हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आ चुके हैं और अनेक बाधाओं के बाद भी योगी आदित्यनाथ प्रशासन अपनी सत्ता को यथावत रखने में सफल रही है। इसमें कहीं न कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकासवादी नीतियों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। परंतु इसका सबसे अनोखा असर पड़ा है परिवारों पर, जहां योगी – मोदी की नीतियों ने परिवारों में वोटों के ‘विघटन’ का मार्ग प्रशस्त किया है और जिसका असर एक विशेष समुदाय पर सर्वाधिक पड़ रहा है।
परंतु यह विघटन क्या है और मोदी – योगी की नीतियों का कैसा असर पड़ा है?
असल में सीएम योगी आदित्यनाथ और पीएम मोदी की संयुक्त नीतियों ने यह सुनिश्चित किया है कि या तो परिवार राष्ट्रीयता के दृष्टिकोण से वोट दे और यदि परिवार का कोई एक सदस्य भी जनहित में वोट न दे, तो परिवार के बाकी सदस्य वैसे न सोचे।
वो कैसे? कहीं बिजली परियोजना, तो कहीं सड़क परिवहन एवं ऊर्जा और कुकिंग गैस के माध्यम से मोदी सरकार ने निम्न एवं मध्यम वर्ग, विशेषकर महिलाओं को आकर्षित करने का प्रयास किया, तो वहीं सशक्त कानून व्यवस्था के माध्यम से योगी आदित्यनाथ ने ये सुनिश्चित किया कि उत्तर प्रदेश में चाहे नागरिक हो या उद्योगपति, कोई भी असुरक्षित न महसूस करे।
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इसके अतिरिक्त पीएम मोदी ने जो कानून महिला सुरक्षा के दृष्टिकोण से पारित करवाए और जिन्हे योगी ने लागू करने में कोई विलंब नहीं किया, उसने भी कहीं न कहीं अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे एक बात सुनिश्चित हुई है, विशेषकर एक विशेष समुदाय के ‘परिवारों’ में, कि मुखिया हो या पति, वे जो भी निर्णय लेंगे, आवश्यक नहीं है कि परिवार के सभी सदस्य उसे सहर्ष मानेंगे।
ऐसे में योगी – मोदी की जोड़ी ने अपने सुधारों और अपने प्रशासन से न केवल उत्तर प्रदेश में भाजपा का पुनः प्रशासन सुनिश्चित कराया, अपितु ये भी सुनिश्चित किया कि परिवार के भीतर भी आंतरिक लोकतंत्र फले फुले।
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