‘बहू बहू है, गोरी हो या काली’ – दैनिक भास्कर ने वैवाहिक विज्ञापनों को सदा के लिए बदल कर रख दिया है

भास्कर की बेहतरीन पहल

दैनिक भास्कर

Source- TFIPOST

विभिन्न प्रकाशनों में वैवाहिक विज्ञापनों को ढूंढते समय, आपने स्पष्ट रूप से ‘गोरी बहू चाहिये’ जैसी नस्लवादी और सेक्सिस्ट आवश्यकताओं को पढ़ा होगा या शायद दिया भी होगा। हमें नहीं पता ऐसी नस्लभेदी और लिंगभेदी मानसिकताओं को पाले समाज के बारे में आप क्या सोचते हैं, लेकिन हमारी अगली पीढ़ी को इस मानसिक रोग से मुक्त करने के लिए दैनिक भास्कर ने पहल की है। अब दैनिक भास्कर किसी भी ऐसी वैवाहिक विज्ञापन की अनुमति नहीं देगा, जो एक लड़की की त्वचा के रंग को दर्शाता है या फिर गोरी बहू की मांग करता है। 6 मार्च 2022 को इस प्रसिद्ध हिंदी समाचार पत्र ने अपनी आधिकारिक घोषणा का एक स्नैपशॉट पोस्ट किया।

घोषणा 21वीं सदी में भारत को आगे ले जाने में महिलाओं की भूमिका को रेखांकित करने के साथ शुरू होती है। इसके बाद समाचार पत्र अपनी नेक पहल का वर्णन निम्नलिखित शब्दों में करता है-भास्कर समूह ने फैसला किया है कि अब से वह महिलाओं के विवाह से संबंधित विज्ञापनों में सफेद, गेहुंआ या गोरा जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करेगा। एक प्रगतिशील समाज की स्थापना के लिए, हम में से प्रत्येक को इस तरह के घोर नस्लवाद के खिलाफ खड़ा होना होगा। हर लड़की में कोई न कोई विशेषता होती है जो उसके रंग से संबंधित नहीं होती है।“ साथ ही भास्कर समूह ने आशा व्यक्त की है कि उनकी यह पहल आने वाली पीढ़ियों के लिए और अधिक सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम होगी।

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स्त्री द्वेषपूर्ण वैवाहिक विज्ञापन

ध्यान देने वाली बात है कि समाचार पत्र हो या कोई अन्यत्र जगह, वैवाहिक विज्ञापन समाज के नस्लीय, सामाजिक और आर्थिक मानदंडों के घोर अवहेलना से भरे हुए हैं। इनमें से अधिकांश विज्ञापन मूल रूप से सदियों पुराने दक़ियानूसी विचार का प्रचार करते हैं कि पुरुष सफलता की मूरत है, जबकि महिलाएं संतुष्टि की वस्तु। उनमें से कुछ विज्ञापन महिलाओं को सफलता की वस्तु भी मानते हैं। ये विज्ञापन विशेष रूप से परिवार के दूसरे पक्ष से एक गोरे त्वचा के रंग, आकार और शारीरिक संरचना की मांग करते हैं। वे इसे ऐसे पोस्ट करते हैं, जैसे वे एक बहू की तलाश में नहीं हैं, बल्कि एक सुंदर कर्मचारी की तलाश में हैं जो घर आकर उनका काम करेगा।

वैवाहिक विज्ञापनों में रूढ़िबद्ध हैं दोनों लिंग

ऊंचाई, वजन, रंग, शैक्षिक पृष्ठभूमि, घरेलू कार्यों में विशेषज्ञता कुछ ऐसी सामान्य मांगें हैं जो लोग अपने विज्ञापनों में दुल्हन की तलाश में रखते हैं। इसी तरह, एक लड़की का परिवार भी कुछ मानदंड रखता है जो उन्हें भावी दूल्हे में चाहिए। लड़कों के मामले में, अधिकांश मानदंड उसके परिवार की देखभाल करनेऔर उसकी कमाई की क्षमता शामिल हैं। हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां महिला अच्छी तरह से शिक्षित हो चुकी है और पुरुष अपने परिवेश से अवगत है। वह आधुनिक समाज में रहने के लिए वह सब कुछ करने में सक्षम है जो एक आदमी कर सकता है। फिर भी, समाज उनको शारीरिक विशेषताओं और कमाई के क्षमताओं से बाहर निकलने नहीं दे रहा है। हमें यह समझना होगा की एक इंसान की पहचान अपने शरीर या फिर कमाई से नहीं बल्कि गुण और संस्कार से है। दैनिक भास्कर की पहल का हर दूसरे प्रकाशन को पालन करने की जरूरत है।

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