आखिरकार! राष्ट्रवादी उदारवादियों को उनके ही घर में पीट रहे हैं!

और भाई लिबर्ल्स! आ गया स्वाद?

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तुम तुष्टिकरण से तोड़ोगे हम राष्ट्रवाद से जोड़ेंगे। भारत का इतिहास जितना भारत के मूल लोगों ने नहीं लिखा उससे ज़्यादा पश्चिमी देशों से इतिहासकारों ने उसमें अपनी वैचारिक कुंठा डाल उसे भारत का असल इतिहास बनाकर परोस दिया। आज तक उसी इतिहास को स्कूली और कॉलेज पाठ्यक्रमों में रट्टा-मार पॉलिसी की साथ पढ़ाया जा रहा है। पर अब किसी न किसी को जागना ही था तो यह ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ली कि लिबरल पोषित इतिहास को मिटा भारत के असल गौरवमयी इतिहास लिखने का समय आ गया है। हाल ही में कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज में एक वाद-विवाद का आयोजन किया गया, जो एक प्रमुख वामपंथी संस्थान के रूप में भी जाना जाता है। बहस में संजीव सान्याल, आनंद रंगनाथन, मणिशंकर अय्यर जैसे कुछ नामी और प्रमुख लोगों ने भाग लिया। विषय भी अनूठा था – भारतीय इतिहास का भारतीय दृष्टिकोण से पुनर्लेखन।

जिस प्रकार भारतीय इतिहास का गला घोंट उसे दूषित मानसिकता के साथ रेखांकित कर लिखा गया यह उसी पश्चिमी लिबरल गैंग का कारनामा था जो आज तक भारत भोग रहा है। जहां ‘धर्मनिरपेक्ष’ कांग्रेस पार्टी और उदारवादी मार्क्सवादी इतिहासकारों और अर्ध-बुद्धिजीवियों द्वारा प्रस्तुत नकली आख्यान का समर्थन करने पर कई वर्ग तुले हुए हैं, वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) बेहतरीन तरीके से जवाबी कार्रवाई करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। अंततः निश्चित रूप से भारत के इतिहास के पुनर्लेखन का काम आरंभ हो चुका है जिसके कर्ता-धर्ता स्वयंसेवक होंगे। देश से प्यार करने वालों की देश में कमी नहीं है, अब सोशल मीडिया के युग में हर उस व्यक्ति की आँखें खुल गई हैं जिसके पास अब तक ज्ञान भी सीमित था और संसाधन भी।

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संघ (आरएसएस) ने शोधकर्ताओं, लेखकों और गहन चिंतन और विचारकों के साथ सहयोग करने का एक अनुकरणीय निर्णय लिया है। इस बार इन सभी वर्गों के साथ मिलकर संघ का उद्देश्य देश के बारे में गलतफहमी फैलाने के करने वालों का प्रतिकार करने के लिए भारत के तथ्य-आधारित “भव्य कथा” को प्रस्तुत करना है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक के दौरान एक सच्चे भारतीय समाज, उसके हिंदू समुदाय, उसके इतिहास, संस्कृति और जीवन शैली को कैसे परिभाषित किया जाए, सहित कई मुद्दे चर्चा के मुख्य बिंदु थे। विक्रम संपत, संजीव सान्याल आदि जैसे प्रबुद्ध वर्ग वाले कई इतिहासकार इसमें शामिल हुए हैं, जिन्होंने कुछ दिनों पहले इसी तर्ज पर कथा में बदलाव का समर्थन किया है।

भाजपा के Think Tank कहा जाने वाला आरएसएस धीरे-धीरे पूरे देश में अपने विचार को प्रसारित करने में लगा हुआ है जिसका एक मात्र लक्ष्य है कि भारत को कैसे विश्वगुरु बनाया जाए। संगठन का उद्देश्य समुदाय के सदस्यों के बीच राष्ट्रवाद और एकता के विचार को बढ़ावा देना है। बैठक के अंतिम दिन पत्रकारों से बातचीत करते हुए आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कहा, “भारत और विदेशों में, भारत से संबंधित विषयों पर गलतफहमी फैलाने के लिए या तो अनजाने में या जानबूझकर, प्रयास किए गए हैं, जो किए गए हैं। फिर चाहे अंग्रेजों के जमाने से लेकर इतने सालों तक की बात हो पूरे कालखंड यही दुष्प्रचार चलता चला आ रहा है।”

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उन्होंने आगे कहा, “इस वैचारिक आख्यान को बदलने और तथ्यों के आधार पर भारत के एक भव्य आख्यान (Narrative) को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। भारत के विषयों, उसके हिंदू समुदाय, उसके इतिहास, संस्कृति, जीवन शैली पर समाज के सामने एक सच्ची तस्वीर पेश करने की जरूरत है।” शनिवार को प्रस्तुत एक वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि आरएसएस ने धार्मिक कट्टरता को एक खतरा करार दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है, “संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में सांप्रदायिक उन्माद, प्रदर्शन, सामाजिक अनुशासन के उल्लंघन, रीति-रिवाजों और परंपराओं को उजागर करने वाली नृशंस कृत्यों की श्रृंखला बढ़ रही है।” इसका सीधा उदाहरण हाल ही में हुई कर्नाटक के हिजाब घटना को कहा जा सकता है। संघ की ओर से इस मुद्दे पर कड़ी प्रतिक्रिया प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से दर्ज़ कराई गई।

होसबले ने कर्नाटक में हिजाब विवाद का भी जिक्र किया और सुझाव दिया कि संतुलन बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “समाज के बारे में कुछ अनुशासन हैं…हरियाणा में, लोगों ने आरती के मुद्दे पर लड़ाई लड़ी। यह कहना सही नहीं है कि हमें धार्मिक स्वतंत्रता है। स्कूल यूनिफॉर्म को लेकर एक विशेष और विस्तृत नियमावली बनाई गई है, यह कहना सही नहीं है कि हम इसका पालन नहीं करेंगे।’

वैचारिक विमर्शों को बदलने के आरएसएस के प्रयासों को भारत के बारे में मौलिक वाम-उदारवादी ताकतों द्वारा गलत सूचना और गलत धारणा के प्रसार की पृष्ठभूमि में देखा जा सकता है। हाल के वर्षों में, इन ताकतों द्वारा भारतीय समाज में गलत सूचना फैलाने और अराजकता पैदा करने के लिए लगातार प्रयास किए गए हैं, चाहे वह भारत के भीतर हो या बाहरी ताकतों के माध्यम से किये गए कुकृत्य ही क्यों न हों।

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ऐसे में देरी से ही सही पर भारत का इतिहास भारतीय चश्मे से देखने का समय आ गया है, जिसकी नींव समाज के हितेषी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने रख दी है। आखिरकार! राष्ट्रवादी अब उदारवादियों को उनकी ही कुटिया में उनके कर्मों के परिणामस्वरूप वैचारिक रूप से पीट रहे हैं, जोकि एक भारतीय के लिए गौरव का विषय है।

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