अंतत: उत्तराखंड ने भाजपा को बहुमत दिया, लेकिन सबसे बड़ा सवाल कि कार्यभार कौन संभालेगा?

क्या भाजपा इन चेहरों पर खेल सकती है दांव?

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Source- TFI

इस बार के विधानसभा चुनावों में एक समान बात यह रही कि किसी भी राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी दल को जद्दोजहद नहीं करनी पड़ी। उत्तराखंड में इसी जद्दोजहद का सबसे बड़ा अनुमान लगाया जा रहा था कि भाजपा को सरकार बनाने के लिए विधायकों की संख्या की पूर्ति के दूसरे दलों के जीते विधायकों पर आश्रित होना पड़ेगा। लेकिन हुआ उसके बिल्कुल उलट, भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आई, पर जैसा सर्वविदित है कि ईश्वर कुछ देता है तो कुछ ले भी लेता है। सीएम पुष्कर सिंह धामी का खटीमा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हारना इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण बन गया है। अब राज्य में फिर से नए सीएम चेहरे की खोज प्रारंभ हो गई है।

दरअसल, गुरुवार को आए नतीजों में भारतीय जनता पार्टी ने 70 सदस्यीय विधानसभा में 47 सीटों पर जीत हासिल की। वर्ष 2017 की तुलना में यह 10 सीटे कम है। ऐसे में भाजपा चुनाव जीतने के बाद भी अब इस संशय में है कि उसके सीएम चेहरे पुष्कर धामी जो अपनी खटीमा सीट से चुनाव हार गए हैं, ऐसे में अब राज्य की कमान किसे सौंपी जाए। ज्ञात हो कि पुष्कर सिंह धामी कांग्रेस उम्मीदवार भुवन चंद्र कापड़ी से 7,000 से अधिक मतों से हार गए थे। सत्ता में वापसी की आस में ही कांग्रेस 19 सीटों सिमट गई और इसके सबसे बड़े नेता हरीश रावत भी लालकुआं सीट से हार गए। ऐसे में कांग्रेस बस इस बात से संतोष कर रही है कि उसने सीएम धामी को हरा दिया।

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अबतक भाजपा के लिए उत्तराखंड जीतने का सवाल सबसे बड़ा था, लेकिन अब चुनाव जीतेने के बाद सीएम कौन होगा इस बात पर बवाल मचा है। अब तक भाजपा के हिस्से जो भी मुख्यमंत्री आए सभी फिस्सड्डी साबित हुए, चाहे बात त्रिवेन्द्र सिंह रावत के 3 साल 11 महीने 20 दिन के कार्यकाल की हो या तीरथ सिंह रावत के 116 दिन के कार्यकाल का, दोनों ही नेता अपनी वो उपयोगिता साबित नहीं कर पाए जिसकी अपेक्षा एक मुख्यमंत्री से की जाती है। अब तीरथ सिंह रावत पर दांव चलने के बाद भाजपा का जो हाल हुआ था, वो उसे दोबारा नहीं दोहराएगी। ऐसे में केंद्र से किसी को भेजकर मुख्यमंत्री बनाकर भी भाजपा ऐसा रिस्क नहीं लेगी, अर्थात् अब जो भी मुख्यमंत्री बनेगा वो विधायक ही होगा न कि कोई सांसद। इस आर्टिकल में हम विस्तार से भाजपा के उन 3 नेताओं के बारे में जानेंगे, जिन्हें पार्टी राज्य का मुख्यमंत्री बना सकती है।

1. मदन कौशिक

मदन कौशिक वर्तमान में उत्तराखंड इकाई के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। उनके नाम का आंकलन इसी बात से लगाया जा सकता है कि मदन कौशिक राज्‍य गठन के बाद से हुए सभी चारों चुनाव में हरिद्वार विधानसभा सीट पर जीत दर्ज करते आ रहे हैं। यह उनके स‍ियासी सफर का 5वां चुनाव था और इसमें भी उन्होंने जीत हासिल की। उन्होंने राज्य की मुख्य सीटों में से एक सीट हरिद्वार से कांग्रेस के सतपाल ब्रह्मचारी को हराया है। ऐसे में भाजपा इनके नाम पर विचार कर सकती है।

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2. धन सिंह रावत

संघ पृष्टभूमि से मजबूत धन सिंह रावत भाजपा और संघ के उन प्रमुख नामों में शुमार हैं, जिनका संघ के भीतर एक अलग वर्चस्व कायम है। संघ पदाधिकारी धन सिंह रावत को सदैव आगे बढ़ाते रहे हैं। ऐसे में यदि संघ विचार को तरजीह दी गई तो निश्चित रूप से धन सिंह रावत को सीएम बनाया जा सकता है। श्रीनगर गढ़वाल से धन सिंह रावत ने कांग्रेस के गणेश गोदियाल को 587 मतों से हराया है। उन्होंने धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य किया है और पूर्व में त्रिवेंद्र और तीरथ सिंह रावत दोनों की ही सरकार में राज्यमंत्री रहते हुए भी कामकाज देख चुके हैं। ऐसे में राज्य के आगामी सीएम की रेस में इनका नाम भी जोर-शोर से उछल रहा है। उम्मीद जताई जा रही है कि भाजपा इनके नाम के साथ ही आगे बढ़ सकती है।

3. सतपाल महाराज

कांग्रेस से छिटक कर भाजपा में आए नेताओं में सबसे बड़ा नाम सतपाल महाराज का है। सतपाल महाराज बीते वर्ष भी उन नामों में से एक थे, जिनके अनुभव और कौशल को भांपते हुए उनको सीएम मैटेरियल आंका गया था। लेकिन मूलतः कांग्रेस से जुड़ाव के कारण उनको तब भी सीएम बनने से वंचित रख गया था। ऐसे में यदि इस बार वरिष्ठों पर पार्टी की नज़र जाती है तो सतपाल महाराज का नाम अवश्य आगे आने की संभावना है। पौड़ी जिले की चौबट्टाखाल विधानसभा सीट प्रदेश के हॉट सीटों में शुमार है और इस सीट से सतपाल महाराज ने कांग्रेस प्रत्‍याशी केस‍र सिंह नेगी को कुल 11430 वोटों से श‍िकस्‍त दी है।

बताते चलें कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार को राज्य मंत्रिमंडल के साथ राजभवन में राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (आर) गुरमीत सिंह को अपना इस्तीफा सौंपा है। नियमों के मुताबिक, वो नई सरकार के शपथ लेने तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में बने रहेंगे। मुख्यमंत्री ने संवाददाताओं से कहा, “चूंकि हमें नया जनादेश मिला है और यह कार्यकाल पूरा हो गया है, इसलिए हमने राज्यपाल को इस्तीफा दे दिया। उन्होंने मुझे नई सरकार के शपथ लेने तक पद पर बने रहने के लिए कहा है।”

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