अल्पसंख्यकों के पिछड़ेपन पर प्रकाश डाला गया था। इसके बाद तत्कालीन कांग्रेसी नेतृत्व की सरकार ने 15 सूत्रीय सामाजिक आर्थिक विकास मॉडल बनाया था जिस आधार पर देश के रक्षकों का विकास होना था। यह मॉडल अल्पसंख्यक समुदायों को विकास की मुख्यधारा में जोड़ने के लिए बनाया गया था।
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15 सूत्रीय कार्यक्रम फाइलों में ही रहा
हालांकि यह 15 सूत्रीय कार्यक्रम सरकारी फाइलों से बाहर नहीं निकल सका। किंतु इसे लागू करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई गई। न केवल योजनाएं लागू की गई बल्कि उन्हें समय पर पूरा करने के लिए डैशबोर्ड प्रोग्राम शुरू किया गया। अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से संसद में बताया गया कि 2014 से 2020 के बीच 6 वर्षों के कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में अल्पसंख्यकों के विकास के लिए 22000 करोड़ रुपए दिए गए। इन्हीं 6 वर्षों के कार्यकाल में 3.2 करोड़ अल्पसंख्यक विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप प्रदान की गई। 2013-14 में अल्पसंख्यक लोगों के लिए 3,511 करोड़ रुपए के बजट का आवंटन किया गया था जिसे 2022 23 में बढ़ाकर 5,021 करोड़ रुपए कर दिया गया है। अर्थात पिछले 8 वर्षों में 43% की वृद्धि की गई है।
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अल्पसंख्यक समुदायों में विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय ऐसा है जहां स्त्रियों की शिक्षा पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया। इस कारण मोदी सरकार ने मुस्लिम लड़कियों के लिए 50% स्कॉलरशिप आरक्षित रखने का प्रावधान किया है। मुस्लिम महिलाओं के लिए मोदी सरकार के प्रयास का प्रत्यक्ष प्रमाण तीन तलाक को खत्म करने के लिए बनाया गया नियम है जिसने उन्हें 1400 वर्ष पुरानी दकियानूसी शरिया मान्यताओं से मुक्ति दिलाई।
इसके अतिरिक्त आवास योजना, उज्जवला योजना, आयुष्मान भारत योजना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत बांटे जाने वाले राशन आदि का लाभ उठाने में मुस्लिम समुदाय आगे रहा है। अकेले उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां लागू हुई कल्याणकारी योजनाओं में मुसलमानों की भागीदारी 30% है। प्रधानमंत्री आवास योजना से जुड़े एक अन्य तथ्य यह भी है कि इसके अंतर्गत बांटे गए घरों में 80% घर महिलाओं के स्वामित्व में है, यह तथ्य उन कथित महिलावादी स्त्रियों को जवाब है जो मोदी सरकार पर महिला विरोधी होने का आरोप लगाती है।
पीएम ने स्किल डेवलपमेंट की योजना लागू की है
इसी वर्ष मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक युवाओं और युवतियों के लिए स्किल डेवलपमेंट की योजना लागू की है। सीखो और कमाओ नाम की योजना के अंतर्गत अल्पसंख्यकों के स्किल डेवलपमेंट पर जोर दिया जाएगा। सरकार की योजना ट्रिपल E अर्थात Education, Employment and Empowerment के सिद्धांत को लागू कर अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा में लाने की है।
यह सत्य है और इसे कोई झुठला नहीं सकता कि मोदी सरकार अल्पसंख्यकों के विकास के लिए निरंतर कार्य कर रही है। किंतु दुष्प्रचार अभियानों के कारण वह समाज की मुख्यधारा में नहीं आ पा रहे। इसमें सबसे कलुषित भूमिका वामपंथी मीडिया समूहों और बुद्धिजीवियों की है। यह लोग समाज में कटुता को बढ़ावा देकर अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखना चाहते हैं। इन लोगों को कट्टरपंथियों का सहयोग मिल रहा है। सरकार को विमर्श के मोर्चे पर चल रही लड़ाई अर्थात नरेटिव वॉर, को जीतना ही होगा अन्यथा मोदी सरकार कितना भी कार्य करे वह अल्पसंख्यक विरोधी ही दिखेंगे।